रायपुर: आज के दौर में मल्टीप्लेक्स मनोरंजन का सबसे अच्छा साधन. यहां नई-नई फिल्में देखकर खुद का मनोरंजन करने के साथ ही रिफ्रेश भी होते हैं. हां इस मनोरंजन की कीमत दर्शकों को अपनी जेब ढीली करके भी चुकानी पड़ती है.
मल्टीप्लेक्स में फिल्म देखना तो सस्ता है, लेकिन यहां का खानपान काफी महंगा होता है. खाने-पीने की वस्तुओं के दाम बाजार से दाम से 10 गुना ज्यादा होते हैं, बावजूद इसके मजबूरी में लोगों को यहां से खाद्य सामग्री खरीदनी पड़ती है, क्योंकि फिल्म देखने पहुंचने वाले को अपने साथ बाहर से कोई भी खाद्य सामग्री अंदर ले जाने की अनुमति नहीं होती है और यही वजह है कि 'इसका फायदा सीधे तौर पर मल्टीप्लेक्स में संचालित फूड शॉप के संचालक उठाते हैं और जो दर्शकों की जेब पर भारी पड़ता है.
लगातार मिल रही थी शिकायतें
इस मामले को लेकर ETV भारत को लगातार दर्शकों की ओर से शिकायतें मिल रही थी, जिसके बाद ईटीवी भारत की टीम ने इसकी पड़ताल की और शहर में मौजूद मल्टीप्लेक्स में जाकर हकीकत का पता किया.
प्रशासन को लगानी चाहिए लगाम
इस दौरान ETV भारत संवाददाता ने फिल्म देखने पहुंचे दर्शकों से बात की. दर्शकों का साफ तौर पर कहना था कि 'मल्टीप्लेक्स में बिकने वाली खाद्य सामग्रियों पर प्रशासन को लगाम लगानी चाहिए, क्योंकि कई बार ऐसा होता है कि जब वे अपने बच्चों के साथ फिल्म देखने पहुंचते हैं तो बच्चे खाने पीने की चीज खरीदने का जिद करते हैं और ऐसे में उन्हें महंगी खाद्य सामग्रियों खरीदना पड़ता है.
टिकट के ज्यादा खाद्य सामाग्री से कमाई
लोगों ने प्रशासन से इस पर अंकुश लगाने की मांग की है. जब इस बारे में हमने मल्टीप्लेक्स प्रबंधन से बात करने की कोशिश की तो वे कैमरे के सामने कुछ भी कहने से बचते नजर आए. हालांकि उन्होंने कैमरे के पीछे इस बात की स्वीकार किया कि, फिल्म की टिकट से ज्यादा कमाई खानपान की सामग्री बेचने में होती है.
मनोरंजन का हिस्सा है खान-पान
जब इस बारे में हमने स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव से बात कि उन्होंने कहा कि 'मल्टीप्लेक्स में पिक्चर देखना एक मनोरंजन का अच्छा साधन है और यहां आने वाले लोग सिर्फ मनोरंजन के लिए आते है और उसी का एक हिस्सा है यहां का खान-पान'.
कई गुना ज्यादा थे खाद्य सामग्री के रेट
इसके साथ ही टीएस ने कहा कि 'यह भी कहा कि 'मार्केट अपने आप को संभाल लेता है'. बहरहाल ईटीवी भारत की पड़ताल में यह तो साफ हो गया कि 'मल्टीप्लेक्स कोई भी हो, वहां खाद्य सामग्री बाजार रेट से कई गुना ज्यादा कीमत पर बिकती है.
नॉर्मल से ज्यादा हैं रेट
स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि 'जो समोसा बाजार में 10 या 20 रुपये में मिलता है, उसकी कीमत मल्टीप्लेक्स में 50 से 80 रुपये होती है, वहीं 20 रुपये की पानी की बॉटल यहां 100 रुपये में बिकती है. यही वजह है कि यहां फिल्म देखने के लिए पहुंचने वाले लोग या तो मजबूरी में वहां पर खाद्य सामग्री खरीदते हैं, या फिर बिना खाए पिए मल्टीप्लेक्स से बाहर आ जाते हैं दूसरी जगह पर खाना पीना पसंद करते हैं'.
प्रशासन को अंकुश लगाने की जरूरत
इसके साथ ही ऐसे मामलों में कहीं न कहीं प्रशासन को भी अंकुश लगाने की जरूरत है. कोई भी खाद्य सामग्री उसके हिसाब से अधिकतम मूल्य निर्धारित होना चाहिए, जिससे यहां पर खाद्य सामग्री खरीदने वाला अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रहा है. देखने वाली बात है कि इस मामले को शासन, प्रशासन कितनी गंभीरता से लेता है.
बॉम्बे हाईकोर्ट लगा चुका है फटकार
बताते चलें कि उपभोक्ता हित में इस तरह के मामले को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट मल्टीप्लेक्स को फटकार लगा चुका है. हाईकोर्ट ने कहा था कि 'थिएटर का काम फिल्म दिखाना है खाना बेचना नहीं. जब विमान में घर का खाना ले जाने में कोई दिक्कत नहीं होती है तो मल्टीप्लेक्स में क्या परेशानी है. साथ ही जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने भी दर्शक को बाहर से खाना ले जाने की इजाजत दी थी.