धरमजयगढ़ : मां और उसकी ममता के किस्से यूं ही नहीं सुनाए जाते हैं. मां वो होती है जो मासूम के बिना कुछ कहे और बिना सुने सब कुछ समझ जाती है लेकिन जब उसका ही साया सिर से उठ जाए तो बच्चे की भूख-प्यास ही कोई नहीं जान पाता. धरमजयगढ़ के सरकारी अस्पताल में नवजात 4 घंटे दो बूंद दूध के लिए तरसता रहा.
हॉस्पीटल की लापरवाही का मामला धरमजयगढ़ सिविल अस्पताल में देखने को मिला. यहां प्रसव के दौरान खून की कमी से मां की मौत हो गई. मौत के बाद करीब 4 घंटे के बाद तक नवजात दूध के लिए रोता-बिलखता रहा, लेकिन ड्यूटी पर तैनात किसी भी डॉक्टर का दिल नहीं पसीजाऔर न ही किसी डॉक्टर ने मासूम को दूध पिलाना जरूरी समझा.
जच्चा-बच्चा को सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया
मंगलवार 11 बजे गेरसा गांव से गर्भवती महिला केवरा बाई अपने परिवार के साथ प्रसव पीड़ा होने पर स्वास्थ्य मितानिन के साथ बायसी अस्पताल पहुंची. जहां केवरा बाई ने लड़के को जन्म दिया. वहीं कुछ घंटों बाद उसकी हालत बिगड़ गई. मौजूद डॉक्टरों ने महिला को सिविल अस्पताल ले जाने की सलाह दे दी. परिजनों ने तत्काल जच्चा-बच्चा को सिविल अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां खून की कमी की वजह से मां की मौत हो गई.
अस्पताल में जो मंजर सामने आया वो बेहद निराशा जनक
मां की मौत बाद अस्पताल में जो मंजर सामने आया वो बेहद निराशा जनक था. 4 घंटे बीतने के बाद भी मासूम को दूध की एक बूंद तक नसीब नहीं हुई. जबकि जननी सुरक्षा योजन के तहत जच्चा बच्चा दोनों के लिए दूध से लेकर सारे प्रोटीन आहार का इंतजाम रहता है. वहीं गेरसा मितानिन इंदर बाई ने इंसानियत का परिचय देते हुए अपने पैसे से दूध खरीद कर बच्चे को दूध पिलाया. साथ ही वहां मौजूद स्वास्थ्य मितानिन ब्लॉक समन्वयक ने फिर बच्चे के लिए दूध की व्यवस्था की.
अस्पताल प्रबंधन के सामने हुआ सबकुछ
यह सब कुछ धरमजयगढ़ सिविल अस्पताल प्रबंधन डॉ एस एस भगत और डॉ लकड़ा के नजरों के सामने हुआ पर उन्हें न किसी बात की परवाह भी नहीं. जबकि सरकार की ओर से जननी सुरक्षा योजना के तहत जच्चा-बच्चा के स्वस्थ जीवन के लिए लाखो करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं. वहीं धरमजयगढ़ सिविल अस्पताल में आलम यह है की मासूम के लिए दूध की एक बूंद तक नसीब नहीं.