नारायणपुर: आधुनिकता से दूर अबूझमाड़ के जाटलूर में पदस्थ ANM कविता यहां के ग्रामीणों के लिए 'देवी' से कम नहीं हैं. अबूझमाड़ के जंगल जहां सूरज की रोशनी भी जमीन तक नहीं पहुंचती. जंगली जानवर का खतरा और नक्सलियों का अकाट्य गढ़. यहीं अबूझमाड़ की पहचान रही है, लेकिन इस जंगल के अंदर भी बसता है जीवन, बसी है सभ्यताएं, बरसों से स्थापित गांव, जल जंगल और जमीन को पूजने वाले लोग. ANM कविता 8 साल से इन आदिवासी ग्रामीणों की सेवा कर रही है. जो रोज अंदरुनी गांवों तक कांधे में मेडिकल कीट तो कभी वैक्सीनेशन बॉक्स लेकर पहुंचती है. कविता ग्रामीणों को कोरोना वायरस से बचाने पूरी जी जान से लगी हुई है. ग्रामीणों को कोरोना की वैक्सीन लगाई जा रही है.
जान का खतरा फिर भी पैदल पहुंच रहीं अबूझमाड़
नारायणपुर जिले का ओरछा ब्लॉक अबूझमाड़ का वह इलाका है जिसे नक्सलियों का गढ़ माना जाता है. इस इलाके में आए दिन नक्सली अपनी गतिविधियों से दहशत का माहौल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते. धुर नक्सल प्रभावित गांव जाटलूर में मानवता की अलख जला रही 30 वर्षीय कविता पात्र अपनी उत्कृष्ट सेवा के लिए अलग पहचान रखती है. ग्रामीण उन्हें डॉक्टर दीदी कहते हैं. जाटलूर के गांवो तक पहुंचने के लिए सड़क भी नहीं है. संचार के साधनों के बारे में सोचना तो दूर की बात है. कुछ दिन पहले इसी इलाके में पंचायत सचिव हरक चौधरी को वैक्सीनेशन शिविर से लौटते वक्त नक्सलियों ने मौत के घाट उतार दिया है. नक्सलियों के प्रभाव वाले इस इलाके में विकास कार्य नहीं के बराबर हुए हैं. यहां राजस्व सर्वे के लिए कई बार प्रयास किए गए, लेकिन नक्सलियों की आतंक की वजह से अमला गांव की दहलीज में कदम नहीं रख पाया है.
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कोरोना वैक्सीनेशन को लेकर जागरूक नहीं ग्रामीण
एएनएम कविता पात्र नारायणपुर की रहने वाली हैं. जो पिछले आठ सालों से अबूझमाड़ के ग्रामीण इलाकों में अपनी सेवाएं दे रही हैं. वह जाटलूर सहित पदमेटा, रासमेटा, कारंगुल, मरूमवाड़ा, बोटेर, डूडी मरका और लंका गांवों के दस हजार से ज्यादा ग्रामीणों तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचा चुकी हैं. अबूझमाड़ के ग्रामीण कोरोना टीकाकरण को लेकर जागरूक नहीं हैं. इसके बारे में उन्हें समझाना पड़ता है. उसके बाद वह टीकाकरण के लिए तैयार होते हैं. ओरछा विकासखंड चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर बीएन बनपुरिया के मार्गदर्शन में लगातार स्वास्थ्य टीम दुर्गम इलाकों में पहुंच कर स्वास्थ्य सेवाएं दे रही हैं. एएनएम कविता इस टीम की महत्तवपूर्ण कड़ी है.
ओरछा से लंका पहुंचने में लगते हैं दो से तीन दिन
कविता कहती हैं कि गांवों में पहुंचने पर ग्रामीणों की मदद मिल जाती है. जिससे हमें और अधिक ऊर्जा के साथ काम करने में आनंद मिलता है. कविता पात्र बताती है कि ओरछा ब्लॉक के लंका गांव तक पहुंचने के लिए दंतेवाड़ा और बीजापुर जिलों से होकर भैरमगढ़ मार्ग से एक दिन में पहुंच सकते हैं. वहीं यदि ओरछा से लंका पहुंचना है तो दो से तीन दिन लगता है. इसलिए कई बार दंतेवाड़ा और बीजापुर जिलों से होकर पहुंचना पड़ता है.
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जंगल, नदी, पहाड़ी और पथरीले रास्तों को पार करना होता है
जिला मुख्यालय से जाटलूर 92 किलोमीटर है. जाटलूर सहित अन्य गांवों तक पहुंचने के लिए नदी-नाले, घने जंगल, पहाड़ी, पथरीले रास्तों से होकर जाना पड़ता है. जाटलूर से प्रत्येक गांव की दूरी 20 से 25 किलोमीटर है. ऐसे में डिलीवरी और बच्चों को टीका लगाने में कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. गर्भवती महिलाओं को इमरजेंसी के समय वहीं उचित इलाज मुहैया कराने की कोशिश होती है. ज्यादा गंभीर मरीजों को कावड़ के सहारे ओरछा मुख्यालय तक ग्रामीणों की मदद से बड़ी कठिनाइयों का पहुंचाया जाता है. इन सभी मुसीबतों का सामना करते हुए कविता पात्र ग्रामीणों की सेवा में लगी हुई. कविता कहती है कि काम के दौरान ग्रामीणों का जो प्यार उन्हें मिलता है, उससे उनकी सारी तकलीफें दूर हो जाती है.