रायपुर: छत्तीसगढ़ में हाल ही में हुए नक्सली हमले में 17 जवान शहीद हो गए थे. ये हमला उस वक्त हुआ जब पूरा विश्व कोविड-19 जैसी संक्रामक महामारी से जूझ रहा है. भारत में भी संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च को देश में 21 दिन के लिए लॉक डाउन की घोषणा की है. लेकिन एक और ऐसा देश है, जहां के प्रधानमंत्री ने माओवादियों से युद्धविराम की अपील की है. इस देश का नाम है फिलीपींस.
फिलीपींस और भारत के माओवादी आंदोलनों में काफी समानताएं हैं और अमानताएं भी. दोनों आंदोलन 50 से अधिक साल पहले शुरू हुए और आज तक चल रहे हैं. दुनिया के बहुत से देशों में चीन के चेयरमैन माओ से प्रेरणा लेकर 70 के दशक में माओवादी आंदोलन शुरू हुए थे, जो एक-एक कर धीरे-धीरे खत्म हो गए. कोलंबिया में माओवादियों के साथ लड़खड़ाती शांति वार्ता को छोड़ दें तो दुनिया के सिर्फ इन दो देशों भारत और फिलीपींस में ही सक्रिय सशस्त्र हिंसक माओवादी आंदोलन चल रहे हैं. ( माओवादी पार्टियां दुनिया के बहुत देशों में हैं. कुर्दिस्तान के कुछ लड़ाके भी अपने आप को माओवादी विचारधारा के बताते हैं पर वे अपने आपको माओवाद नहीं कहते )
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना पर राष्ट्र को संबोधित किया
भारत और फिलीपींस दोनों के माओवादी आंदोलन यह दावा करते हैं कि उनके 3000 से अधिक लड़ाके हैं और उनके कार्यक्षेत्र जैसे फिलीपींस के लुज़ॉन में और मध्य भारत के दंडकारण्य क्षेत्र में लगभग 5 करोड़ लोग रहते हैं. दोनों क्षेत्रों में कोरोना वायरस के फैलने का डर है और सरकारों ने लॉकडाउन का आदेश दे दिया है पर वहां से इस बुरे समय में एक अच्छी खबर भी है. हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना पर राष्ट्र को संबोधित किया उसी तरह फिलीपींस के राष्ट्रपति दुतरते ने भी राष्ट्र को संबोधित किया.
यह समय आपस में लड़ने का नहीं है
अपने राष्ट्र के नाम संबोधन में फिलीपींस के राष्ट्रपति दुतरते ने माओवादियों को भी संबोधित और कहा कि यह समय आपस में लड़ने का नहीं बल्कि कोरोना वायरस से साथ मिलकर लड़ने का है. यह मानवता की मांग और लड़ाई है. उसके उत्तर में माओवादी पार्टी के प्रमुख प्रोफेसर सिसोन ने कहा कि राष्ट्रपति को सिर्फ भाषण नहीं यह प्रस्ताव लिखित में भेजना चाहिए. इस बीच संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख एंटोनियो गुएटेरेस ने पिछले सोमवार को पूरी दुनिया के विद्रोहियों और सरकारों से कोरोना को देखते हुए युद्धविराम की अपील की थी. उन्होंने कहा था 'यह समय हमारे आंतरिक संघर्षों को लॉकडाउन में रखकर हमारे जीवन को बचाने की असली लड़ाई पर ध्यान देने का है'.
20 सालों में 12 हजार से अधिक लोग मारे गए
अब फिलीपींस की माओवादी पार्टी का यह बयान आया है कि संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख एंटोनियो गुएटेरेस के प्रस्ताव को मानते हुए वे भी युद्धविराम की घोषणा कर रहे हैं. फिलीपींस में माओवादी संघर्ष में अब तक लगभग 40 हजार से ज्यादा लोग मारे गए हैं. भारत में सरकारी आंकड़े कहते हैं कि पिछले 20 सालों में इस संघर्ष में 12 हजार से अधिक लोग मारे गए हैं तो 53 साल में यहां भी लगभग 40 हजार लोग मारे गए होंगे ऐसा हो सकता है. हमारा अनुरोध है कि भारत की सरकार और माओवादियों को फिलीपींस में हुए उदाहरण का अनुकरण करना चाहिए. फिलीपींस में यद्यपि पिछले युद्धविरामों के अनुभव अच्छे नहीं रहे हैं. वहां इसके पहले भी युद्धविराम हुए और टूटे हैं. अभी हाल में पिछले दिसंबर में बातचीत का प्रयास विफल हो गया क्योंकि फिलीपींस के राष्ट्रपति दुतरते और माओवादी पार्टी के प्रमुख प्रोफसर सिसोन यह तय नहीं कर पाए कि वे कहां पर बातचीत करेंगे.
2005 में शांति समझौता करने में सफल हुआ था
पर हमारे पास उसी इलाके से बेहतर उदाहरण हैं. पड़ोसी देश इंडोनेशिया में जब 2004 में सुनामी आई तो वहां के आचे इलाके में विद्रोहियों और सरकार के बीच शुरू हुआ युद्ध विराम अंततः वहां 2005 में शांति समझौता करने में सफल हुआ था. वहां दोनों पक्षों को यह लगा था कि आपस में लड़ने के बजाए सुनामी के पीड़ितों को सहायता पहुंचाना अधिक जरूरी है. फिलीपींस और भारत के माओवादी आंदोलन में एक और संभावित समानता है, जिसका उपयोग किया जा सकता है.
नक्सली नेता गणपति शांति प्रक्रिया का फिलीपींस मॉडल अपनाना चाहते हैं
फिलीपींस के माओवादी प्रमुख प्रोफेसर सिसोन हॉलैंड में रहते हैं और वहां से शांति वार्ता का प्रयास कर रहे हैं. ऐसा बताया जा रहा था कि नक्सली नेता गणपति शांति प्रक्रिया का फिलीपींस मॉडल अपनाना चाहते हैं. वह खबर पूरी तरह से गलत हो सकती है पर फिलीपींस के युद्धविराम मॉडल पर दोनों पक्षों को गंभीरता से ध्यान देना चाहिए. इस अत्यंत बुरे समय में दंडकारण्य की जनता एक अच्छी खबर की राह देख रही है. हो सकता है कि इंडोनेशिया में जो हुआ दंडकारण्य में उसकी पुनरावृत्ति हो.
लेखक- शुभ्रांशु चौधरी