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कब तक अस्तित्व की लड़ाई लड़ेगी केलो नदी ?

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Published : Jan 17, 2020, 7:53 PM IST

रायगढ़ की केलो नदी आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. औद्योगिकीकरण और शहर के बढ़ते बोझ ने नदी को एक गंदा नाला बना दिया है जिससे जलीय जीवों और लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

Kelo river of Raigarh is losing its existence
कब तक अस्तित्व की लड़ाई लड़ेगी केलो नदी ?

रायगढ़: कभी रायगढ़ शहर और आसपास के सैकड़ों गांव की प्यास बुझाने वाली केलो नदी आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. औद्योगिकीकरण और शहर के बढ़ते बोझ ने नदी को एक गंदा नाला बना दिया है.

अस्तित्व खोती जा रही केलो नदी

रोजाना लाखों लीटर गंदा पानी केलो नदी में सीधे बहा दिया जा रहा है जो जलीय जीवों को नुकसान पहुंचाने के साथ ही आम लोगों को प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित कर रहा है. केलो नदी को छत्तीसगढ़ राज्य में महानदी की सहायक नदी के रूप में जाना जाता है. लगभग 110 किलोमीटर की लंबी नदी केलो, ओडिशा के गुदुम गांव में महानदी से मिल जाती है.

Kelo river of Raigarh is losing its existence
सीवरेज के पानी से गंदगी
Kelo river of Raigarh is losing its existence
जीवनदायिनी को जीवन कब तक?

केलो नदी में बहा दी जाती है गंदगी

इस नदी को सबसे ज्यादा प्रभावित रायगढ़ शहर ही कर रहा है. इसमें तमनार और रायगढ़ के सैकड़ों उद्योग सीधे तौर पर पानी लेते हैं और उद्योग का गंदा पानी नदी में छोड़ते हैं. इसके अलावा रायगढ़ शहर के सीवरेज सीधे नदी में खुलते हैं. लिहाजा रोजाना लाखों लीटर गंदगी नदी में बहा दी जाती है. इस तरह नदी पूरी तरह से नाला बन चुकी है. नदी के पानी का इस्तेमाल करने वाले लोगों को त्वचा, श्वास और कैंसर जैसी घातक बीमारियां हो रही हैं. स्थानीय लोगों का मानना है कि प्रशासन की तरफ से नदी को बचाने के लिए कोई भी प्रयास नहीं किए जा रहे हैं.

Kelo river of Raigarh is losing its existence
काली हो चुकी है केलो नदी
Kelo river of Raigarh is losing its existence
उद्योगों के कारण बढ़ी गंदगी

कब लगेंगे सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट?

कभी इस नदी का पानी लोगों के लिए अमृत था लेकिन आज लोग नहाने से भी कतराते हैं. समाजसेवी और पर्यावरण संरक्षक राजेश त्रिपाठी का कहना है कि उद्योग और शहर का बढ़ता दबाव ही नदी के प्रदूषण का मुख्य कारण है. अधिकारी नदी में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की बात करते हैं लेकिन आज तक नहीं बन पाया है. इधर क्षेत्रीय पर्यावरण अधिकारी का कहना है कि शासन को नदी के हालात की जानकारी दे दी गई है जल्द ही सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगेंगे.

अब देखना होगा कि केलो नदी कब तक साफ हो पाता है.

रायगढ़: कभी रायगढ़ शहर और आसपास के सैकड़ों गांव की प्यास बुझाने वाली केलो नदी आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. औद्योगिकीकरण और शहर के बढ़ते बोझ ने नदी को एक गंदा नाला बना दिया है.

अस्तित्व खोती जा रही केलो नदी

रोजाना लाखों लीटर गंदा पानी केलो नदी में सीधे बहा दिया जा रहा है जो जलीय जीवों को नुकसान पहुंचाने के साथ ही आम लोगों को प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित कर रहा है. केलो नदी को छत्तीसगढ़ राज्य में महानदी की सहायक नदी के रूप में जाना जाता है. लगभग 110 किलोमीटर की लंबी नदी केलो, ओडिशा के गुदुम गांव में महानदी से मिल जाती है.

Kelo river of Raigarh is losing its existence
सीवरेज के पानी से गंदगी
Kelo river of Raigarh is losing its existence
जीवनदायिनी को जीवन कब तक?

