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SPECIAL: कोरोना काल में डेयरी व्यवसाय बेहाल, पशुपालकों ने पशु बेच दिए तो कई दुकानों पर भी लगे ताले

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Published : Sep 3, 2020, 8:31 PM IST

Updated : Sep 3, 2020, 8:41 PM IST

छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में खेती-किसानी और पशुपालन मुख्य व्यवसाय के रूप में जाना जाता है. यहां सहकारी डेयरियों के साथ ही बड़े पैमाने पर पशुपालन और डेयरी का व्यवसाय होता है, लेकिन मुख्य सीजन में ही लॉकडाउन के बीच इस व्यवसाय में बहुत ही बुरा असर पड़ा है. डेयरी संचालक और इससे जुड़े लोगों को 40 फीसदी तक का नुकसान उठाना पड़ा है. पढ़िए पूरी खबर...

40-percent-loss-to-dairy-business-and-animal-husbandry-due-to-corona-virus-in-raipur
रायपुर के डेयरी संचालक परेशान

रायपुर: कोरोना वायरस के संक्रमण से वैसे तो हर क्षेत्र पर काफी बुरा असर पड़ा है. तमाम सेक्टर कोरोना की मार झेल रहे हैं, लेकिन कच्चे खाने-पीने के सामानों से जुड़े उद्योगों पर इसका असर व्यापक रूप से देखने को मिल रहा है. हालांकि खाने-पीने के सामानों को लेकर लॉकडाउन के समय से कुछ रियायत दी गई थी, लेकिन वह भी इनके लिए नाकाफी साबित हुई.

रायपुर के डेयरी संचालक परेशान

छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में खेती किसानी और पशुपालन मुख्य व्यवसाय के रूप में जाना जाता है. यहां सहकारी डेयरियों के साथ ही बड़े पैमाने पर पशुपालन और डेयरी का व्यापार व्यवसाय होता है, लेकिन मुख्य सीजन में ही लॉकडाउन के बीच इस व्यवसाय में बहुत ही बुरा असर पड़ा है. दूध डेयरी से जुड़े हुए व्यापारियों की मानें तो उन्हें लॉकडाउन के कारण सालभर का 40 फीसदी तक का नुकसान हो चुका है.

40 percent loss to dairy business and Animal husbandry due to corona virus in raipur
रायपुर के डेयरी संचालक परेशान

सप्लाई और उत्पादन में आई कमी ने पहुंचाया नुकसान

कोविड-19 के दौर ने ऐसे तो किसी सेक्टर को नहीं छोड़ा है. कोरोना जहां इसने बर्बादी ना मचाई हो डेयरी और दूध अति आवश्यक वस्तु में शामिल है. तमाम देशों में आपातकालीन हालात जैसे कर्फ्यू में भी दूध और डेयरी से जुड़े चीजों को आवागमन की अनुमति होती है. कोरोना के समय भी डेयरी व्यवसाय को अनुमति तो मिली, लेकिन सप्लाई और उत्पादन में आई कमी ने डेयरी व्यवसाय को बहुत नुकसान पहुंचाया.

डेयरी संचालकों से ली गई जानकारी

छत्तीसगढ़ कृषि प्रधान राज्य होने के कारण ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था में डेयरी और दूध उत्पादन काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है. डेयरियों से ही दूध के उत्पादन और इससे जुड़े उत्पाद जैसे दही, खोवा, पनीर और अन्य मिष्ठान से जुड़े व्यापार शामिल हैं. जो इन दिनों मंदी की मार झेल रहे हैं.

डेयरी संचालक प्रकाश देवांगन बताते हैं कि साल भर में जितने डेयरी का व्यवसाय होता है. उसमें प्रमुख समय मार्च से लेकर जून तक का होता है, क्योंकि डेयरी व्यवसाय में दूध के अलावा बड़ी मात्रा में दही, पनीर, खोवा और घी जैसी चीजें इन दिनों में व्यवसाय के लिहाज से महत्वपूर्ण होता है. अब लॉकडाउन के समय ही बड़े त्योहारों और शादियों का मुख्य सीजन रहा है. जिससे डेयरी व्यवसाय को काफी नुकसान हुआ है.

