रायपुर: छत्तीसगढ़ के विभिन्न सरकारी विभागों में फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर अफसर और शासकीय कर्मचारी बने लोगों की मुश्किलें बर्खास्तगी के बाद भी कम नहीं होगी. राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग ने इन सभी दोषियों के खिलाफ धारा 420 के तहत एफआईआर करने और इनके द्वारा सेवाकाल के दौरान अर्जित की गई सरकारी राशि की वसूली करने की अनुशंसा की है.
इसके लिए आयोग ने राज्य सरकार को एक पत्र भी प्रेषित किया है. आयोग की सदस्य अर्चना पोर्ते ने बताया कि साल 2000 से 2020 तक फर्जी जाति प्रमाण पत्र का उपयोग कर नौकरी हासिल करने वालों में, डिप्टी कलेक्टर और डीएसपी रैंक तक के ऑफिसर शामिल हैं. इनमें से ज्यादातर लोगों ने अनुसूचित जनजाति वर्ग का ही फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनवाकर नौकरी हासिल की है.
पोर्ते का मानना है कि, ऐसी गड़बड़ी कर आदिवासियों का हक छीनने वालों पर कड़ी कार्रवाई होगी. तभी ऐसे मामलों की पुनरावृत्ति पर रोक लग पाएगी. इस मामले में दोषी पाए गए कई लोगों ने अनुसूचित जाति वर्ग का भी फर्जी प्रमाण पत्र बनवाया था. राज्य अनुसूचित जाति आयोग की सदस्य पद्मा मनहर ने भी ऐसे लोगों पर कड़ी कार्रवाई की मांग की है.
राज्य गठन के बाद चर्चा में फर्जी जाति का मामला
छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण 1 नवम्बर 2000 को हुआ, जिसके बाद प्रदेश की सत्ता की कमान कांग्रेस नेता अजीत जोगी ने संभाली. जोगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद ही विपक्षी दल भाजपा ने उनकी जाति के मुद्दे को लेकर सवाल उठाने तेज कर दिए. यह मामला लंबे समय तक न्यायालय में भी चलता रहा. इस मामले को राजनीतिक फायदे नुकसान से भी जोड़कर देखा गया. लेकिन प्रदेश में वर्ष 2001 में फर्जी जाति प्रमाण पत्र के जरिये सरकारी नौकरी हासिल करने का पहला मामला प्रकाश में आया. इसके बाद साल 2002 में 4, वर्ष 2004 में 2, वर्ष 2005 में 10, 2006 में 5, 2007 में 21, 2008 में 8, वर्ष 2009 में 6, 2010 में 6. इसके अलावा वर्ष 2011 से लेकर वर्ष 2020 तक में 186 प्रकरण फर्जी जाति प्रमाण पत्र के सामने आए.
सरकार द्वारा गठित की गई उच्च स्तरीय छानबीन समिति
मामले को लेकर सरकार द्वारा गठित की गई उच्च स्तरीय छानबीन समिति को साल 2000 से लेकर 2020 तक 758 मामले फर्जी जाति प्रमाणपत्र के प्राप्त हुए. इसमें 659 प्रकरणों की जांच के बाद इसका निराकरण किया गया. 267 मामलों में जाति प्रमाण पत्र फर्जी पाए गए. जिनकी सूची संबंधित विभाग को कार्रवाई के लिए भेजी गई. इनमें से सिर्फ एक कर्मचारी की ही सेवा समाप्त की गई, बाकी 13 मामले अभी विभागीय स्तर पर अटके हैं.शेष मामले हाईकोर्ट में विचाराधीन हैं और उन पर स्टे लगा है. जिन बड़े अधिकारियों की जाति प्रमाण पत्र को छानबीन समिति ने फर्जी माना उनमें डिप्टी कलेक्टर आनंद मसीह, अनुराग लाल, संयुक्त कलेक्टर शंकर लाल डगला और उनके बेटे सुरेश कुमार डगला, संयुक्त आयुक्त भुवाल सिंह, एसडीएम सुनील मैत्री, उपायुक्त सी.एस.कोट्रीवार, ऑडिटर रामाश्रय सिंह, असिस्टेंट सर्जन डॉ. आर.के.सिंह, संयुक्त संचालक क्रिस्टीना सी.एस.लाल, सीईओ राधेश्याम मेहरा के नाम शामिल हैं. इनमें से ज्यादातर लोगों का मामला न्यायालय में विचाराधीन है.
