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कोरिया: जिन हाथों में होना चाहिए पेन और कॉपी, वो झाडू पकड़ स्कूल में करते हैं सफाई

यहां किताबी ज्ञान के साथ-साथ वर्कलोड मैनेजमेंट का पाठ भी पढ़ाया जाता है, तभी तो प्यून की गैरहाजिरी में उसके काम का बोझ इन मासूमों को उठाना पड़ता है.

छात्र लगाते है झाडू
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Published : Mar 28, 2019, 12:01 AM IST

Updated : Mar 28, 2019, 2:19 AM IST


कोरिया: जिन हाथों में कॉपी और पेन होना चाहिए वो स्कूल का गेट खोलने के साथ-साथ टाट-पट्टी झाड़ने का काम कर रहे हैं. मामला कोरिया जिले की ग्राम पंचायत मेंड्राडोल में संचालित स्कूल का है. यहां बच्चे हर रोज समय से स्कूल पहुंचते हैं. गेट खोलनेकी जिम्मेदारी इन्हीं के कंधों पर रहती है जिसे बखूबी निभाते भी हैं, इसके बाद झाड़ू उठाते हैं और साफ सफाई में जुट जाते हैं.

प्यून की गैरहाजिरी में करते हैं काम
इस बारे में जब हमने स्कूल के शिक्षक से बात की तो उनका क्या कहना है आप खुद सुन लीजिए. दरअसल यहां किताबी ज्ञान के साथ-साथ वर्कलोड मैनेजमेंट का पाठ भी पढ़ाया जाता है, तभी तो प्यून की गैरहाजिरी में उसके काम का बोझ इन मासूमों को उठाना पड़ता है.

छात्र लगाते है झाडू

साफ-सफाई के लिए होती है कर्मचारी की नियुक्ति
सरकार एक ओर ग्रामीण इलाकों में शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए करोड़ों रुपयों को पानी की तरह बहा रही है. साफ सफाई के लिए स्कूलों में बकायदा कर्मचारी की नियुक्ति भी की जाती है, लेकिन बावजूद इसके इन स्कूलों का हाल क्या है इसका अंदाजा आप खुद ही लगा सकते हैं.


कोरिया: जिन हाथों में कॉपी और पेन होना चाहिए वो स्कूल का गेट खोलने के साथ-साथ टाट-पट्टी झाड़ने का काम कर रहे हैं. मामला कोरिया जिले की ग्राम पंचायत मेंड्राडोल में संचालित स्कूल का है. यहां बच्चे हर रोज समय से स्कूल पहुंचते हैं. गेट खोलनेकी जिम्मेदारी इन्हीं के कंधों पर रहती है जिसे बखूबी निभाते भी हैं, इसके बाद झाड़ू उठाते हैं और साफ सफाई में जुट जाते हैं.

प्यून की गैरहाजिरी में करते हैं काम
इस बारे में जब हमने स्कूल के शिक्षक से बात की तो उनका क्या कहना है आप खुद सुन लीजिए. दरअसल यहां किताबी ज्ञान के साथ-साथ वर्कलोड मैनेजमेंट का पाठ भी पढ़ाया जाता है, तभी तो प्यून की गैरहाजिरी में उसके काम का बोझ इन मासूमों को उठाना पड़ता है.

छात्र लगाते है झाडू

साफ-सफाई के लिए होती है कर्मचारी की नियुक्ति
सरकार एक ओर ग्रामीण इलाकों में शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए करोड़ों रुपयों को पानी की तरह बहा रही है. साफ सफाई के लिए स्कूलों में बकायदा कर्मचारी की नियुक्ति भी की जाती है, लेकिन बावजूद इसके इन स्कूलों का हाल क्या है इसका अंदाजा आप खुद ही लगा सकते हैं.

Intro: एंकर - कोरिया जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित शासकीय स्कूलों में बच्चों को किस प्रकार की शिक्षा दी जाती है इसका ताजा उदाहरण विकासखंड के ग्राम पंचायत मेंड्राडोर में संचालित स्कूल में देखने को मिला है । जहां स्कूल खुलने से लेकर साफ सफाई और दूसरे काम बच्चे पूरी तरह जिम्मेदारी से निभाते हैं । यहां अगर कुछ नहीं होता है तो सिर्फ पढ़ाई नहीं होती जिस के लिए बच्चों के अभिभावक उन्हें स्कूल भेजते हैं ।


Body: विकासखंड के ग्राम पंचायत मेंड्राडोल में संचालित स्कूल में अलग ही नजारा देखने को मिलता है । यहां स्कूल पहुँचते ही बच्चों के हाथों में झाड़ू होती है । स्कूल खोलने के बाद पूरे बच्चे मिलकर स्कूल की साफ सफाई करते हैं इतना ही नही स्कूल के प्रधान पाठक कमरे की साफ-सफाई भी इन्हीं बच्चों की जीमे है । स्कूल की सफाई करने के बाद बच्चे अपने बैठने के लिए टाट पट्टी बिछाते हैं और उसके बाद पढ़ाई शुरू होती है जब हमने इसके बारे में स्कूल के शिक्षक से बात की तो उन्होंने प्यून के नहीं आने का बहाना बनाया और कहा कि बच्चे प्यून नहीं आने पर काम करते हैं ।
बाइट- कृष्णा (छात्र)
बाइट - राधा (छात्रा)
बाइट - रघुवर (शिक्षक)


Conclusion:ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलो पर शिक्षा विभाग करोड़ो रुपय खर्च करता है ताकि गरीब आदिवासी बच्चों को बेहतर शिक्षा मिल सके । ताकि उनका सपना पूरा हो सके लेकिन दुर्भाग्य का विषय है कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों में शिक्षक बच्चों से पढ़ाई की जगह काम कर कराते हैं । स्कूल कार्यो लिए दूसरे कर्मचारियों की नियुक्ति की गई है । अब देखना यह होगा कि आला अधिकारी स्कूल के शिक्षकों पर क्या कार्रवाई करते हैं ।
Last Updated : Mar 28, 2019, 2:19 AM IST
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