25 हजार किलो से घटकर 15 सौ किलो सप्लाई

प्रकाश देवांगन बताते हैं कि रायपुर में ही तमाम छोटे-बड़े होटलों में साधारण दिनों में 5000 किलो तक की पनीर की सप्लाई होती थी. शादी के सीजन में तो 20 से 25000 किलो तक पनीर की सप्लाई होती है, लेकिन इस बार इतनी सप्लाई नहीं हो पाई. यह सप्लाई घटकर महज 1500 किलो तक ही सीमित रह गई है. वह भी घरेलू उपभोक्ताओं के कारण रह गई है. ऐसे में इतनी बड़ी मात्रा में दूध और इनके प्रोडक्ट को बचा पाना बड़ी चुनौती है, क्योंकि दूध कच्चा आइटम होता है. इसकी सप्लाई में कमी आने से यह पूरा खराब हो जाता है.

छत्तीसगढ़ में दुग्ध को लेकर दुग्ध महासंघ ने बड़ा काम किया है. प्रदेश में पशुपालकों और उनके उत्पादों को खरीदने के लिए दुग्ध महासंघ की ओर से सहकारी समितियों के माध्यम से खरीदी की जाती है. छत्तीसगढ़ में राज्य की विभिन्न सहकारी डेयरी के माध्यम से देवभोग दुग्ध महासंघ दूध की खरीदी करता है.

  • छत्तीसगढ़ में दुग्ध महासंघ का गठन फरवरी 2013 में किया गया है.
  • इसके बाद से लगातार दुग्ध महासंघ के माध्यम से सहकारी समितियों से दूध की खरीदी की जा रही है.
  • सघन डेयरी विकास परियोजना के तहत रायपुर, राजनांदगांव, धमतरी और महासमुंद में 190 दूध सहकारी समितियों का गठन.
  • 1200 से 1500 लीटर क्षमता के आठ बल्क मिल्क कुलर इकाई केंद्र स्थापित किए गए हैं.
  • नेशनल प्रोग्राम फॉर डेयरी डेवलपमेंट के तहत कांकेर, जांजगीर-चांपा, बालोद और बेमेतरा जिले में 180 दूध सहकारी समितियों का गठन किया गया है.
  • इसके अलावा 13 नए बल्क मिल्क कुलर इकाइयों से 26 हजार लीटर कूलिंग क्षमता विस्तार का कार्य भी किया गया है.
  • छत्तीसगढ़ में वर्तमान में 735 सहकारी समितियों के माध्यम से 90000 लीटर दूध की प्रतिदिन खरीदी होती है.
  • दुग्ध महासंघ बनने के समय 2003 4 में प्रदेश में केवल 188 समितियां भी गठित थी इस लिहाज से 350 प्रतिशत वृद्धि हुई है.
  • पहले जहां औसत दूध संकलन 16700 लीटर होता था.
  • अब 90000 लीटर दूध प्रतिदिन संग्रहित किया जाता है.
  • पहले दूध उत्पादकों को दूध का मूल्य 8 रुपये 73 पैसे प्रति लीटर दिया जाता था.
  • दुग्ध उत्पादकों को दुग्ध महासंघ की ओर से बकायदा प्रशिक्षण भी दिया जाता है.
  • इसके लिए दुग्ध उत्पादन तकनीक से 7000 पशुपालकों को व्यावहारिक प्रशिक्षण भी दिया गया है.
  • इतना ही नहीं राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड आनंद गुजरात भेजकर भी 730 पशुपालकों को प्रशिक्षित भी किया गया है.

