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रायगढ़: महाजेनको की जनसुनवाई का 12 गांव के ग्रामीणों ने किया विरोध - गारे पेलमा कोल ब्लॉक

महाजेनको की अगामी जनसुनवाई को लेकर जिले के 12 गांव के ग्रामीण इसका विरोध कर रहे हैं. ग्रामीणों का मानना है कि नए माइंस के स्थापित होने पर उनका अस्तित्व खतरे में आ जाएगा.

महाजेनको की जनसुनवाई का ग्रामीणों ने किया विरोध
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Published : Sep 17, 2019, 6:30 PM IST

Updated : Sep 17, 2019, 9:00 PM IST

रायगढ़: जिले के तमनार क्षेत्र का गारे पेलमा कोल ब्लॉक एक बार फिर से सुर्खियों में है. इसके पीछे की वजह दो बार की असफल जनसुनवाई के बाद आगामी 27 सितंबर 2019 को महाजेनको की जनसुनवाई का दोबारा आयोजन होना बताया जा रहा है.

महाजेनको की जनसुनवाई का 12 गांव के ग्रामीणों ने किया विरोध

इस बात की जानकारी मिलने के बाद से ही स्थानीय ग्रामीण संभावित पुनः विस्थापन के डर से आशंकित होकर महाजेनको के विरोध में उठ खड़े हुए हैं. उनका कहना है की, 'नए माइंस स्थापित होने पर उनका अस्तित्व ही खतरे में आ जाएगा'.

जनहित याचिका में उच्च न्यायालय से आया था निर्णय
पिछली बार जनसुनवाई से ठीक पहले उच्च न्यायालय बिलासपुर से एक जनहित याचिका में निर्णय आया था, जिसमें उच्च न्यायालय ने सीधे शब्दों में कहा था कि, 'रायगढ़ कलेक्टर को उक्त जनसुनवाई का वैधानिक अधिकार ही नहीं है. इस वजह से महाजेनको की पर्यावरणीय जनसुनवाई को पर्यावरण सचिव की उपस्थिति में ही सम्पन्न होनी चाहिए.'

  • न्यायालय के इस आदेश के बाद महाजेनको की जनसुनवाई में रोक लगा दी गई थी.
  • कंपनी प्रबंधन यह जान चुका था कि अकेले जिला प्रशासन रायगढ़ के सहयोग से इस क्षेत्र में जनसुनवाई करा पाना संभव नहीं है.
  • कुछ महीनों बाद ही माननीय उच्च न्यायालय के आदेश में कहा गया कि छग पर्यावरण संरक्षण मंडल सचिव के माध्यम से जनसुनवाई की व्यवस्था की जाएगी.
  • इस वजह से महाजेनको की आगामी जन-सुनावई तीसरी बार दिनांक 27 सितंबर 2019 को ग्राम डोलेसरा के शासकीय प्राथमिक शाला ग्राउंड में होने जा रही है.

जनसुनवाई के विरोध में करीब 12 गांव

  • रोडोपाली, चितवाही, डोलेसरा, सराईटोला, पाता, कुंजेमुरा, गारे, टिहली, रामपुर, झींकाबहाल, सारसमाल और बजरमुडा गांव (गारे-पेलमा-2) के ग्रामीण जनसुनवाई के विरोध में उठ खड़े हुए हैं.
  • सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस बार की जनसुनवाई में ग्रामीण प्रबंधन और प्रशासन के विरोध में बड़ा प्रदर्शन करने की तैयारी में हैं.
  • कंपनी की संभावित जनसुनवाई के विरोध में खड़े एक ग्रामीण ने बताया कि, 'हजारों ग्रामीण क्षेत्र के जल-जंगल, जमीन को बचाने कंपनी प्रबंधन के विरोध में खड़े होंगे. इनका मानना है कि बार-बार विरोध करने के बावजूद कंपनी कुछ महीनों बाद वापस जनसुनवाई का बहाना लेकर वापस आ जाती है. जिसकी वजह से वहां के ही नहीं बल्कि आसपास के कई गांवों में विस्थापन की संभावनाओं से डर और गुस्से का माहौल बन जाता है.'