केलो नदी में बहा दी जाती है गंदगी

इस नदी को सबसे ज्यादा प्रभावित रायगढ़ शहर ही कर रहा है. इसमें तमनार और रायगढ़ के सैकड़ों उद्योग सीधे तौर पर पानी लेते हैं और उद्योग का गंदा पानी नदी में छोड़ते हैं. इसके अलावा रायगढ़ शहर के सीवरेज सीधे नदी में खुलते हैं. लिहाजा रोजाना लाखों लीटर गंदगी नदी में बहा दी जाती है. इस तरह नदी पूरी तरह से नाला बन चुकी है. नदी के पानी का इस्तेमाल करने वाले लोगों को त्वचा, श्वास और कैंसर जैसी घातक बीमारियां हो रही हैं. स्थानीय लोगों का मानना है कि प्रशासन की तरफ से नदी को बचाने के लिए कोई भी प्रयास नहीं किए जा रहे हैं.

Kelo river of Raigarh is losing its existence
काली हो चुकी है केलो नदी
Kelo river of Raigarh is losing its existence
उद्योगों के कारण बढ़ी गंदगी

कब लगेंगे सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट?

कभी इस नदी का पानी लोगों के लिए अमृत था लेकिन आज लोग नहाने से भी कतराते हैं. समाजसेवी और पर्यावरण संरक्षक राजेश त्रिपाठी का कहना है कि उद्योग और शहर का बढ़ता दबाव ही नदी के प्रदूषण का मुख्य कारण है. अधिकारी नदी में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की बात करते हैं लेकिन आज तक नहीं बन पाया है. इधर क्षेत्रीय पर्यावरण अधिकारी का कहना है कि शासन को नदी के हालात की जानकारी दे दी गई है जल्द ही सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगेंगे.

अब देखना होगा कि केलो नदी कब तक साफ हो पाता है.

Intro:कभी रायगढ़ शहर और आसपास के सैकड़ों गांव की प्यास बुझाने वाली केलो नदी आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। औद्योगिकरण और शहर का बढ़ता बोझ नदी को एक गंदा नाला बना दिया हैं. रोजाना लाखों लीटर गंदा पानी केलो नदी में सीधे बहा दिया जा रहा है जो जलीय जीवो को नुकसान पहुंचाने के साथ ही आम लोगों को प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित कर रहे हैं. केलो नदी को छत्तीसगढ़ राज्य में महानदी की सहायक नदी के रूप में जानते है। इसका उद्गम घरघोड़ा के लुढेंग पहाड़ी से होती है लगभग 110 किलोमीटर की लंबी नदी उड़ीसा के गुदुम गांव में महानदी से मिल जाती है. byte 01,2 स्थानीय byte03 राजेश त्रिपाठी, समाज सेवी( काला स्वेटर) byte04 क्षेत्रीय पर्यावरण अधिकारी(ऑफिस)


Body: इस नदी को सबसे ज्यादा प्रभावित रायगढ़ शहर ही कर रहा है इसमें तमनार और रायगढ़ के सैकड़ों उद्योग सीधे तौर पर पानी लेते हैं और उद्योग का गंदा पानी नदी में छोड़ते हैं. इसके अलावा रायगढ़ शहर के सीवरेज सीधे नदी में खुलते हैं इस तरह से रोजाना लाखों लीटर पानी नदी में बहा दिए जाते हैं इस वजह से नदी पूरी तरह से नाले के रूप ले ली है. गंदे पानी और उद्योग के रसायन युक्त पानी से केलो नदी का उपयोग करने वाले लोगों को त्वचा स्वास तथा कैंसर जैसी घातक बीमारियां हो रही है. स्थानीय लोगों का मानना है कि प्रशासन के द्वारा नदी को बचाने के लिए कोई भी प्रयास नहीं किए जाते. कभी इस नदी के पानी पीने लायक होती थी लेकिन आज लोग नहाने से भी कतरा रहे हैं.


Conclusion:समाजसेवी और और पर्यावरण संरक्षक राजेश त्रिपाठी का कहना है कि उद्योग और शहर का बढ़ता दबाव ही नदी के प्रदूषण का मुख्य कारण है. अधिकारी नदी में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की बात करते हैं लेकिन आज तक कभी नहीं बन पाया. क्षेत्रीय पर्यावरण अधिकारी का कहना है कि शासन को नदी की स्थिति जानकारी दे दी गई है जल्द ही सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगेंगे जिसमें शहर और उद्योगों के गंदे पानी को उपचार करके नदी में छोड़ा जाएगा.
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