दूध सप्लाई में कमी

छत्तीसगढ़ में कोरोना के कारण लॉकडाउन लंबे समय तक लगा रहा है, हालांकि लॉकडाउन पीरियड में भी दूध और डेयरी संचालकों को समय दिया गया था, लेकिन वह समय इनके लिए बेहद कम साबित हुआ. सुबह 6 बजे से 10 बजे तक ही दूध सप्लाई का समय निर्धारित रहा. ऐसे में बड़ी मात्रा में दूग्ध उत्पाद सप्लाई नहीं होने के कारण प्रभावित रहा. छत्तीसगढ़ में दुग्ध महासंघ की ओर से ही देवभोग प्रोडक्ट का संचालन किया जाता है. देवभोग में न केवल दूध बल्कि दही, मही, श्रीखंड, घी, खोवा और मिठाइयां भी बनाई जाती है, जिसका बड़ा ही अच्छा मार्केट है. दुग्ध महासंघ की ओर से तो अपने तमाम प्रोडक्ट को देवभोग मिल्क पार्लर की ओर से ही बेचा जाता है. लोगों तक सीधा पहुंचाया जाता है. कोरोना के दौर में लोग डेयरी और इससे बने प्रोडक्ट को लेकर भी दूरी बनाते चले गए. वहीं मिल्क पार्लर महासंघ ने कोरोना के दौर में बेहद परेशानी भरा समय झेला है.

देवभोग दूध पार्लर संघ के प्रदेश अध्यक्ष शिव दत्ता ने बताया कि शादी-ब्याह और त्योहार के मुख्य सीजन में भी इतना मार्केट नहीं हो पाया जितना होता था. लॉकडाउन के पीरियड में भी समय के बंधन में व्यापार को बहुत नुकसान हुआ है. अब आने वाले समय में भी त्योहार को लेकर उम्मीद काफी कम है. बहुत से पार्लर संचालक अब मायूस हो चुके हैं.

डिमांड में आई कमी
दूध व्यवसाय को लेकर रायपुर के होटल व्यवसाय एसोसिएशन से भी जानकारी ली गई. होटल व्यवसाय महासंघ के सदस्य अवध नारायण शुक्ला ने बताया कि तमाम बड़े होटलों में डेयरी और इससे जुड़े उत्पादों की डिमांड तो वैसे रेगुलर होती है, क्योंकि तमाम होटलों में छोटे-मोटे आयोजन के साथ पनीर और मिठाई लगातार बनते रहते हैं, लेकिन शादी पार्टियों के दरमियान हमें हजारों किलो डेयरी उत्पाद की जरूरत पड़ती रही है. अब क्योंकि कोरोना वायरस के कारण मार्च से लेकर जुलाई तक तमाम बड़े होटल बंद रहे. शादी पार्टियों का मुख्य सीजन ही निकल गया. ऐसे में डेयरी उत्पाद कहां से मंगाते. इतनी बड़ी मात्रा में डेयरी उत्पाद कहां खपाते.

कोरोना के कारण कई पशुपालकों ने बेच दिए पशु

वहीं पशु पालक ने बताया कि दूध की रोजाना सप्लाई हो या न हो. वह इसके लिए उत्पादन रोज करते हैं. ऐसे हालात में पशुओं को चारा खिलाना भी महंगा साबित हो रहा है. कोरोना के कारण अब पशुओं को खिलाने वाले चारे भी बहुत महंगे हो चुके हैं. कई पशुपालक तो अब अपनी डेयरी को बंद कर पशुओं को बेच भी दिए हैं. इस तरह से डेयरी व्यापार बर्बाद हो गया. पशुपालक ने बताया कि प्रदेश में दुग्ध का उत्पादन तो भरपूर होता है, लेकिन इसकी डिमांड में कमी आने का खामियाजा तमाम डेयरी व्यवसाय से जुड़े हुए लोगों को भुगतना पड़ रहा है.

