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नारायणपुर: गुरु तुझे सलाम कार्यक्रम में शिक्षकों ने साझा किए अनुभव - teachers-shared-their-experiences

नारायणपुर में गुरु तुझे सलाम कार्यक्रम के तहत गुडरापारा की एक शिक्षिका कविता हिरवानी शामिल हुईं. अहा मूवमेंट कार्यक्रम के तहत उन्होंने पढ़ाई संबंधी अपने अनुभव साझा किए. उन्होंने बताया की रायपुर से आने के बाद कैसे उन्होंने नारायणपुर के बच्चों को शिक्षित किया

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शिक्षकों ने साझा किए अनुभव
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Published : Jun 19, 2020, 10:13 PM IST

नारायणपुर: पढ़ई तुंहर दुआर कार्यक्रम के तहत शिक्षकों, छात्रों और अभिभावकों को स्कूल शिक्षा विभाग की बेबसाइट के नियमित उपयोग के लिए संकुल स्तर से लेकर राज्य स्तर तक गुरु तुझे सलाम अभियान चलाए जा रहे हैं. इसके जरिए बच्चों को पढ़ाया जा रहा है. गुरूवार को राज्य स्तरीय ऑनलाइन कार्यक्रम में गुडरापारा की एक शिक्षिका कविता हिरवानी शामिल हुई. अहा मूवमेंट कार्यक्रम के तहत उन्होंने पढ़ाई संबंधी अपने अनुभव साझा किए.

गुरु तुझे सलाम में शामिल बच्चे

बता दें भूपेश बघेल ने ऑनलाइन पोर्टल पढ़ई तुंहर दुआर की शुरूआत 7 अप्रैल को की थी. शासन ने स्कूल शिक्षा विभाग के पढ़ई तुहर दुवार कार्यक्रम को तेजी देने के लिए अहा मूवमेंट कार्यक्रम की शुरूआत की थी. इसे आगे बढ़ाते हुए गुरु तुझे सलाम कार्यक्रम का आयोजन विकासखंड स्तर पर किया जा रहा है. जिसके जरिए बच्चों के साथ अभिभावकों को जोड़ने की कोशिश की जा रही है. इस ऑनलाइन पोर्टल को मुख्य रूप से कोरोना संक्रमण के कारण किए गए लॉकडाउन में बच्चों की पढ़ाई प्रभावित न हो इस उद्देश्य से शुरू किया गया है.

पढ़ें: विश्व सिकल सेल दिवस: 'जैसे कुंडली मिलाते हैं, वैसे करें सिकल कुंडली का मिलान, तभी बच सकेगी जान'

उपयोगी साबित हो रहा कार्यक्रम

प्राथमिक शाला गुडरीपारा की शिक्षिका कविता हिरवानी ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि उसकी पहली पदस्थापना राजधानी रायपुर के आरंग ब्लाक में हुई थी. विवाह के बाद उनका ट्रांसफर नक्सल प्रभावित जिला नारायणपुर के प्राथामिक शाला गुडरीपारा में हुआ. यहां के बच्चे शहरी परिवेश के बच्चों से बिलकुल अलग थे. ये बच्चे ऐसे नक्सल प्रभावित परिवार के थे, जिन्हे अबूझमाड़ के अंदरूनी और पिछड़े क्षेत्रों से लाकर नारायणपुर में बसाया गया था. इन बच्चों को ठीक से हिन्दी भी बोलना नहीं आता था. डरे सहमे ये बच्चे स्कूल आना ही नहीं जाना चाहते थे. इन्हें घर जाकर जबरदस्ती लाना पड़ता था. ताकि इन्हें शिक्षित बनाया जा सके. यह उसके लिए एक चुनौती थी. उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार किया और विचार किया कि क्यों न इन्हें खेल और नवाचार तरीकों से सिखाया-पढ़ाया जाए जाए. खेल-खेल में ही बच्चों का ज्ञानवर्धन भी होने लगा है. अब यही बच्चे जो पहले ठीक से हिन्दी समझ नहीं पाते थे. वो आज न केवल समझदार हो गए हैं, बल्कि अन्य स्कूलों के बच्चों के साथ प्रतियोगिता जीत कर भी आते हैं. स्वयं ही प्रतिदिन स्कूल भी आने लगे हैं.

