रायपुर: छत्तीसगढ़ जो कि भगवान राम के ननिहाल के रूप में जाना जाता है. यहां दीप पर्व को लेकर कुछ ज्यादा ही उत्साह देखने को मिलता है. राजधानी के अलग-अलग इलाकों में श्रीराम के कई मंदिर स्थापित है, जहां दिवाली और तीज त्योहारों पर दर्शन के लिए भक्तों का सैलाब उमड़ता है. ऐसा ही एक विशेष मंदिर है दूधाधारी मठ, जो 500 साल से भी ज्यादा पुराना है. यहां पारंपरिक तरीके से दिवाली का त्योहार मनाया जाता है. दिवाली पर्व को लेकर ETV भारत ने मठ के महंत और छत्तीसगढ़ राज्य गौसेवा आयोग के अध्यक्ष महंत रामसुंदर दास से खास बातचीत की.
दीपावली को लेकर दूधाधारी मठ में भगवान राम का सनातन पद्धति से ही पूजन और श्रृंगार किया जाता है. महंत रामसुंदर दास ने बताया कि दूधाधारी मठ में भगवान श्रीराम जानकी, भगवान बालाजी और हनुमान जी विराजमान हैं. जो कि पूरे दरबार के साथ भक्तों को दर्शन देते हैं. वैसे तो हर रोज यहां पर विशेष पूजन की जाती है, लेकिन दिवाली में महालक्ष्मी जी का विशेष श्रृंगार के साथ पूजा किया जाता है. ऐसा श्रृंगार साल में एक ही बार होता है.
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अयोध्या राम नगरी भी भेजे गए छत्तीसगढ़ से दीये
दूधाधारी मठ के महंत रामसुंदर दास ने बताया कि अयोध्या में भगवान श्रीराम के मंदिर निर्माण को लेकर वैसे तो पूरे देश भर में उत्साह का माहौल है. भगवान श्रीराम के ननिहाल यानी मां कौशल्या की भूमि छत्तीसगढ़ के भक्तों में भी भरपूर उत्साह है. दीप पर्व पर सरयू तट पर विशेष पूजा अर्चना की जा रही है. इस पूजा अर्चना में छत्तीसगढ़ से भी भक्त पहुंचे हैं. दूधाधारी मठ की ओर से अयोध्या में 1200 दीये भेजे गए हैं. खास बात यह है कि यह सभी दीये गोबर से बनाए हुए हैं. गोबर से बने हुए दीये का पुराणों में भी विशेष स्थान है. यही वजह है कि छत्तीसगढ़ में लगातार गोबर से बने दीये को प्राथमिकता दी जा रही है.
श्रीराम जानकी मंदिर का गौरवशाली इतिहास
रायपुर शहर के बूढ़ा तालाब और महाराजबंद तालाब के सामने दूधाधारी मठ में भगवान श्रीराम जानकी, भगवान बालाजी और हनुमान जी विराजमान हैं. मठ के महंत रामसुंदर दास बताते हैं कि दूधाधारी मठ के नामकरण को लेकर भी विशेष कहानी है. वे बताते हैं कि मठ के महंत बलभद्र दास हनुमान जी के परम भक्त थे. वह गाय के दूध से हनुमान जी का अभिषेक करके उसी दूध का सेवन करते थे. दूध के अलावा और कोई भी अंतरण नहीं करते थे. कालांतर में उन्ही के नाम पर मठ का नाम दूधाधारी मठ रखा गया है. मठ के मुख्य द्वार पर स्थापित स्मृति चिन्ह पर संवत 1610 अंकित है. यहां स्थापित भगवान बालाजी की मूर्ति का निर्माण नागपुर के भोसले वंश के राजा ने करवाया है. मंदिर के करीब रावणभाठा मैदान में होने वाला रावण दहन कार्यक्रम भी दूधाधारी मठ के नेतृत्व में ही होता है.