'नए उद्योग और खदानों की स्थापना का किया जाए विरोध'

  • इधर महाजेनको की जनसुनवाई के विरोध में मुखर होकर खड़े डॉ. हरिहर पटेल ने बताया कि, 'सरकारी तंत्र के समझ में एक बात क्यों नहीं आती कि किसी एक उद्योग की स्थापना के बदले में 12 गांवों के हजारों ग्रामीण परिवार के लोग और हजारों एकड़ भूमि की व्यवस्था कैसे बिगाड़ सकते हैं, वह भी तब जब जिले की पर्यावरणीय स्थिति इस हद तक बिगड़ चुकी है, जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते.'
  • हरिहर पटेल ने कहा कि, 'तमनार और उसके आसपास के गांवों का पर्यावरण पूरी तरह से बर्बाद हो चुका है, उसके बाद भी सरकार इस क्षेत्र में नए खदान खोलने के प्रयास में है, चुपचाप खड़े होकर यह देखना हमारे भविष्य और आने वाली पीढ़ियों के साथ अन्याय होगा. आपका हमारा यह पहला फर्ज बनता है कि, जिले के बचे-खुचे वन क्षेत्रों में नए उद्योग और खदानों की स्थापना का अपने स्तर पर विरोध जताएं अन्यथा हम भविष्य के साथ बहुत बड़ा अन्याय करेंगे.'

रायगढ़: जिले के तमनार क्षेत्र का गारे पेलमा कोल ब्लॉक एक बार फिर से सुर्खियों में है. इसके पीछे की वजह दो बार की असफल जनसुनवाई के बाद आगामी 27 सितंबर 2019 को महाजेनको की जनसुनवाई का दोबारा आयोजन होना बताया जा रहा है.

महाजेनको की जनसुनवाई का 12 गांव के ग्रामीणों ने किया विरोध

इस बात की जानकारी मिलने के बाद से ही स्थानीय ग्रामीण संभावित पुनः विस्थापन के डर से आशंकित होकर महाजेनको के विरोध में उठ खड़े हुए हैं. उनका कहना है की, 'नए माइंस स्थापित होने पर उनका अस्तित्व ही खतरे में आ जाएगा'.

जनहित याचिका में उच्च न्यायालय से आया था निर्णय
पिछली बार जनसुनवाई से ठीक पहले उच्च न्यायालय बिलासपुर से एक जनहित याचिका में निर्णय आया था, जिसमें उच्च न्यायालय ने सीधे शब्दों में कहा था कि, 'रायगढ़ कलेक्टर को उक्त जनसुनवाई का वैधानिक अधिकार ही नहीं है. इस वजह से महाजेनको की पर्यावरणीय जनसुनवाई को पर्यावरण सचिव की उपस्थिति में ही सम्पन्न होनी चाहिए.'

  • न्यायालय के इस आदेश के बाद महाजेनको की जनसुनवाई में रोक लगा दी गई थी.
  • कंपनी प्रबंधन यह जान चुका था कि अकेले जिला प्रशासन रायगढ़ के सहयोग से इस क्षेत्र में जनसुनवाई करा पाना संभव नहीं है.
  • कुछ महीनों बाद ही माननीय उच्च न्यायालय के आदेश में कहा गया कि छग पर्यावरण संरक्षण मंडल सचिव के माध्यम से जनसुनवाई की व्यवस्था की जाएगी.
  • इस वजह से महाजेनको की आगामी जन-सुनावई तीसरी बार दिनांक 27 सितंबर 2019 को ग्राम डोलेसरा के शासकीय प्राथमिक शाला ग्राउंड में होने जा रही है.

