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आत्मसमर्पित नक्सलियों के बुरे हैं हाल, 'लाल आतंक' के डर से छूटा घर-बार

सरेंडर करने वाले नक्सली प्रशासन की उदासिनता और नक्सलियों की प्रताड़ना की वजह से दूसरे शहरों में जाकर मजदूरी करने को मजबूर हैं.

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Published : Jun 9, 2019, 7:57 PM IST

नारायणपुर: जो कभी नक्सलियों का राइट हैंड हुआ करते थे, जिनके नाम से कभी अबूझमाड़ का इलाका थर्राता था आज वो दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं. इन दोनों नक्सल सहयोगियों का कसूर बस इतना है कि इन्होंने सरकार की नीतियों से प्रभावित होकर पुलिस के सामने हथियार डाल दिए थे.

स्टोरी पैकेज


नक्सलियों ने किया प्रताड़ित
जिस वक्त इन्होंने आत्म समर्पण किया उस दौरान तो इनसे लंबे चौड़े वादे किए गए लेकिन सारे के सारे वादे खोखले साबित हुए. उल्टा अंजाम यह हुआ कि नक्सलियों ने गांव में आकर लोगों को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया.


ग्रामीणों की प्रेरणा से किया था सरेंडर
अबूझमाड़ के कदर गांव में एक साल पहले पुलिसवालों ने सर्चिंग के दौरान ग्रामीणों से चर्चा कर इन दोनों नक्सल सहयोगियों को आत्मसमर्पण करने के लिए प्रेरित किया, इसके बाद बाकी गांववालों ने भी नक्सलियों से संबंध नहीं रखने की कसम खा ली. करीब एक साल पहले गांव में तीन महिला और एक पुरुष नक्सली ने सरेंडर किया. इसे अभी कुछ दिन ही बीते थे कि नक्सलियों ने गांव में आकर सरेंडर करने वाले लोगों से पूछताछ और मारपीट शुरू कर दी. नक्सलियों ने पुलिस की जासूसी का आरोप लगाते हुए दो लोगों की जान ले ली.


पांच गांव के लोगों ने किया पलायन
नक्सलियों की प्रताड़ना से तंग आकर गांव के लोग वहां से भागने लगे. नक्सलियों का डर गांववालों में इस कदर घर कर चुका था कि वहां से आस-पास के करीब 5 गांव के लोग पलायन कर गए. गांव छोड़ने वालों में दो आत्मसमर्पित नक्सली भी थे. ये दोनों युवक गांव छोड़कर नारायणपुर आ गए और यहां मजदूरी करने लगे.


मजदूरी करने को हैं मजबूर
एक ओर जहां सरकार नक्सलियों के पुनर्वास के नाम पर पानी की तरह रुपया बहा रही है. वहीं दूसरी ओर आत्मसमर्पित नक्सलियों के हालात यह हैं कि सिस्टम से मदद नहीं मिलने की वजह से उन्हें मजदूरी करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.

नारायणपुर: जो कभी नक्सलियों का राइट हैंड हुआ करते थे, जिनके नाम से कभी अबूझमाड़ का इलाका थर्राता था आज वो दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं. इन दोनों नक्सल सहयोगियों का कसूर बस इतना है कि इन्होंने सरकार की नीतियों से प्रभावित होकर पुलिस के सामने हथियार डाल दिए थे.

स्टोरी पैकेज


नक्सलियों ने किया प्रताड़ित
जिस वक्त इन्होंने आत्म समर्पण किया उस दौरान तो इनसे लंबे चौड़े वादे किए गए लेकिन सारे के सारे वादे खोखले साबित हुए. उल्टा अंजाम यह हुआ कि नक्सलियों ने गांव में आकर लोगों को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया.


ग्रामीणों की प्रेरणा से किया था सरेंडर
अबूझमाड़ के कदर गांव में एक साल पहले पुलिसवालों ने सर्चिंग के दौरान ग्रामीणों से चर्चा कर इन दोनों नक्सल सहयोगियों को आत्मसमर्पण करने के लिए प्रेरित किया, इसके बाद बाकी गांववालों ने भी नक्सलियों से संबंध नहीं रखने की कसम खा ली. करीब एक साल पहले गांव में तीन महिला और एक पुरुष नक्सली ने सरेंडर किया. इसे अभी कुछ दिन ही बीते थे कि नक्सलियों ने गांव में आकर सरेंडर करने वाले लोगों से पूछताछ और मारपीट शुरू कर दी. नक्सलियों ने पुलिस की जासूसी का आरोप लगाते हुए दो लोगों की जान ले ली.


