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Special: बेरोजगारी का दंश झेल रहे मानसमणि ने जुगाड़ से दिया 12 परिवारों को रोजगार

जिस मशीन को लगाने में 10 लाख रुपये का खर्च आता था, उस मशीन को फ्लाई एश निर्माता मानसमणि ने जुगाड़ से 1.5 लाख रुपए में तैयार कर ली. साथ ही इस मशीन से 12 परिवारों को रोजगार दिया है, जिससे कोरोना संकट के दौर में उनका घर चल रहा है.

जुगाड़ ने बदली ज़िन्दगी
जुगाड़ ने बदली ज़िन्दगी
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Published : Sep 9, 2020, 8:26 PM IST

रायगढ़: कोरोना संक्रमण के बीच देश की GDP माइनस में पहुंच गई है. कोविड-19 महामारी के कारण लाखों युवाओं को नौकरी से हाथ धोना पड़ा है. हर दिन बेरोजगारों का ये आंकड़ा बढ़ रहा है, लेकिन इस बीच रायगढ़ के मानसमणि साहू बेरोजगारों को नौकरी देकर उनका भरण पोषण कर रहे हैं. उन्होंने खुद का ईंट का व्यापार शुरू किया है. इसमें 12 परिवारों को नौकरी दी गई है, साथ ही मानसमणि साहू की भी रोजी-रोटी चल रही है.

जुगाड़ से रोजगार

अलग तरीके के बनाए जा रहे ईंट की चर्चा राज्य के कई शहरों तक हो रही है. ETV भारत ने फ्लाई एश निर्माता मानसमणि से खास बातचीत की. इस बातचीत में उन्होंने फ्लाई एश ईंट की उपयोगिता और उससे कंपनी और मजदूरों को हो रहे फायदे के बारे में जानकारी दी.

रायगढ़ जिले के सारंगढ़ ब्लॉक अंतर्गत ग्राम पंचायत बंजारी के मानसमणि साहू इंजीनियरिंग या तकनीकी शिक्षा के जानकार नहीं है, लेकिन उन्होंने फ्लाई एश से ईंट बनाने के लिए मशीन लगाने के बारे में जब सोचा तब आर्थिक रूप से वे कमजोर थे और मशीन नहीं लगा पाए. उन्होंने दूसरी जगहों पर चलने वाली ऑटोमेटिक मशीन को देखा और अपने घर में ही फेब्रिकेशन दुकान ट्रैक्टर और जुगाड़ से मशीन तैयार कर ली, जिससे वे ईट बना रहे हैं.

पढ़ें : SPECIAL: एजुकेशन सेक्टर पर लॉकडाउन की मार, एक सेंटर बंद होने से 250 लोग हुए बेरोजगार

10 लाख की जगह 1.5 लाख रुपये में काम शुरू

मानसमणि का कहना है कि ऑटोमेटिक मशीन लगाने के लिए 10 लाख रुपये से अधिक की राशि खर्च करनी पड़ती है. इसके अलावा हर महीने बिजली बिल, मेंटेनेंस और कई तरह के खर्च सामने आते. ट्रैक्टर से जुगाड़ कर बनाए गए इस उपकरण में सिर्फ 1.5 लाख रुपए खर्च आया है. उन्होंने दिमाग लगाकर घर पर मौजूद पुराने ट्रैक्टर के इंजन को मशीन बना दिया. इस तरह से आधे से भी कम कीमत पर पूरी मशीन तैयार कर ली गई. ये मशीन ऑटोमेटिक मशीन से बेहतर काम कर रही है. इसका खर्च भी आधा है. साथ ही ऑटोमेटिक मशीन बिजली से चलती है, जिसका खर्च लाखों में आता है.

बिजली की कोई जरूरत नहीं

वहीं मानसमणि के द्वारा बनाए गए ट्रैक्टर मशीन में बिजली की कोई जरूरत नहीं होती. इससे कभी भी काम लिया जा सकता है और इसके मेंटेनेंस के लिए कोई विशेषज्ञ को बुलाने की जरूरत नहीं होती. सब आपस में मिलकर ही इस मशीन को खराब होने पर बना लेते हैं. मानसमणि ने बताया कि एक ईंट की कीमत 3 रुपये है. वर्तमान में इनके ईंट की मांग छत्तीसगढ़ के साथ ही ओडिशा और सीमावर्ती अन्य राज्यों में भी काफी बढ़ गई है.

पढ़ें : गोधन न्याय योजना हुआ डिजिटल, सीएम ने इस योजना का एप किया लॉन्च

क्या है फ्लाई एश ईंट

  • पत्थर तोड़ने वाली मशीन से निकलने वाले धूल और छोटे कंकड़ को जिप्सम में मिलाकर इस इट को तैयार किया जाता है.
  • मकान बनाने के लिए मिट्टी के ईंट की तरह ही इसका उपयोग किया जाता है.
  • इस ईंट को बनाने के लिए सबसे पहले क्रेशर के धूल और जिप्सम को मिलाया जाता है, जिसके बाद कंप्रेसर मशीन में उस मिक्सर को डालकर सांचा के अनुसार एक आकर दिया जाता है.
  • कच्ची ईंट को 24 से 48 घंटे के लिए धूप में पलट कर रखा जाता है जिसके सूखने के बाद वह उपयोग के लायक हो जाता है.