जनसुनवाई के विरोध में करीब 12 गांव

  • रोडोपाली, चितवाही, डोलेसरा, सराईटोला, पाता, कुंजेमुरा, गारे, टिहली, रामपुर, झींकाबहाल, सारसमाल और बजरमुडा गांव (गारे-पेलमा-2) के ग्रामीण जनसुनवाई के विरोध में उठ खड़े हुए हैं.
  • सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस बार की जनसुनवाई में ग्रामीण प्रबंधन और प्रशासन के विरोध में बड़ा प्रदर्शन करने की तैयारी में हैं.
  • कंपनी की संभावित जनसुनवाई के विरोध में खड़े एक ग्रामीण ने बताया कि, 'हजारों ग्रामीण क्षेत्र के जल-जंगल, जमीन को बचाने कंपनी प्रबंधन के विरोध में खड़े होंगे. इनका मानना है कि बार-बार विरोध करने के बावजूद कंपनी कुछ महीनों बाद वापस जनसुनवाई का बहाना लेकर वापस आ जाती है. जिसकी वजह से वहां के ही नहीं बल्कि आसपास के कई गांवों में विस्थापन की संभावनाओं से डर और गुस्से का माहौल बन जाता है.'

'नए उद्योग और खदानों की स्थापना का किया जाए विरोध'

  • इधर महाजेनको की जनसुनवाई के विरोध में मुखर होकर खड़े डॉ. हरिहर पटेल ने बताया कि, 'सरकारी तंत्र के समझ में एक बात क्यों नहीं आती कि किसी एक उद्योग की स्थापना के बदले में 12 गांवों के हजारों ग्रामीण परिवार के लोग और हजारों एकड़ भूमि की व्यवस्था कैसे बिगाड़ सकते हैं, वह भी तब जब जिले की पर्यावरणीय स्थिति इस हद तक बिगड़ चुकी है, जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते.'
  • हरिहर पटेल ने कहा कि, 'तमनार और उसके आसपास के गांवों का पर्यावरण पूरी तरह से बर्बाद हो चुका है, उसके बाद भी सरकार इस क्षेत्र में नए खदान खोलने के प्रयास में है, चुपचाप खड़े होकर यह देखना हमारे भविष्य और आने वाली पीढ़ियों के साथ अन्याय होगा. आपका हमारा यह पहला फर्ज बनता है कि, जिले के बचे-खुचे वन क्षेत्रों में नए उद्योग और खदानों की स्थापना का अपने स्तर पर विरोध जताएं अन्यथा हम भविष्य के साथ बहुत बड़ा अन्याय करेंगे.'
Intro:एंकर- कोयले के उत्खनन से प्रभावित होने वाले गावों के ग्रामीण महाजेंको की जनसुनवाई का कर रहे विरोध

Body:वीओ.1 छत्तीसगढ़ प्रदेश के रायगढ़ जिले में तमनार क्षेत्र स्थित गारे पेलमा कोल ब्लॉक एक बार फिर से सुर्खियों में है। इसके पीछे की वजह दो बार की असफल जनसुनवाई के बाद आगामी 27 सितम्बर 2019 को महाजेंको की जनसुनवाई का आयोजन बताया जा रहा है। इस बात कि जानकारी मिलने के बाद से ही स्थानीय ग्रामीण पुनः विस्थापन के संभावित भय से आशंकित हो कर महाजेंको के विरोध में उठ खड़े हुए है। उनका कहना है की और भी नए माइंस के स्थापित होने पर उनका अस्तित्व ही खतरे में आ जायेगा।

