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छत्तीसगढ़ के प्राचीन धरोहर में कौन से स्थल शामिल हैं, जानिए

छत्तीसगढ़ को सांस्कृतिक धरोहर ancient heritage of chhattisgarh की नगरी कहा जाता है. छत्तीसगढ़ में प्रकृति की अनुपम देन है. इस अंचल की प्राकृतिक एवं भौगोलिक सुंदरता के कारण नदी घाटियों में अनेक संस्कृतियों का उद्भव एवं विकास हुआ है. तात्कालीन शासकों ने अपनी संस्कृति और उत्कृष्ट कार्यों की पहचान कराने और अपने इष्ट देवों को स्थापित कर उसे चिरस्थाई बनाने के उद्देश्य से अनेक उपासना गृह और स्मारक आदि का निर्माण करवाया था. छत्तीसगढ़ के प्राचीन धरोहर के रूप में विख्यात है. पौराणिक महानदी की घाटी में अनेक संस्कृतियों का उद्भव हुआ है. छत्तीसगढ़ की नदियों के तट पर अनेक संस्कृतियों के धरोहर आज भी उनकी तीर्थ कला के रूप में विद्यमान है. ancient heritage and pilgrimage sites of chhattisgarh

ancient heritage of chhattisgarh
छत्तीसगढ़ की प्राचीन धरोहर
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Published : Dec 25, 2022, 11:03 PM IST

छत्तीसगढ़ के प्राचीन धरोहर को जानिए

रायपुर: इतिहासकार एवं पुरातत्वविद डॉक्टर हेमू यदु Archaeologist Dr. Hemu Yadu ने बताया कि "छत्तीसगढ़ को धरोहर की नगरी के नाम से जाना जाता है. प्राचीन काल से लेकर अब तक अनेक धरोहर छत्तीसगढ़ में स्थापित है. शैव, वैष्णव, बौद्ध, जैन और शाक्त संप्रदाय के धरोहर छत्तीसगढ़ में एक ही स्थान पर मिलते हैं. इसलिए छत्तीसगढ़ को धरोहर की नगरी कहा गया है."

राजिम का प्रयाग तीर्थ स्थल: उन्होंने कहा कि "छत्तीसगढ़ के राजिम में स्थित प्रयाग के मंदिर को प्रयाग तीर्थ के नाम से जाना जाता है. इसके साथ ही राजिम में तीन नदियों का संगम है. सोंढुर, पैरी और महानदी का संगम स्थल है. इसी तरह छत्तीसगढ़ के शिवरीनारायण को बद्री तीर्थ के रूप में जाना जाता है. शिवरीनारायण में भी तीन नदियों का संगम है. अनेक संप्रदाय के मंदिरों का समूह मिलता है. जिसे तीर्थ स्थल के रूप में पहचान मिली है. राजिम और शिवरीनारायण में सभी धर्म और संप्रदाय के मंदिर स्थित है." ancient heritage and pilgrimage sites of chhattisgarh

यह भी पढ़ें: छत्तीसगढ़ में रामसेतु को लेकर पॉलिटिक्स हाई, कांग्रेस पर बरसे धरमलाल कौशिक


छत्तीसगढ़ में बौद्ध संप्रदाय के धरोहर मौजूद: इतिहासकार और पुरातत्वविद डॉक्टर हेमू यदु Archaeologist Dr. Hemu Yadu का कहना कि "छत्तीसगढ़ के सिरपुर में पांचवी शताब्दी से लेकर आठवीं शताब्दी तक बौद्ध संप्रदाय के धरोहर मिलते हैं, जिसमें संघाराम, बौद्ध विहार के धरोहर के साथ ही वैष्णव संप्रदाय के लक्ष्मण मंदिर, शैव संप्रदाय के मंदिर मिलते हैं. शैव, वैष्णव और बौद्ध संप्रदाय के मंदिर एक साथ मिलते हैं. इसे बौद्ध तीर्थ कहा गया है. छत्तीसगढ़ के महानदी के तट पर स्थित चंपारण्य की पहचान श्री वल्लभाचार्य की जन्मस्थली होने के कारण मिली है. देशभर के वल्लभाचार्य के प्रवर्तक इस चंपारण्य में आते हैं, और दर्शन करते हैं. इसलिए इसे वल्लभाचार्य की तीर्थ स्थली भी कह सकते हैं."

