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Adipurush controversy : आदिपुरुष फिल्म का गर्भ में पल रहे बच्चे पर क्या होगा असर, जानिए विशेषज्ञों की राय - ज्योतिष शास्त्री पंडित प्रिया शरण त्रिपाठी

आदिपुरुष फिल्म को लेकर अब कई बातें कही जा रही है. फिल्में समाज का आईना होती है. ऐसा माना जाता है कि किसी भी फिल्म का सबसे ज्यादा असर समाज पर हो सकता है. ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि फिल्में दिमाग पर असर डालती है. हाल ही में फिल्म आदिपुरुष को रामायण का अपग्रेड वर्जन बताकर रिलीज किया गया. लेकिन जब फिल्म सामने आई तो लोगों का गुस्सा फूट पड़ा. वहीं अब ये सवाल उठने लगे हैं कि आदिपुरुष जैसी फिल्मों को देखने से गर्भ में पल रहे बच्चे के दिमाग पर असर पड़ सकता है.

Adipurush controversy
गर्भावस्था में रामायण पढ़ने व सुनने की जगह'आदिपुरुष' फिल्म देखने से पैदा होने वाले बच्चे पर पड़ सकता है बुरा प्रभाव !
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Published : Jun 24, 2023, 11:04 PM IST

Updated : Jun 26, 2023, 1:31 PM IST

आदिपुरुष फिल्म का गर्भ में पल रहे बच्चे पर क्या होगा असर

रायपुर : आदिपुरुष फिल्म को लेकर बवाल मचा हुआ है. लोग इस फिल्म की आलोचना कर रहे हैं. वहीं कुछ लोग इस फिल्म के समर्थन में भी खड़े हैं. लेकिन सवाल यह है कि जो रामायण पहले पढ़ी सुनी और देखी गई थी उसके बाद इस फिल्म के संवाद और दृश्यों का आने वाली पीढ़ी पर क्या प्रभाव पड़ेगा. खासकर यदि गर्भवती महिलाएं इस फिल्म को देखती हैं तो उनके पैदा होने वाले बच्चे पर किस तरह का असर देखने को मिलेगा. क्योंकि कहा जाता है कि जब बच्चा गर्भ में रहता है तो गर्भवती महिलाओं के आसपास का वातावरण रहन-सहन खान-पान बोलचाल और आचार विचार का पैदा होने वाले बच्चे पर प्रभाव डालते हैं.बच्चा अपनी मां के पेट में ही कई सारी बातों को सीख लेता है.


अभिमन्यु ने गर्भ में ही सीखा था चक्रव्यूह के अंदर प्रवेश करने का तरीका : इसका उल्लेख हमारे पुराने ग्रंथों में भी है. हम महाभारत के समय की बात करें तो अर्जुन के बेटे अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में घुसने की कला मां के गर्भ में रहते हुए सीखी थी.उनके पिता अर्जुन, जब सुभद्रा को चक्रव्यूह भेदकर बाहर निकलने का तरीका बता रहे थे, तो सुभद्रा सो गईं थी. इसलिए अभिमन्यु चक्रव्यूह में घुसने का तरीका तो सीख गए,लेकिन उससे निकलने का नहीं. जिस वजह से कौरव और पांडव युद्ध के दौरान अभिमन्यु चक्रव्यूह को भेदकर अंदर तो घुस गया लेकिन बाहर नहीं निकल सका और उसकी मौत हो गई.

गर्भ में ही बच्चों को दिए जा सकते हैं संस्कार : ऑबस्टेट्रीशियन ऐंड गॉयनेकॉलाजिस्ट (प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ) डॉ. नीरज पहलाजानी के मुताबिक मां बच्चे की पहली पाठशाला होती है, चौथे पांचवें महीने से मां के गर्भ में पल रहा बच्चा आसपास की हलचल को महसूस कर सकता है. यही वजह है कि कहा जाता है कि जब कोई महिला गर्भवती हो तो उसके खान पान रहन सहन उठने बैठने बोलचाल का विशेष ध्यान रखना चाहिए.

आसपास धार्मिक माहौल बनाने से गर्भ में पल रहे बच्चे के दिमाग पर असर पड़ता है. जैसे धार्मिक ग्रंथों का पढ़ना और इन ग्रंथों में सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ रामायण है. कहा जाता है कि गर्भवती महिलाओं के रामायण पढ़ने, सुनने और देखने से पैदा होने वाले बच्चे पर अच्छा प्रभाव होता है . ज्यादातर गर्भवती महिलाएं रामायण पढ़ती और सुनती हैं. रामायण फिल्म, रामायण धारावाहिक देखती हैं. इससे उनका बेटा सुंदर स्वस्थ और संस्कारी होता है. -डॉ. नीरज पहलाजानी,ऑबस्टेट्रीशियन एंड गॉयनेकॉलाजिस्ट

आदिपुरुष देखने पर पड़ सकता है बड़ा असर : आदिपुरुष फिल्म को लेकर डॉक्टर का भी मानना है कि लोग इस फिल्म को रामायण का अपडेट वर्जन मानकर देखने के लिए गए थे. लेकिन जब लोगों के सामने फिल्म आई तो सबकुछ बदला जा चुका था.लोगों को अब अपने बच्चों को समझाने में दिक्कत आ रही है कि उन्होंने राम और रावण की क्या छवि दिखाई थी और यहां क्या देखने को मिल रहा है. हनुमान के संवाद निम्न स्तर के हैं. जो बच्चों के दिमाग पर बुरा असर डालती है.