पिछली बार जनसुनवाई के ठीक पहले माननीय उच्च न्यायालय बिलासपुर से एक जनहित याचिका में निर्णय आया था जिसमें उच्च न्यायालय ने सीधे शब्दों में कहा कि कलेक्टर रायगढ़ को उक्त जनसुनवाई का वैधानिक अधिकार ही नही है इस वजह से महाजेंको की पर्यावरणीय जनसुनवाई को पर्यावरण सचिव की उपस्थिति में ही सम्पन्न होनी चाहिए। न्यायालय के इस आदेश के बाद महाजेनको की जनसुनवाई रोक लगा दी गई थी। कम्पनी प्रबन्धन यह जान चुकी थी कि अकेले जिला प्रशासन रायगढ़ के सहयोग से इस क्षेत्र में जनसुनवाई करा पाना सम्भव नही है। अतः कुछ महीनों बाद ही माननीय उच्च न्यायालय के आदेशानुसार सचिव छ ग पर्यावरण संरक्षण मंडल के माध्यम से जनसुनवाई की व्यवस्था की जाए। इस तारतम्य में महाजेंको की आगामी जन-सुनावई तीसरी बार दिनांक 27 सितंबर 2019 को ग्राम डोलेसरा के शासकीय प्राथमिक शाला ग्राउंड में होने जा रही है।

वीओ 2 जनसुनवाई के विरोध में करीब 12 गांव जिनका नाम क्रमशः रोडोपाली,चितवाही डोलेसरा,सराईटोला,पाता, कुंजेमुरा,गारे,टिहली,रामपुर,झींकाबहाल,सारसमाल और बजरमुडा गांव (गारे-पेलमा-2) के ग्रामीण उठ खड़े हुए है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस बार की जनसुनवाई में ग्रामीण प्रबन्धन और प्रशासन के विरुद्ध बड़ा प्रदर्शन करने की तैयारी में है। कम्पनी की संभावित जनसुनवाई के विरोध में खड़े एक ग्रामीण ने बताया कि हजारों ग्रामीण क्षेत्र के जल-जंगल,जमीन को बचाने कम्पनी प्रबंधन के विरुद्ध खड़े होंगे। इनका मानना है कि बार-बार विरोध करने के बावजूद कम्पनी कुछ महीनों बाद वापस जनसुनवाई का बहाना लेकर वापस आ जाती है। जिससे उ
वहाँ के ही नही बल्कि आसपास कई गांवों में विस्थापन की संभावनाओं से भय और गुस्से का माहौल बन जाता है। अतः इस बार वे कम्पनी की जनसुनवाई का ऐतिहासिक विरोध दर्ज करवाने की तैयारी में है।

इधर महाजेंको के जनसुनवाई के विरोध में मुखर होकर खड़े डॉ हरिहर पटेल ने बताया कि सरकारी तंत्र के समझ मे एक बात क्यों नही आती कि किसी एक उद्योग की स्थापना के बदले में 12 गांवों के हजारों ग्रामीण परिवार के लोग और हजारों एकड़ भूमि की व्यवस्था कैसे बिगाड़ सकते है। वह भी तब जब जिले की पर्यावरणीय स्थिति इस हद तक बिगड़ चुकी है,जिसकी आप कल्पना भी नही कर सकते। तमनार और उसके आसपास के गांवों का पर्यावरण पूरी तरह से बर्बाद हो चुका है,उसके बाद भी सरकारें इस क्षेत्र में नए खदान खोंलने के प्रयास में है,चुपचाप खड़े होकर यह देखना हमारे भविष्य और आने वाली पीढ़ियों के सांथ अन्याय होगा। आपका हमारा यह पहला फ़र्ज़ बनता है कि जिले के बचे खुचे वन क्षेत्रों में नए उद्योग और खदानों की स्थापना का अपने स्तर पर विरोध जताएं अन्यथा हम भविष्य के सांथ बहुत बड़ा अन्याय करेंगे ।


Conclusion:
बाइट 1 - डॉ हरिहर पटेल अध्यक्ष मेहनतकश मजदुर किसान

बाइट 2 - उमेश सिदार अध्यक्ष सरपंच संघ तमनार

बाइट 3 - शिवपाल भगत सरपंच सारसमाल

बाइट 4 - कन्हाई पटेल ग्रामीण
Last Updated : Sep 17, 2019, 9:00 PM IST
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