उन्होंने कहा कि "देवी शक्ति पीठ की बात करें तो डोंगरगढ़ में मां बमलेश्वरी मंदिर, रतनपुर में मां महामाया मंदिर, बस्तर इलाके में दंतेश्वरी माई का मंदिर प्राचीन होने के साथ ही एक प्राचीन धरोहर भी है. दंतेवाड़ा डोंगरगढ़ और रतनपुर तीनों ही देवी शक्ति पीठ के रूप में अपनी पहचान रखते हैं. छत्तीसगढ़ के साथ ही दूसरे प्रदेश के लोग भी इन तीनों जगहों को देवी तीर्थ स्थल के रूप में मानते हैं. भक्तजन और श्रद्धालु देवी दर्शन का लाभ लेते हैं."ancient heritage and pilgrimage sites of chhattisgarh

छत्तीसगढ़ के प्राचीन धरोहर को जानिए

रायपुर: इतिहासकार एवं पुरातत्वविद डॉक्टर हेमू यदु Archaeologist Dr. Hemu Yadu ने बताया कि "छत्तीसगढ़ को धरोहर की नगरी के नाम से जाना जाता है. प्राचीन काल से लेकर अब तक अनेक धरोहर छत्तीसगढ़ में स्थापित है. शैव, वैष्णव, बौद्ध, जैन और शाक्त संप्रदाय के धरोहर छत्तीसगढ़ में एक ही स्थान पर मिलते हैं. इसलिए छत्तीसगढ़ को धरोहर की नगरी कहा गया है."

राजिम का प्रयाग तीर्थ स्थल: उन्होंने कहा कि "छत्तीसगढ़ के राजिम में स्थित प्रयाग के मंदिर को प्रयाग तीर्थ के नाम से जाना जाता है. इसके साथ ही राजिम में तीन नदियों का संगम है. सोंढुर, पैरी और महानदी का संगम स्थल है. इसी तरह छत्तीसगढ़ के शिवरीनारायण को बद्री तीर्थ के रूप में जाना जाता है. शिवरीनारायण में भी तीन नदियों का संगम है. अनेक संप्रदाय के मंदिरों का समूह मिलता है. जिसे तीर्थ स्थल के रूप में पहचान मिली है. राजिम और शिवरीनारायण में सभी धर्म और संप्रदाय के मंदिर स्थित है." ancient heritage and pilgrimage sites of chhattisgarh

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छत्तीसगढ़ में बौद्ध संप्रदाय के धरोहर मौजूद: इतिहासकार और पुरातत्वविद डॉक्टर हेमू यदु Archaeologist Dr. Hemu Yadu का कहना कि "छत्तीसगढ़ के सिरपुर में पांचवी शताब्दी से लेकर आठवीं शताब्दी तक बौद्ध संप्रदाय के धरोहर मिलते हैं, जिसमें संघाराम, बौद्ध विहार के धरोहर के साथ ही वैष्णव संप्रदाय के लक्ष्मण मंदिर, शैव संप्रदाय के मंदिर मिलते हैं. शैव, वैष्णव और बौद्ध संप्रदाय के मंदिर एक साथ मिलते हैं. इसे बौद्ध तीर्थ कहा गया है. छत्तीसगढ़ के महानदी के तट पर स्थित चंपारण्य की पहचान श्री वल्लभाचार्य की जन्मस्थली होने के कारण मिली है. देशभर के वल्लभाचार्य के प्रवर्तक इस चंपारण्य में आते हैं, और दर्शन करते हैं. इसलिए इसे वल्लभाचार्य की तीर्थ स्थली भी कह सकते हैं."

उन्होंने कहा कि "देवी शक्ति पीठ की बात करें तो डोंगरगढ़ में मां बमलेश्वरी मंदिर, रतनपुर में मां महामाया मंदिर, बस्तर इलाके में दंतेश्वरी माई का मंदिर प्राचीन होने के साथ ही एक प्राचीन धरोहर भी है. दंतेवाड़ा डोंगरगढ़ और रतनपुर तीनों ही देवी शक्ति पीठ के रूप में अपनी पहचान रखते हैं. छत्तीसगढ़ के साथ ही दूसरे प्रदेश के लोग भी इन तीनों जगहों को देवी तीर्थ स्थल के रूप में मानते हैं. भक्तजन और श्रद्धालु देवी दर्शन का लाभ लेते हैं."ancient heritage and pilgrimage sites of chhattisgarh

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