नारायणपुर: पढ़ई तुंहर दुआर कार्यक्रम के तहत शिक्षकों, छात्रों और अभिभावकों को स्कूल शिक्षा विभाग की बेबसाइट के नियमित उपयोग के लिए संकुल स्तर से लेकर राज्य स्तर तक गुरु तुझे सलाम अभियान चलाए जा रहे हैं. इसके जरिए बच्चों को पढ़ाया जा रहा है. गुरूवार को राज्य स्तरीय ऑनलाइन कार्यक्रम में गुडरापारा की एक शिक्षिका कविता हिरवानी शामिल हुई. अहा मूवमेंट कार्यक्रम के तहत उन्होंने पढ़ाई संबंधी अपने अनुभव साझा किए.

गुरु तुझे सलाम में शामिल बच्चे

बता दें भूपेश बघेल ने ऑनलाइन पोर्टल पढ़ई तुंहर दुआर की शुरूआत 7 अप्रैल को की थी. शासन ने स्कूल शिक्षा विभाग के पढ़ई तुहर दुवार कार्यक्रम को तेजी देने के लिए अहा मूवमेंट कार्यक्रम की शुरूआत की थी. इसे आगे बढ़ाते हुए गुरु तुझे सलाम कार्यक्रम का आयोजन विकासखंड स्तर पर किया जा रहा है. जिसके जरिए बच्चों के साथ अभिभावकों को जोड़ने की कोशिश की जा रही है. इस ऑनलाइन पोर्टल को मुख्य रूप से कोरोना संक्रमण के कारण किए गए लॉकडाउन में बच्चों की पढ़ाई प्रभावित न हो इस उद्देश्य से शुरू किया गया है.

पढ़ें: विश्व सिकल सेल दिवस: 'जैसे कुंडली मिलाते हैं, वैसे करें सिकल कुंडली का मिलान, तभी बच सकेगी जान'

उपयोगी साबित हो रहा कार्यक्रम

प्राथमिक शाला गुडरीपारा की शिक्षिका कविता हिरवानी ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि उसकी पहली पदस्थापना राजधानी रायपुर के आरंग ब्लाक में हुई थी. विवाह के बाद उनका ट्रांसफर नक्सल प्रभावित जिला नारायणपुर के प्राथामिक शाला गुडरीपारा में हुआ. यहां के बच्चे शहरी परिवेश के बच्चों से बिलकुल अलग थे. ये बच्चे ऐसे नक्सल प्रभावित परिवार के थे, जिन्हे अबूझमाड़ के अंदरूनी और पिछड़े क्षेत्रों से लाकर नारायणपुर में बसाया गया था. इन बच्चों को ठीक से हिन्दी भी बोलना नहीं आता था. डरे सहमे ये बच्चे स्कूल आना ही नहीं जाना चाहते थे. इन्हें घर जाकर जबरदस्ती लाना पड़ता था. ताकि इन्हें शिक्षित बनाया जा सके. यह उसके लिए एक चुनौती थी. उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार किया और विचार किया कि क्यों न इन्हें खेल और नवाचार तरीकों से सिखाया-पढ़ाया जाए जाए. खेल-खेल में ही बच्चों का ज्ञानवर्धन भी होने लगा है. अब यही बच्चे जो पहले ठीक से हिन्दी समझ नहीं पाते थे. वो आज न केवल समझदार हो गए हैं, बल्कि अन्य स्कूलों के बच्चों के साथ प्रतियोगिता जीत कर भी आते हैं. स्वयं ही प्रतिदिन स्कूल भी आने लगे हैं.

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