कोरिया : समाज में अज्ञानता के अंधकार को शिक्षा की रौशनी से दूर किया जा सकता (school ruined in koriya) है. इसी वजह से सरकारें शिक्षा को लेकर पानी की तरह पैसा बहाती है.ताकि समाज के आखिरी छोर में रहने वाला व्यक्ति भी इससे अछूता ना रहे. लेकिन सरकारी योजनाओं में उस वक्त पलीता लगता दिखाई देता है जब इसकी जिम्मेदारी उठाने वाले कंधे कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार के बोझ तले दिखाई देते हैं. ऐसी एक तस्वीर कोरिया जिले में दिखाई दी है. जहां पर नौनिहालों को जान जोखिम में डालकर जमीन पर बैठकर पढ़ाई करनी पड़ रही (Studying at risk in Koriya ) है. वो भी बिना किसी टाट पट्टी के.
कहां का है मामला : भरतपुर ब्लॉक अंतर्गत ग्राम छपरा टोला (Chhapra Tola School of Bharatpur Block) में प्राथमिक शाला के छात्र अपनी जान जोखिम में डालकर पढ़ाई करने के लिये मजबूर हैं. स्कूल भवन की हालत इतनी जर्जर हो चुकी है कि कभी भी कोई बड़ी अनहोनी हो सकती है. हादसे की आशंका को देखते हुए बच्चों की पढ़ाई सुरक्षित जगह पर कराई जा रही है. पहली से पांचवी तक के छात्र-छात्राएं एक कक्ष में बैठकर पढ़ने को मजबूर हैं. जिसकी वजह से बच्चों की समुचित पढ़ाई नहीं हो पा रही है. कक्ष की कमी के कारण शिक्षक भी सभी बच्चों को एक ही क्लास में बिठाकर पढ़ाने को मजबूर है.
शिकायत के बाद भी कार्रवाई नहीं : जर्जर भवन की हालत और बाउंड्रीवाल को लेकर कई बार उच्चाधिकारियों और जनप्रतिनिधियों से शिकायत की गई (koriya news) है. लेकिन हालात जस के तस बने हुए है. जिस स्कूल में बच्चे पढ़ाई करते थे उसका छत टूट कर गिर गया है. स्कूल की बिल्डिंग भी अब धरासाई होने की कगार पर है. शिक्षा विभाग की लापरवाही की वजह से कई बार छोटे बच्चों के साथ हादसे होने की खबर आती ही रहती है.लेकिन विभाग उन घटनाओं से कोई सबक नही लेता. स्कूल की स्थिति को देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि शिक्षा विभाग छात्रों के जान के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है.
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जिम्मेदारों ने साधी चुप्पी : ऐसा नहीं है कि प्राथमिक शाला की जर्जर स्थिति से शिक्षा विभाग के जिम्मेदार अधिकारी वाकिफ नहीं है. अधिकारियों को इस मामले की पूरी जानकारी है कि भवन की स्थिति काफी बुरी हो चुकी है और बच्चों को बैठाने लायक नहीं है. लेकिन इतना कुछ जानने और समझने के बाद भी विभाग के जिम्मेदार कुम्भकर्णीय नींद में सोए हैं. इतनी शिकायतों के बाद भी शिक्षा विभाग ने स्कूल भवन की जर्जर स्थिति को सुधारने की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की है. लिहाजा बच्चे इसी जर्जर भवन में पढ़ने को मजबूर हैं.