डिमांड की कमी ने डेयरी व्यवसाय को डुबाया

डेयरी व्यवसाय को लेकर पड़ताल में यह बात सामने आ रही है कि इस व्यवसाय में उत्पादन के साथ डिमांड की कमी ने डेयरी व्यवसाय को डुबाने का काम किया है. साल में 40 फीसदी व्यापार शादी-ब्याह के सीजन में ही होता रहा है. शादी-ब्याह के सीजन में डेयरी से जुड़े हुए प्रोडक्ट जैसे खोवा, घी, पनीर की डिमांड हजारों टनों में होती थी, लेकिन यह पूरा सीजन ही बर्बाद हो चुका है. ऐसे में अब प्रदेश में दूध उत्पादकों के सामने बहुत बड़ी चुनौती देखने को मिल रही है.

रायपुर: कोरोना वायरस के संक्रमण से वैसे तो हर क्षेत्र पर काफी बुरा असर पड़ा है. तमाम सेक्टर कोरोना की मार झेल रहे हैं, लेकिन कच्चे खाने-पीने के सामानों से जुड़े उद्योगों पर इसका असर व्यापक रूप से देखने को मिल रहा है. हालांकि खाने-पीने के सामानों को लेकर लॉकडाउन के समय से कुछ रियायत दी गई थी, लेकिन वह भी इनके लिए नाकाफी साबित हुई.

रायपुर के डेयरी संचालक परेशान

छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में खेती किसानी और पशुपालन मुख्य व्यवसाय के रूप में जाना जाता है. यहां सहकारी डेयरियों के साथ ही बड़े पैमाने पर पशुपालन और डेयरी का व्यापार व्यवसाय होता है, लेकिन मुख्य सीजन में ही लॉकडाउन के बीच इस व्यवसाय में बहुत ही बुरा असर पड़ा है. दूध डेयरी से जुड़े हुए व्यापारियों की मानें तो उन्हें लॉकडाउन के कारण सालभर का 40 फीसदी तक का नुकसान हो चुका है.

40 percent loss to dairy business and Animal husbandry due to corona virus in raipur
रायपुर के डेयरी संचालक परेशान

सप्लाई और उत्पादन में आई कमी ने पहुंचाया नुकसान

कोविड-19 के दौर ने ऐसे तो किसी सेक्टर को नहीं छोड़ा है. कोरोना जहां इसने बर्बादी ना मचाई हो डेयरी और दूध अति आवश्यक वस्तु में शामिल है. तमाम देशों में आपातकालीन हालात जैसे कर्फ्यू में भी दूध और डेयरी से जुड़े चीजों को आवागमन की अनुमति होती है. कोरोना के समय भी डेयरी व्यवसाय को अनुमति तो मिली, लेकिन सप्लाई और उत्पादन में आई कमी ने डेयरी व्यवसाय को बहुत नुकसान पहुंचाया.

डेयरी संचालकों से ली गई जानकारी

छत्तीसगढ़ कृषि प्रधान राज्य होने के कारण ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था में डेयरी और दूध उत्पादन काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है. डेयरियों से ही दूध के उत्पादन और इससे जुड़े उत्पाद जैसे दही, खोवा, पनीर और अन्य मिष्ठान से जुड़े व्यापार शामिल हैं. जो इन दिनों मंदी की मार झेल रहे हैं.

डेयरी संचालक प्रकाश देवांगन बताते हैं कि साल भर में जितने डेयरी का व्यवसाय होता है. उसमें प्रमुख समय मार्च से लेकर जून तक का होता है, क्योंकि डेयरी व्यवसाय में दूध के अलावा बड़ी मात्रा में दही, पनीर, खोवा और घी जैसी चीजें इन दिनों में व्यवसाय के लिहाज से महत्वपूर्ण होता है. अब लॉकडाउन के समय ही बड़े त्योहारों और शादियों का मुख्य सीजन रहा है. जिससे डेयरी व्यवसाय को काफी नुकसान हुआ है.

