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छत्तीसगढ़ के इस मंदिर में गंधेश्वर के रूप में पूजे जाते हैं भगवान शिव

छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक सिरपुर नगरी में भगवान शंकर की पूजा गंधेश्वर के रूप की जाती है. महाशिवरात्रि के दिन यहां हजारों की संख्या में भक्त भोले के दर्शन के लिए पहुंचते हैं.

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गधेंश्वर के रूप में पूजे जाते हैं शिव संकर
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Published : Mar 11, 2021, 5:06 PM IST

Updated : Mar 11, 2021, 5:55 PM IST

महासमुंदः देवों के देव महादेव की पूजा पूरे विश्वभर में विभिन्न रूपों और नामों से होती है. भोलेनाथ को भक्त कहीं महाकाल, कहीं विश्वनाथ के नाम से तो कहीं भूतनाथ के नाम से पूजते हैं. छत्तीसगढ़ के प्राचीन शिवालयों में से एक सिरपुर में भगवान शंकर की पूजा गधेंश्वर के रूप में होती है. ऐसी मान्यता है कि इस शिवलिंग से गंध निकलता है. महाशिवरात्रि के मौके पर सुबह से ही मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहा. श्रद्धालु भगवान शिव का जलाभिषेक कर पूजा-अर्चना की.

गंधेश्वर के रूप में पूजे जाते हैं भगवान शंकर

सरस सलिला महानदी के पावन तट पर सिरपुर नगरी में भगवान शंकर की पूजा गंधेश्वर के रूप में होती है. इस मंदिर का निर्माण 8वी शताब्दी में बाला अर्जुन के समय में बाणासुर ने कराया था. जिसके बारे में देवकथा है, कि वो हमेशा पूजा के लिए काशी जाते थे. वहां से एक शिवलिंग उठा कर लाते थे.

अमरनाथ धाम का त्रेता युग से जुडा है रिश्ता, यहीं पर परशुराम को मिला था दिव्यास्त्र

भोले की महिमा

एक दिन भगवान शंकर ने बाणासुर से कहा कि तुम हमेशा काशी आते हो, अब मैं सिरपुर में ही प्रगट हो रहा हूं. तब बाणासुर बोले मैं तो बहुत सारे शिवलिंग स्थापित किया हूं. मुझे कैसे पता चलेगा कि आप किस पर विराजमान हैं. तो भगवान शिव ने कहा जिस शिवलिंग से चंदन और तुलसी का गंध निकलेगा तुम उसी की पूजा करना. जिसके बाद से इस मंदिर में बाबा भोलेनाथ की पूजा गंधेश्वर के रूप में की जाती है. पुजारियों का मानना है कि महाशिवरात्रि और सावन में शिव की पूजा का विशेष महत्व है. भक्त भी इन्हीं दिनों अपनी मनोकामना लेकर मंदिर आते हैं. साथ ही उनकी मनोकामना भी पूरी होती है.

महासमुंदः देवों के देव महादेव की पूजा पूरे विश्वभर में विभिन्न रूपों और नामों से होती है. भोलेनाथ को भक्त कहीं महाकाल, कहीं विश्वनाथ के नाम से तो कहीं भूतनाथ के नाम से पूजते हैं. छत्तीसगढ़ के प्राचीन शिवालयों में से एक सिरपुर में भगवान शंकर की पूजा गधेंश्वर के रूप में होती है. ऐसी मान्यता है कि इस शिवलिंग से गंध निकलता है. महाशिवरात्रि के मौके पर सुबह से ही मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहा. श्रद्धालु भगवान शिव का जलाभिषेक कर पूजा-अर्चना की.

गंधेश्वर के रूप में पूजे जाते हैं भगवान शंकर

सरस सलिला महानदी के पावन तट पर सिरपुर नगरी में भगवान शंकर की पूजा गंधेश्वर के रूप में होती है. इस मंदिर का निर्माण 8वी शताब्दी में बाला अर्जुन के समय में बाणासुर ने कराया था. जिसके बारे में देवकथा है, कि वो हमेशा पूजा के लिए काशी जाते थे. वहां से एक शिवलिंग उठा कर लाते थे.

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एक दिन भगवान शंकर ने बाणासुर से कहा कि तुम हमेशा काशी आते हो, अब मैं सिरपुर में ही प्रगट हो रहा हूं. तब बाणासुर बोले मैं तो बहुत सारे शिवलिंग स्थापित किया हूं. मुझे कैसे पता चलेगा कि आप किस पर विराजमान हैं. तो भगवान शिव ने कहा जिस शिवलिंग से चंदन और तुलसी का गंध निकलेगा तुम उसी की पूजा करना. जिसके बाद से इस मंदिर में बाबा भोलेनाथ की पूजा गंधेश्वर के रूप में की जाती है. पुजारियों का मानना है कि महाशिवरात्रि और सावन में शिव की पूजा का विशेष महत्व है. भक्त भी इन्हीं दिनों अपनी मनोकामना लेकर मंदिर आते हैं. साथ ही उनकी मनोकामना भी पूरी होती है.

Last Updated : Mar 11, 2021, 5:55 PM IST
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