पांच गांव के लोगों ने किया पलायन
नक्सलियों की प्रताड़ना से तंग आकर गांव के लोग वहां से भागने लगे. नक्सलियों का डर गांववालों में इस कदर घर कर चुका था कि वहां से आस-पास के करीब 5 गांव के लोग पलायन कर गए. गांव छोड़ने वालों में दो आत्मसमर्पित नक्सली भी थे. ये दोनों युवक गांव छोड़कर नारायणपुर आ गए और यहां मजदूरी करने लगे.


मजदूरी करने को हैं मजबूर
एक ओर जहां सरकार नक्सलियों के पुनर्वास के नाम पर पानी की तरह रुपया बहा रही है. वहीं दूसरी ओर आत्मसमर्पित नक्सलियों के हालात यह हैं कि सिस्टम से मदद नहीं मिलने की वजह से उन्हें मजदूरी करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.

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एंकर -नारायणपुर जिला के घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र अबूझमाड़ में इन दिनों नक्सलियों का खौफ बढ़ता जा रहा है ग्रामीणों को पुलिस का जासूस समझ कर जान से मार रही है लोग जान बचाकर शहर की ओर गांव से भक्त कर आ रहे हैं नक्सलियों से बचकर शहर में पहुंच रहे हैं लगातार नक्सलियों का दबाव नारायणपुर जिला में देखने को मिल रहा है

अबूझमाड़ के कदर गांव में 1 साल पहले पुलिस फोर्स सर्चिंग के दौरान ग्रामीणों से चर्चा करके नक्सली सहयोगीयो को पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करने की लिए प्रेरित किया था जिसके बाद गांव वालों ने चाहे कर लिया की नक्सलियों से किसी भी प्रकार अब कोई संबंध नहीं रखेंगे नक्सलियों के दबाव को हम नहीं सहेंगे नक्सली गांव में आकर गांव वालों को खाना पुलिस की सर्चिंग करने की पूरा मोमेंट को बताने के लिए गांव में एक टीम तैयार करती है जिस टीम में पुलिस की सर्चिंग भारी लोगों का आना जाना को नजर रखने के लिए बनाया जाता है इस काम को ग्रामीणों ने विरोध किया और 1 साल पहले गधेर गांव के नव ग्रामीण पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया था जिसमें तीन महिला और छह पुरुष थे आत्मसमर्पण करने के बाद सारे ग्रामीण वापस अपने गांव चले गए कुछ दिनों बाद नक्सली वापस गांव में आकर सिलेंडर किए गए लोगों को पूछताछ करना शुरू कर दी है लोगों को मारपीट करना शुरू करती है जिसके बाद नक्सलियों का एक आरोप होता है की पुलिस तुमको जासूस बनाकर गांव में छोड़ा है गांव और नक्सलियों का पूरी जानकारी तुम लोग पुलिस को देते हो इसी बात को लेकर नक्सलियों ने नव आत्मसमर्पण करने वाले लोगों में से 2 को जाम से मार दिए इतनी दर्दनाक मौत दिया गया की लोग गांव छोड़कर भागने लगे कदर गांव के आसपास लगभग 5 गांव के लोग भाग चुके हैं गांव छोड़कर

गांव के दो ग्रामीण मनीराम और सोनारु नुरेटी भी गांव छोड़कर शहर आ गए हैं आत्मसमर्पण करने के बाद ग्रामीणों से चर्चा की तो पता चला आत्मसमर्पण करने के बाद उनको पुलिस से कोई मुआवजा राशि नहीं मिला और ना ही कोई लिखित में प्रमाण पत्र दिया गया हाल यह रहा कि गांव छोड़कर वापस शहर आने के बाद ग्रामीणों को छत नसीब नहीं हो रही है जैसे तैसे यह लोग शहर के लोगों से काम मन कर कुली मजदूरी करके अपना गुजारा करते हैं अब आगे क्या होगा इसका अंजाम इनको कुछ भी नहीं है

छत्तीसगढ़ सरकार की आत्मसमर्पण नीति से मिलने वाली फायदा भी अब नहीं मिल रहा है नारायणपुर जिला में अबूझमाड़ एक ऐसा क्षेत्र है जहां पर माड़िया जनजाति रहते हैं जिनकी सुरक्षा और संरक्षण में भले ही कागजों में करोड़ों खर्च होता है पर इनकी हिस्से में एक कवड़ी भी नहीं मिलता देश के अत्यंत संरक्षित जनजाति इस क्षेत्र में मिलते हैं जिनके देखरेख और सुरक्षा का कोई भी इंतजाम नहीं है।


बाइट मनीराम पदे नक्सल पीड़ित
बाइट सोनारू नुरेटी नक्सल पीड़ित


Body:0606_CG_NYP_BINDESH_NAXAL PIDIT_SHBT


Conclusion:0606_CG_NYP_BINDESH_NAXAL PIDIT_SHBT
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