25 हजार किलो से घटकर 15 सौ किलो सप्लाई

प्रकाश देवांगन बताते हैं कि रायपुर में ही तमाम छोटे-बड़े होटलों में साधारण दिनों में 5000 किलो तक की पनीर की सप्लाई होती थी. शादी के सीजन में तो 20 से 25000 किलो तक पनीर की सप्लाई होती है, लेकिन इस बार इतनी सप्लाई नहीं हो पाई. यह सप्लाई घटकर महज 1500 किलो तक ही सीमित रह गई है. वह भी घरेलू उपभोक्ताओं के कारण रह गई है. ऐसे में इतनी बड़ी मात्रा में दूध और इनके प्रोडक्ट को बचा पाना बड़ी चुनौती है, क्योंकि दूध कच्चा आइटम होता है. इसकी सप्लाई में कमी आने से यह पूरा खराब हो जाता है.

छत्तीसगढ़ में दुग्ध को लेकर दुग्ध महासंघ ने बड़ा काम किया है. प्रदेश में पशुपालकों और उनके उत्पादों को खरीदने के लिए दुग्ध महासंघ की ओर से सहकारी समितियों के माध्यम से खरीदी की जाती है. छत्तीसगढ़ में राज्य की विभिन्न सहकारी डेयरी के माध्यम से देवभोग दुग्ध महासंघ दूध की खरीदी करता है.

  • छत्तीसगढ़ में दुग्ध महासंघ का गठन फरवरी 2013 में किया गया है.
  • इसके बाद से लगातार दुग्ध महासंघ के माध्यम से सहकारी समितियों से दूध की खरीदी की जा रही है.
  • सघन डेयरी विकास परियोजना के तहत रायपुर, राजनांदगांव, धमतरी और महासमुंद में 190 दूध सहकारी समितियों का गठन.
  • 1200 से 1500 लीटर क्षमता के आठ बल्क मिल्क कुलर इकाई केंद्र स्थापित किए गए हैं.
  • नेशनल प्रोग्राम फॉर डेयरी डेवलपमेंट के तहत कांकेर, जांजगीर-चांपा, बालोद और बेमेतरा जिले में 180 दूध सहकारी समितियों का गठन किया गया है.
  • इसके अलावा 13 नए बल्क मिल्क कुलर इकाइयों से 26 हजार लीटर कूलिंग क्षमता विस्तार का कार्य भी किया गया है.
  • छत्तीसगढ़ में वर्तमान में 735 सहकारी समितियों के माध्यम से 90000 लीटर दूध की प्रतिदिन खरीदी होती है.
  • दुग्ध महासंघ बनने के समय 2003 4 में प्रदेश में केवल 188 समितियां भी गठित थी इस लिहाज से 350 प्रतिशत वृद्धि हुई है.
  • पहले जहां औसत दूध संकलन 16700 लीटर होता था.
  • अब 90000 लीटर दूध प्रतिदिन संग्रहित किया जाता है.
  • पहले दूध उत्पादकों को दूध का मूल्य 8 रुपये 73 पैसे प्रति लीटर दिया जाता था.
  • दुग्ध उत्पादकों को दुग्ध महासंघ की ओर से बकायदा प्रशिक्षण भी दिया जाता है.
  • इसके लिए दुग्ध उत्पादन तकनीक से 7000 पशुपालकों को व्यावहारिक प्रशिक्षण भी दिया गया है.
  • इतना ही नहीं राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड आनंद गुजरात भेजकर भी 730 पशुपालकों को प्रशिक्षित भी किया गया है.

दूध सप्लाई में कमी

छत्तीसगढ़ में कोरोना के कारण लॉकडाउन लंबे समय तक लगा रहा है, हालांकि लॉकडाउन पीरियड में भी दूध और डेयरी संचालकों को समय दिया गया था, लेकिन वह समय इनके लिए बेहद कम साबित हुआ. सुबह 6 बजे से 10 बजे तक ही दूध सप्लाई का समय निर्धारित रहा. ऐसे में बड़ी मात्रा में दूग्ध उत्पाद सप्लाई नहीं होने के कारण प्रभावित रहा. छत्तीसगढ़ में दुग्ध महासंघ की ओर से ही देवभोग प्रोडक्ट का संचालन किया जाता है. देवभोग में न केवल दूध बल्कि दही, मही, श्रीखंड, घी, खोवा और मिठाइयां भी बनाई जाती है, जिसका बड़ा ही अच्छा मार्केट है. दुग्ध महासंघ की ओर से तो अपने तमाम प्रोडक्ट को देवभोग मिल्क पार्लर की ओर से ही बेचा जाता है. लोगों तक सीधा पहुंचाया जाता है. कोरोना के दौर में लोग डेयरी और इससे बने प्रोडक्ट को लेकर भी दूरी बनाते चले गए. वहीं मिल्क पार्लर महासंघ ने कोरोना के दौर में बेहद परेशानी भरा समय झेला है.

