नारायणपुर: अबूझमाड़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्र में गोटाल परगना ( Gotal Pargana in Abujhmad) की तरफ से तीन दिवसीय आदिवासी कार्यशाला का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में गोटाल परगना के 46 गांव के ग्रामीणों ने शिरकत की. इन गांव में मांझी, गुनिया, गायता पटेल सहित हजारों ग्रामीण शामिल हुए.
तीन दिवसीय आदिवासी कार्यशाला का आयोजन
तीन दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ आज गोटाल परगना एवं सर्व समाज के वरिष्ठ पदाधिकारियों की उपस्थिति में सभास्थल पर किया गया. यहां सबसे पहल गोटूल (घोटूल) का शुभारंभ करते हुए गोंडवाना का झंडा फहराया गया. उसके बाद आदिवासियों की परंपरा को कायम रखने के लिए, यहां मौजूद लोगों को आदिवासी संस्कृति के निर्वहन की बात बताई गई. बता दें कि, आदिवासियों की जीवन शैली हजारों वर्ष पुरानी है. इनके पूर्वज इस क्षेत्र में आकर रहने लायक जगह-जमीन तैयार किये. जंगल पर निर्भर रह कर अपना जीवन यापन किया.धीरे-धीरे परिवार बढ़ता गया एक गांव से दूसरे गांव में लोग बसने लगे. इसके बाद अन्य समुदाय भी यहां आकर रहने लगे. उन्होंने अपनी परंपरा को कठिन परिस्थितियों में सहेज कर रखा
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कार्यशाला में पहुंचे लोगों का हुआ स्वागत
सर्वप्रथम यह पहुंचने वाले ग्रामीण समाज के लोगों का स्वागत द्वार के पास महिलाओं ने पैर धुलवाकर किया. उसके बाद इन लोगों को टीका लगाया गया. सब लोगों ने जय जोहार का अभिवादन किया. हर कुमार यादव ग्रामीण ने जानकारी देते हुए बताया कि, पूर्वजों से चली आ रही रीति,रिवाज, संस्कृति, सभ्यता को वर्तमान पीढ़ी नहीं अपना रही. लोग अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं.
ग्रामीण चुमकेश्वर देहारी ने बताया कि, कार्यशाला में परगना क्या होता है,देवी देवता क्या है,हम कितने भाई-बहन होते हैं,सगे संबंधी कौन कौन हैं, ये कहां-कहां निवासरत है,इस सभी के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है. जब हम अभी अपने बच्चों को नही बताएंगे तो आने वाला पीढ़ी धीरे-धीरे हमारी परंपरा को भूल जाएंगे. इसलिए ऐसे आयोजन की आवश्यकता पड़ रही है.