रायगढ़: कोरोना संक्रमण के बीच देश की GDP माइनस में पहुंच गई है. कोविड-19 महामारी के कारण लाखों युवाओं को नौकरी से हाथ धोना पड़ा है. हर दिन बेरोजगारों का ये आंकड़ा बढ़ रहा है, लेकिन इस बीच रायगढ़ के मानसमणि साहू बेरोजगारों को नौकरी देकर उनका भरण पोषण कर रहे हैं. उन्होंने खुद का ईंट का व्यापार शुरू किया है. इसमें 12 परिवारों को नौकरी दी गई है, साथ ही मानसमणि साहू की भी रोजी-रोटी चल रही है.

जुगाड़ से रोजगार

अलग तरीके के बनाए जा रहे ईंट की चर्चा राज्य के कई शहरों तक हो रही है. ETV भारत ने फ्लाई एश निर्माता मानसमणि से खास बातचीत की. इस बातचीत में उन्होंने फ्लाई एश ईंट की उपयोगिता और उससे कंपनी और मजदूरों को हो रहे फायदे के बारे में जानकारी दी.

रायगढ़ जिले के सारंगढ़ ब्लॉक अंतर्गत ग्राम पंचायत बंजारी के मानसमणि साहू इंजीनियरिंग या तकनीकी शिक्षा के जानकार नहीं है, लेकिन उन्होंने फ्लाई एश से ईंट बनाने के लिए मशीन लगाने के बारे में जब सोचा तब आर्थिक रूप से वे कमजोर थे और मशीन नहीं लगा पाए. उन्होंने दूसरी जगहों पर चलने वाली ऑटोमेटिक मशीन को देखा और अपने घर में ही फेब्रिकेशन दुकान ट्रैक्टर और जुगाड़ से मशीन तैयार कर ली, जिससे वे ईट बना रहे हैं.

पढ़ें : SPECIAL: एजुकेशन सेक्टर पर लॉकडाउन की मार, एक सेंटर बंद होने से 250 लोग हुए बेरोजगार

10 लाख की जगह 1.5 लाख रुपये में काम शुरू

मानसमणि का कहना है कि ऑटोमेटिक मशीन लगाने के लिए 10 लाख रुपये से अधिक की राशि खर्च करनी पड़ती है. इसके अलावा हर महीने बिजली बिल, मेंटेनेंस और कई तरह के खर्च सामने आते. ट्रैक्टर से जुगाड़ कर बनाए गए इस उपकरण में सिर्फ 1.5 लाख रुपए खर्च आया है. उन्होंने दिमाग लगाकर घर पर मौजूद पुराने ट्रैक्टर के इंजन को मशीन बना दिया. इस तरह से आधे से भी कम कीमत पर पूरी मशीन तैयार कर ली गई. ये मशीन ऑटोमेटिक मशीन से बेहतर काम कर रही है. इसका खर्च भी आधा है. साथ ही ऑटोमेटिक मशीन बिजली से चलती है, जिसका खर्च लाखों में आता है.

बिजली की कोई जरूरत नहीं

वहीं मानसमणि के द्वारा बनाए गए ट्रैक्टर मशीन में बिजली की कोई जरूरत नहीं होती. इससे कभी भी काम लिया जा सकता है और इसके मेंटेनेंस के लिए कोई विशेषज्ञ को बुलाने की जरूरत नहीं होती. सब आपस में मिलकर ही इस मशीन को खराब होने पर बना लेते हैं. मानसमणि ने बताया कि एक ईंट की कीमत 3 रुपये है. वर्तमान में इनके ईंट की मांग छत्तीसगढ़ के साथ ही ओडिशा और सीमावर्ती अन्य राज्यों में भी काफी बढ़ गई है.

पढ़ें : गोधन न्याय योजना हुआ डिजिटल, सीएम ने इस योजना का एप किया लॉन्च

क्या है फ्लाई एश ईंट

  • पत्थर तोड़ने वाली मशीन से निकलने वाले धूल और छोटे कंकड़ को जिप्सम में मिलाकर इस इट को तैयार किया जाता है.
  • मकान बनाने के लिए मिट्टी के ईंट की तरह ही इसका उपयोग किया जाता है.
  • इस ईंट को बनाने के लिए सबसे पहले क्रेशर के धूल और जिप्सम को मिलाया जाता है, जिसके बाद कंप्रेसर मशीन में उस मिक्सर को डालकर सांचा के अनुसार एक आकर दिया जाता है.
  • कच्ची ईंट को 24 से 48 घंटे के लिए धूप में पलट कर रखा जाता है जिसके सूखने के बाद वह उपयोग के लायक हो जाता है.
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