देवभोग दूध पार्लर संघ के प्रदेश अध्यक्ष शिव दत्ता ने बताया कि शादी-ब्याह और त्योहार के मुख्य सीजन में भी इतना मार्केट नहीं हो पाया जितना होता था. लॉकडाउन के पीरियड में भी समय के बंधन में व्यापार को बहुत नुकसान हुआ है. अब आने वाले समय में भी त्योहार को लेकर उम्मीद काफी कम है. बहुत से पार्लर संचालक अब मायूस हो चुके हैं.

डिमांड में आई कमी
दूध व्यवसाय को लेकर रायपुर के होटल व्यवसाय एसोसिएशन से भी जानकारी ली गई. होटल व्यवसाय महासंघ के सदस्य अवध नारायण शुक्ला ने बताया कि तमाम बड़े होटलों में डेयरी और इससे जुड़े उत्पादों की डिमांड तो वैसे रेगुलर होती है, क्योंकि तमाम होटलों में छोटे-मोटे आयोजन के साथ पनीर और मिठाई लगातार बनते रहते हैं, लेकिन शादी पार्टियों के दरमियान हमें हजारों किलो डेयरी उत्पाद की जरूरत पड़ती रही है. अब क्योंकि कोरोना वायरस के कारण मार्च से लेकर जुलाई तक तमाम बड़े होटल बंद रहे. शादी पार्टियों का मुख्य सीजन ही निकल गया. ऐसे में डेयरी उत्पाद कहां से मंगाते. इतनी बड़ी मात्रा में डेयरी उत्पाद कहां खपाते.

कोरोना के कारण कई पशुपालकों ने बेच दिए पशु

वहीं पशु पालक ने बताया कि दूध की रोजाना सप्लाई हो या न हो. वह इसके लिए उत्पादन रोज करते हैं. ऐसे हालात में पशुओं को चारा खिलाना भी महंगा साबित हो रहा है. कोरोना के कारण अब पशुओं को खिलाने वाले चारे भी बहुत महंगे हो चुके हैं. कई पशुपालक तो अब अपनी डेयरी को बंद कर पशुओं को बेच भी दिए हैं. इस तरह से डेयरी व्यापार बर्बाद हो गया. पशुपालक ने बताया कि प्रदेश में दुग्ध का उत्पादन तो भरपूर होता है, लेकिन इसकी डिमांड में कमी आने का खामियाजा तमाम डेयरी व्यवसाय से जुड़े हुए लोगों को भुगतना पड़ रहा है.

डिमांड की कमी ने डेयरी व्यवसाय को डुबाया

डेयरी व्यवसाय को लेकर पड़ताल में यह बात सामने आ रही है कि इस व्यवसाय में उत्पादन के साथ डिमांड की कमी ने डेयरी व्यवसाय को डुबाने का काम किया है. साल में 40 फीसदी व्यापार शादी-ब्याह के सीजन में ही होता रहा है. शादी-ब्याह के सीजन में डेयरी से जुड़े हुए प्रोडक्ट जैसे खोवा, घी, पनीर की डिमांड हजारों टनों में होती थी, लेकिन यह पूरा सीजन ही बर्बाद हो चुका है. ऐसे में अब प्रदेश में दूध उत्पादकों के सामने बहुत बड़ी चुनौती देखने को मिल रही है.

Last Updated : Sep 3, 2020, 8:41 PM IST
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