आज की पीढ़ी को गलत चीजें दिखाने से हानि : ज्योतिष शास्त्री पंडित प्रिया शरण त्रिपाठी के मुताबिक आज की दुनिया में रामायण इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि सभी समस्या के निदान मर्यादा पुरुषोत्तम राम के पास हैं. आजकल के बच्चों में खास तरह का वेग देखने को मिल रहा है. जिसमें थोड़ी अवज्ञा थोड़ी अनुशासनहीनता थोड़ा व्यसन और ऐसे में जब बच्चे अपने माता-पिता गुरु आचार्य देश के कानून का उल्लंघन करते हैं तो रामायण बड़ा समेचीन है. माताएं गर्भ से ही रामायण का पाठ पढ़े और सुने, तो गर्भ से ही बच्चे अनुशासित,राम की तरह होंगे और तभी इस देश में एक अच्छे संस्कार वाले समाज का निर्माण हो पाएगा.

यदि अभी मनोज मुंतशिर जैसे लोगों को नहीं रोका गया तो कहीं वो मिर्जापुर की कास्ट महाभारत में ना करने लगे. क्योंकि आदर्शों को तो समाज ही रोकता है. आदर्शों का अनुबंध और प्रतिबंध समाज के पास है. मुझे लगता है कि रामायण रामचरित तुलसीदास जी वाला ही ठीक है. मनोज मुंतशिर वाला रामायण ठीक नहीं है क्योंकि शास्त्र में संशोधन होना चाहिए पर उत्कृष्ट होना चाहिए .निकृष्ट संशोधन नहीं होना चाहिए. -पंडित प्रिया शरण त्रिपाठी, ज्योतिष

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कुल मिलाकर ये कहना गलत नहीं होगा कि समाज को बनाने के लिए हमारे धार्मिक ग्रंथ की बड़ी भूमिका है.ऐसे में पुरातन परंपराओं और तथ्यों को तोड़ मरोड़कर युवा पीढ़ी के सामने लाने से आने वाले कल खतरनाक हो जाएगा. रामायण जैसे महाकाव्य के चरित्रों को यदि लोगों के सामने लाना है तो वो उसी रुप में हो तो अच्छा.यदि आज की भाषा और शैली का मिलाप रामायण के साथ किया गया तो परिणाम आएंगे वो गंभीर ही होंगे.

आदिपुरुष फिल्म का गर्भ में पल रहे बच्चे पर क्या होगा असर

रायपुर : आदिपुरुष फिल्म को लेकर बवाल मचा हुआ है. लोग इस फिल्म की आलोचना कर रहे हैं. वहीं कुछ लोग इस फिल्म के समर्थन में भी खड़े हैं. लेकिन सवाल यह है कि जो रामायण पहले पढ़ी सुनी और देखी गई थी उसके बाद इस फिल्म के संवाद और दृश्यों का आने वाली पीढ़ी पर क्या प्रभाव पड़ेगा. खासकर यदि गर्भवती महिलाएं इस फिल्म को देखती हैं तो उनके पैदा होने वाले बच्चे पर किस तरह का असर देखने को मिलेगा. क्योंकि कहा जाता है कि जब बच्चा गर्भ में रहता है तो गर्भवती महिलाओं के आसपास का वातावरण रहन-सहन खान-पान बोलचाल और आचार विचार का पैदा होने वाले बच्चे पर प्रभाव डालते हैं.बच्चा अपनी मां के पेट में ही कई सारी बातों को सीख लेता है.


अभिमन्यु ने गर्भ में ही सीखा था चक्रव्यूह के अंदर प्रवेश करने का तरीका : इसका उल्लेख हमारे पुराने ग्रंथों में भी है. हम महाभारत के समय की बात करें तो अर्जुन के बेटे अभिमन्यु ने चक्रव्यूह में घुसने की कला मां के गर्भ में रहते हुए सीखी थी.उनके पिता अर्जुन, जब सुभद्रा को चक्रव्यूह भेदकर बाहर निकलने का तरीका बता रहे थे, तो सुभद्रा सो गईं थी. इसलिए अभिमन्यु चक्रव्यूह में घुसने का तरीका तो सीख गए,लेकिन उससे निकलने का नहीं. जिस वजह से कौरव और पांडव युद्ध के दौरान अभिमन्यु चक्रव्यूह को भेदकर अंदर तो घुस गया लेकिन बाहर नहीं निकल सका और उसकी मौत हो गई.

