नारायणपुरः बस्तरवासियों की कला के कद्रदान पूरी दुनिया में हैं. यहां बांस से बनाए सामानों की डिमांड देश-विदेश में होती है, जिसमें टोकरी, गोप्पा और सूपा शामिल हैं, लेकिन कोरोना को फैलने से रोकने के लिए लागू लॉकडाउन ने बांस से सामान तैयार करने वाले कारीगरों की जिंदगी प्रभावित की है, बाजार बंद है जिसके कारण मेहनत से तैयार इन कारीगरों का सामान बिकना बंद हो गया है.
जिला मुख्यालय के पास शांति नगर में रहने वाले एक अबूझमाड़िया परिवार ऐसी ही परेशानियों से जूझ रहा है. परिवार के मुखिया बसु बताते हैं कि सात साल पहले नक्सली डर की वजह से उन्हें गांव छोड़ना पड़ा और वे परिवार सहित रोजगार की तलाश में शहर के पास शांति नगर में आकर बस गए.
नक्सली फरमान में लॉकडाउन की दोहरी मार
बसु बताते हैं कि अबूझमाड़ के ग्राम आलवेड़ा में उनका घर और खेत-खलिहान हैं, लेकिन नक्सलियों का कहर इस कदर बरपा कि उन्हें मजबूर होकर जान बचाने के लिए गांव छोड़ना पड़ा. नक्सलियों के डर से परिवार सहित वे शहर के पास आकर बस गए. जहां वे बांस की टोकरियां, सूपा और गप्पा बनाते हैं और आसपास के गांवों में बेचते हैं. इसी से उनके परिवार का पेट पलता है. उसके परिवार में उसे मिलाकर कुल 8 सदस्य हैं, जिसमें उसकी पत्नी, चार बेटे, एक बेटी और एक चाचा है. उसने बताया कि लॉकडाउन के दौरान घर से निकलना मुश्किल है, जिसकी वजह से उसके द्वारा बनाए बांस की बनी नहीं बिक रही है. ऐसे में उसके सामने परिवार को पालने की समस्या खड़ी हो गई है. वहीं दूसरी ओर नक्सली फरमान की वजह से वे गांव भी नहीं लौट सकते हैं.