महासमुंद: रक्षाबंधन का त्योहार नजदीक है. ऐसे में जिले के भलेसर में स्थित श्री वेदमाता गायत्री गौशाला में गोबर से राखियां बनाई जा रही है. इस गौशाला ने गाय के गोबर को सहेजने और उसके सदुपयोग की मंशा को पूरा कर दिखाया है. यहां न सिर्फ गायों की बेहतर देखभाल की जाती है, बल्कि गोबर से कई उत्पाद भी बनाए जाते हैं. साथ ही रक्षाबंधन के मद्देनजर गोबर से राखियां भी बनाई जा रही हैं. अलग-अलग डिजाइन बनाकर रंग-बिरंगे रेशमी धागे से आकर्षक राखियां तैयार की जा रहीं हैं. जिसकी कीमत 10 रुपए से लेकर 60 रुपए तक रखी गई है.
इस बार भाइयों की कलाइयां चाइनीज राखियों की बजाए इन स्वदेशी राखियों से सजेंगी. कोरोना महामारी की वजह से लोग भी चीनी राखियां खरीदने से बच रहे हैं. ऐसे में गोबर से बनी इन राखियों की अच्छी खासी डिमांड हो रही है. इसके लिए गौशाला समिति राखियों की मार्केटिंग भी कर रही है.
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गोबर से बन रहे कई उत्पाद
गौशाला में रोजाना करीब 300 राखियां बनाई जाती हैं. इसका सोशल मीडिया पर प्रचार भी किया जा रहा हैं. इसके साथ ही ऑनलाइन बिक्री भी की जा रही है. यहां गोबर से राखियों के अलावा धूप बत्ती और गमले भी बनाए जाते हैं. यही नहीं गोबर की माला के साथ ही छेना यानि कंडे, स्वास्तिक चिन्ह, दीये समेत क़रीब 32 चीजें बनाई जाती हैं. मोबाइल से निकलने वाले रेडिएशन को दूर करने के लिए गोबर से एक स्टीकर भी बनाया जाता है.
पर्यावरण का संरक्षण
गौशाला समिति के सचिव संतराम सोनी ने बताया कि कोरोना वायरस संक्रमण के चलते गौशाला में गोबर से राखी बनाने का काम शुरू किया गया है. इससे पर्यावरण को कोई नुकसान भी नहीं है. गोबर से बने ये उत्पाद पर्यावरण संरक्षण में अहम भूमिका निभाते हैं. लिहाजा इन उत्पादों को लोग बहुत पसंद कर रहे हैं. खास बात ये है कि इससे ग्रामीणों को रोजगार भी मिल रहा है और वे आत्मनिर्भर भी बन रहे हैं.