गर्भ में ही बच्चों को दिए जा सकते हैं संस्कार : ऑबस्टेट्रीशियन ऐंड गॉयनेकॉलाजिस्ट (प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ) डॉ. नीरज पहलाजानी के मुताबिक मां बच्चे की पहली पाठशाला होती है, चौथे पांचवें महीने से मां के गर्भ में पल रहा बच्चा आसपास की हलचल को महसूस कर सकता है. यही वजह है कि कहा जाता है कि जब कोई महिला गर्भवती हो तो उसके खान पान रहन सहन उठने बैठने बोलचाल का विशेष ध्यान रखना चाहिए.

आसपास धार्मिक माहौल बनाने से गर्भ में पल रहे बच्चे के दिमाग पर असर पड़ता है. जैसे धार्मिक ग्रंथों का पढ़ना और इन ग्रंथों में सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ रामायण है. कहा जाता है कि गर्भवती महिलाओं के रामायण पढ़ने, सुनने और देखने से पैदा होने वाले बच्चे पर अच्छा प्रभाव होता है . ज्यादातर गर्भवती महिलाएं रामायण पढ़ती और सुनती हैं. रामायण फिल्म, रामायण धारावाहिक देखती हैं. इससे उनका बेटा सुंदर स्वस्थ और संस्कारी होता है. -डॉ. नीरज पहलाजानी,ऑबस्टेट्रीशियन एंड गॉयनेकॉलाजिस्ट

आदिपुरुष देखने पर पड़ सकता है बड़ा असर : आदिपुरुष फिल्म को लेकर डॉक्टर का भी मानना है कि लोग इस फिल्म को रामायण का अपडेट वर्जन मानकर देखने के लिए गए थे. लेकिन जब लोगों के सामने फिल्म आई तो सबकुछ बदला जा चुका था.लोगों को अब अपने बच्चों को समझाने में दिक्कत आ रही है कि उन्होंने राम और रावण की क्या छवि दिखाई थी और यहां क्या देखने को मिल रहा है. हनुमान के संवाद निम्न स्तर के हैं. जो बच्चों के दिमाग पर बुरा असर डालती है.



आज की पीढ़ी को गलत चीजें दिखाने से हानि : ज्योतिष शास्त्री पंडित प्रिया शरण त्रिपाठी के मुताबिक आज की दुनिया में रामायण इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि सभी समस्या के निदान मर्यादा पुरुषोत्तम राम के पास हैं. आजकल के बच्चों में खास तरह का वेग देखने को मिल रहा है. जिसमें थोड़ी अवज्ञा थोड़ी अनुशासनहीनता थोड़ा व्यसन और ऐसे में जब बच्चे अपने माता-पिता गुरु आचार्य देश के कानून का उल्लंघन करते हैं तो रामायण बड़ा समेचीन है. माताएं गर्भ से ही रामायण का पाठ पढ़े और सुने, तो गर्भ से ही बच्चे अनुशासित,राम की तरह होंगे और तभी इस देश में एक अच्छे संस्कार वाले समाज का निर्माण हो पाएगा.

यदि अभी मनोज मुंतशिर जैसे लोगों को नहीं रोका गया तो कहीं वो मिर्जापुर की कास्ट महाभारत में ना करने लगे. क्योंकि आदर्शों को तो समाज ही रोकता है. आदर्शों का अनुबंध और प्रतिबंध समाज के पास है. मुझे लगता है कि रामायण रामचरित तुलसीदास जी वाला ही ठीक है. मनोज मुंतशिर वाला रामायण ठीक नहीं है क्योंकि शास्त्र में संशोधन होना चाहिए पर उत्कृष्ट होना चाहिए .निकृष्ट संशोधन नहीं होना चाहिए. -पंडित प्रिया शरण त्रिपाठी, ज्योतिष

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कुल मिलाकर ये कहना गलत नहीं होगा कि समाज को बनाने के लिए हमारे धार्मिक ग्रंथ की बड़ी भूमिका है.ऐसे में पुरातन परंपराओं और तथ्यों को तोड़ मरोड़कर युवा पीढ़ी के सामने लाने से आने वाले कल खतरनाक हो जाएगा. रामायण जैसे महाकाव्य के चरित्रों को यदि लोगों के सामने लाना है तो वो उसी रुप में हो तो अच्छा.यदि आज की भाषा और शैली का मिलाप रामायण के साथ किया गया तो परिणाम आएंगे वो गंभीर ही होंगे.

Last Updated : Jun 26, 2023, 1:31 PM IST
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