नारायणपुर: जो कभी नक्सलियों का राइट हैंड हुआ करते थे, जिनके नाम से कभी अबूझमाड़ का इलाका थर्राता था आज वो दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं. इन दोनों नक्सल सहयोगियों का कसूर बस इतना है कि इन्होंने सरकार की नीतियों से प्रभावित होकर पुलिस के सामने हथियार डाल दिए थे.
नक्सलियों ने किया प्रताड़ित
जिस वक्त इन्होंने आत्म समर्पण किया उस दौरान तो इनसे लंबे चौड़े वादे किए गए लेकिन सारे के सारे वादे खोखले साबित हुए. उल्टा अंजाम यह हुआ कि नक्सलियों ने गांव में आकर लोगों को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया.
ग्रामीणों की प्रेरणा से किया था सरेंडर
अबूझमाड़ के कदर गांव में एक साल पहले पुलिसवालों ने सर्चिंग के दौरान ग्रामीणों से चर्चा कर इन दोनों नक्सल सहयोगियों को आत्मसमर्पण करने के लिए प्रेरित किया, इसके बाद बाकी गांववालों ने भी नक्सलियों से संबंध नहीं रखने की कसम खा ली. करीब एक साल पहले गांव में तीन महिला और एक पुरुष नक्सली ने सरेंडर किया. इसे अभी कुछ दिन ही बीते थे कि नक्सलियों ने गांव में आकर सरेंडर करने वाले लोगों से पूछताछ और मारपीट शुरू कर दी. नक्सलियों ने पुलिस की जासूसी का आरोप लगाते हुए दो लोगों की जान ले ली.
पांच गांव के लोगों ने किया पलायन
नक्सलियों की प्रताड़ना से तंग आकर गांव के लोग वहां से भागने लगे. नक्सलियों का डर गांववालों में इस कदर घर कर चुका था कि वहां से आस-पास के करीब 5 गांव के लोग पलायन कर गए. गांव छोड़ने वालों में दो आत्मसमर्पित नक्सली भी थे. ये दोनों युवक गांव छोड़कर नारायणपुर आ गए और यहां मजदूरी करने लगे.
मजदूरी करने को हैं मजबूर
एक ओर जहां सरकार नक्सलियों के पुनर्वास के नाम पर पानी की तरह रुपया बहा रही है. वहीं दूसरी ओर आत्मसमर्पित नक्सलियों के हालात यह हैं कि सिस्टम से मदद नहीं मिलने की वजह से उन्हें मजदूरी करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.