महासमुंद: प्रशासनिक लापरवाही के कारण 35 लाख रुपये की लागत से बना सांस्कृतिक भवन और पुष्प वाटिका आज गौठान और मवेशियों का चारा गोदाम बन कर रह गया है. महासमुंद की तुमगांव नगर पंचायत में विकास की गंगा कुछ इस तरह बह रही है कि गार्डन में पौधों की जगह मवेशी चरते हुए दिखाई दे रहे हैं. कम्युनिटी हॉल खंडहर में तब्दील हो चुका है जो अब मवेशियों का चारा रखने के काम आ रहा है. इस पूरे मामले में वर्तमान उपाध्यक्ष जहां तत्कालीन अधिकारी कर्मचारी और जनप्रतिनिधि पर लापरवाही का आरोप लगा रहे हैं, वहीं आला अधिकारी हाल ही में ज्वाइन करने की दुहाई देते हुए नगर पंचायत क्षेत्र में गौठान के लिए जगह नहीं होने की बात कर रहे हैं.
नगर पंचायत तुमगांव की पुष्प वाटिका और सांस्कृतिक भवन, जो साल 2013-14 में तुमगांव की जनता के लिए बनाया गया था. उसी पुष्प वाटिका को आज अस्थाई गौठान एवं सांस्कृतिक भवन को मवेशियों का चारा गोदाम में तब्दील कर दिया गया है. साल 2012-13 में सांस्कृतिक भवन के लिए 25 लाख रुपए और पुष्प वाटिका के लिए 16 लाख रुपये की स्वीकृति शासन से मिली थी. 40 लाख रुपये में से 35 लाख रुपये खर्च कर दिए गए, लेकिन न गार्डन का लाभ जनता को मिल रहा है और न ही सांस्कृतिक भवन का.
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संस्कृतिक भवन कबाड़ में तब्दील हो चुका है. दीवारों से प्लास्टर गिर रहे हैं. टाइल्स टूट चुकी है, दरवाजा और खिड़की गायब हो चुके हैं. हॉल में कहीं पैरा तो कहीं मवेशी का दाना पड़ा हुआ है. एक चौकीदार चौकीदारी कर रहा है. वहीं दूसरी तरफ पुष्प वाटिका में चारों तरफ मवेशियों का गोबर बिखरा पड़ा है. पुष्प वाटिका में दो जगहों पर मवेशियों के लिए अस्थाई गौठान बने हैं. गार्डन के बगल में ही भवन है. जहां कांजी का भी संचालन किया जा रहा है. जहां 2 महीने से मवेशियों के लिए चारा रखा हुआ है.
सरकार और प्रशासन की अनदेखी
नगर पंचायत तुमगांव के सीएमओ का कहना है कि नगर पंचायत क्षेत्र में गौठान के लिए जगह नहीं होने के कारण यह फैसला लिया गया है. वहीं विधायक का कहना है कि पहले तो यह भवन और गार्डन ही गलत जगह पर बना है और दोनों ही भाजपा के कार्यकाल में बने हैं. तात्कालीन सरकार और प्रशासन की अनदेखी के कारण भवन और गार्डन की यह हालत है. भाजपा ने अपने शासनकाल में रुपये का दुरुपयोग किया है. हम अभी गौठान के लिए जगह न होने के कारण यहां पर व्यवस्था चला रहे है.
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17 लाख रुपये का स्टीमेट भेजा गया
विधायक विनोद सेवन लाल चंद्राकर का कहना है कि भवन बनने के बाद न ही इसकी रखवाली की गई और न ही उसका इस्तेमाल हुआ. कबाड़ हो जाने के बाद मवेशियों के लिए उपयोग किया जा रहा है. अब दोबारा इस्तेमाल करने योग्य बनाने के लिए 17 लाख रुपये का स्टीमेट बनाकर शासन को भेजा गया है.