रायपुर : शास्त्रों के अनुसार, अक्षय नवमी के दिन किया गया पुण्य जन्म-जन्मान्तर तक खत्म नहीं होते हैं. इस दिन किए गये शुभ कार्य जैसे दान, पूजा, भक्ति, सेवा आदि का पुण्य कई जन्मों तक प्राप्त होता है.आंवला नवमी की पूजा उत्तर भारत में अधिकता से की जाती है.इस दिन, आंवले के पेड़ के नीचे भोजन पकाया जाता है तथा परिवार के सभी सदस्य एक साथ बैठकर उस भोजन को ग्रहण करते हैं. महिलाएं इस पूजा का पालन बच्चों की खुशी पाने और उन्हें अच्छी तरह से करने के लिए करती हैं.Akshay navami date 2022
क्यों होती है आवले की पूजा : एक बार देवी लक्ष्मी पृथ्वी का भ्रमण करने आईं. रास्ते में उन्होंने भगवान विष्णु और शिव की एक साथ पूजा करने की कामना की. लक्ष्मी माँ ने माना कि विष्णु और शिव को एक साथ कैसे पूजा जा सकता है. तब उन्होंने महसूस किया कि तुलसी और बेल की गुणवत्ता एक साथ आंवले के पेड़ में ही पाई जाती है. तुलसी को भगवान विष्णु से प्रेम है और भगवान शिव को बेल पत्र से. माता लक्ष्मी ने आंवले के पेड़ को विष्णु और शिव का प्रतीक मानकर आंवले के पेड़ की पूजा की. पूजा से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु और शिव प्रकट हुए. लक्ष्मी माता ने आंवले के पेड़ के नीचे भोजन तैयार किया और उसे श्री विष्णु और भगवान शिव को परोसा. इसके बाद उन्होने उसी भोजन को प्रसाद रूप मे स्वयं ग्रहण किया. जिस दिन यह घटना हुई थी उस दिन कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि थी. यह परंपरा उसी समय से चली आ रही ( aamla navami worship) है.
कैसे करें आवले के पेड़ की पूजा
आंवला नवमी के दिन महिलाओं को सुबह स्नान करना चाहिए और अपने पास स्थित किसी भी आंवले के पेड़ के पास जाना चाहिए और उस स्थान पर सफाई करनी चाहिए.
इसके बाद आंवले के पेड़ के नीचे पूर्व दिशा में खड़े होकर जल और दूध चढ़ाएं.
इसके बाद पूजा आदि करने के बाद पेड़ के चारों ओर रुई लपेटें और परिक्रमा करें.
अंत में, आंवले की आरती उतारें और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करें. Akshay navami worship recognition and legislation