कानूनी दांव पेंच से दोषी अधिकारी लंबे अरसे बाद भी पद पर काबिज
मामले में प्रदेश सरकार के मुखिया भूपेश बघेल पहले ही निर्देश दे चुके हैं कि, फर्जी जाति प्रमाण पत्र से नौकरी कर रहे सरकारी कर्मियों को बर्खास्त करने के लिए समुचित कदम उठाए जाएं. मुख्यमंत्री बघेल इस विषय को लेकर कोर्ट में चल रहे मामलों में महाधिवक्ता को भी पहल करने के निर्देश दिए हैं. सामान्य प्रशासन विभाग के तत्कालीन सचिव डॉ. कमलप्रीत सिंह के द्वारा 5 दिसम्बर 2020 को जारी परिपत्र में उल्लेख है कि, फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर शासन के उच्च पदों में नौकरी पाने वाले अधिकारियों - कर्मचारियों की सेवाएं को तत्काल समाप्त करने के लिए शासन के समस्त विभाग, अध्यक्ष राजस्व मंडल बिलासपुर, समस्त संभागीय आयुक्त, विभागाध्यक्ष, जिलों के कलेक्टर्स और मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत के नाम समय– समय पर पत्र जारी करते रहे हैं. इस मामले में डॉ. कमलप्रीत सिंह द्वारा जारी पत्र में उल्लेख किया गया है कि, पूर्व में भी विभाग द्वारा परिपत्र क्रमांक एफ 13–16/2015 आ.प्र./1 –3, 26 अक्टूबर 2019 समसंख्यक परिपत्र 30 नवम्बर 2019 में निर्देशित किया है कि, ऐसे शासकीय सेवकों की सेवाएं तत्काल समाप्त की जानी है. जिनकी जाति प्रमाण पत्र छानबीन समिति द्वारा फर्जी तथा गलत पाए गये हैं. मामले में विभाग के निर्देशों पर क्या कार्रवाई की गई है, इसकी जानकारी तत्काल आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति विकास विभाग को कराने के लिए कहा था.
शासन स्तर पर हो रही है कड़ी जांच
ऐसा नहीं है कि, शासन स्तर से कोई कसर छोड़ी जा रही हो. शासन के जीएडी यानी सामान्य प्रशासन विभाग ने यह भी कहा था कि सेवा समाप्ति करने के पूर्व प्रशासकीय विभाग द्वारा हाईकोर्ट में कैविएट दायर किया जाए. जिन प्रकरणों में हाईकोर्ट का स्टे प्राप्त हो उनमें जीएडी के निर्देशानुसार विधि विभाग द्वारा समीक्षा की जाए और प्रशासकीय विभाग द्वारा स्थगन समाप्त करने की कार्रवाई तत्परता से की जा सके. साथ ही सभी फर्जी जाति प्रमाण पत्र से सम्बंधित की गई कार्रवाई की जानकारी को सप्ताह भर के भीतर अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति विकास विभाग को उपलब्ध करवाया जाए. हालांकि दोषी पाए गए, अधिकारियों–कर्मचारियों में से कुछ तो ऐसे हैं जो 15 से 18 वर्ष पहले ही अयोग्य करार दे दिए गये थे. लेकिन कानूनी कारणों से ये आज भी नौकरी कर रहे हैं.
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कार्रवाई के लिए सरकार भी प्रतिबद्ध
इस विषय में ईटीवी भारत से फोन पर बातचीत के दौरान छत्तीसगढ़ अनुसूचित जनजाति आयोग की सदस्य अर्चना पोर्ते ने बताया कि, फर्जी प्रमाणपत्र के आधार पर नौकरी करना एक बड़ा अपराध है, जिसके लिए दोषियों को बर्खास्त तो किया जाना चाहिए. ऐसा करके इन्होंने आदिवासी समाज के बेरोजगारों का हक भी छीना है. इसलिए धारा 420 के तहत इनके खिलाफ मामला दर्ज किया जाए. इनसे सरकारी पैसे जो इन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान अर्जित किये हैं उसे भी वापस लिया जाए. तभी ऐसी गड़बड़ी करने से लोग परहेज करेंगें.
किस विभाग में जमे हैं कितने फर्जी अफसर ?
- स्कूल शिक्षा विभाग-44
- पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग-15
- सामान्य प्रशासन विभाग-14
- कृषि विभाग-14
- ग्रामोद्योग विभाग-12
- जल संसाधन विभाग-14
- लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग और चिकित्सा शिक्षा विभाग-9
- आदिम जाति विभाग-8
- लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग-8
- राजस्व विभाग-7
- गृह विभाग-7
- ऊर्जा विभाग-7
- पशुधन और मछली पालन विभाग-6
- कौशल विकास, तकनीकी शिक्षा एवं रोजगार विभाग-5
- नगरीय प्रशासन विभाग-5
- वन विभाग-5
- महिला एवं बाल विकास विभाग-4
- वाणिज्य एवं उद्योग विभाग-4
- सहकारिता विभाग-3
- उच्च शिक्षा विभाग-3
इसी तरह अन्य विभागों में भी कई अफसर और कर्मचारी कार्यरत हैं .