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भजन शुरू होते ही साधु की कुटिया में पहुंच जाता है भालुओं का दल - koriya news update

कोरिया के जंगलों में सीताराम साधु की कुटिया के बाहर सालों से हर दिन भालुओं का दल भजन सुनने और प्रसाद खाने आते है. यहां दूर-दूर से लोग कुटिया में भालुओं को देखने पहुंचते हैं.

Rajmada jungle bears
राजमाड़ा जंगल के भालू
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Published : Mar 6, 2020, 4:55 PM IST

कोरिया : घने जंगलों के बीच कुटिया बनाकर रहने वाले एक साधु के पास भालू उनके भजन की मधुर ध्वनि से आकर्षित होकर आते हैं. इतना ही नहीं आसपास की जगह में चुपचाप बैठकर भजन सुनते हैं. ये सभी भालू भजन के दौरान खामोशी से साधु के आस-पास बैठ जाते हैं और भजन पूरा होने पर प्रसाद लेकर वापस चले जाते हैं. इंसान और भालू के बीच ऐसा अनोखा मित्रता शायद ही किसी ने देखा होगा.

भरतपुर ब्लॉक के उचेहरा इलाके के राजमाड़ा जंगल में सीताराम साधु साल 2003 से कुटिया बनाकर रह रहे हैं. साधु ने बताया कि जंगल में कुटिया बनाने के बाद वो वहां हर दिन रामधुन के साथ ही पूजा पाठ करने लगे.

प्रसाद खाने आते हैं भालू

एक दिन जब वह भजन में लीन थे, तभी उन्होंने देखा कि दो भालू उनके पास आकर बैठे हुए थे और खामोशी से भजन सुन रहे थे. यह देखकर वह पहले तो सहम गए लेकिन उन्होंने जब देखा कि भालू खामोशी से बैठे हैं. किसी तरह की हरकत नहीं कर रहे हैं तो, उन्होंने भालूओं को भजन के बाद प्रसाद दिया और इसके बाद कुछ भालू वापस जंगल में लौट गए.

नहीं पहुंचाते नुकसान

भजन के दौरान भालुओं के आने का जो सिलसिला शुरू हुआ जो आज भी जारी है. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भालुओं ने आज तक उन्हें या आने जाने वालों को किसी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुंचाया है. इतना ही नहीं जब भी भालू आते हैं तो, कुटिया के बाहर ही बैठे रहते हैं. आज तक ऐसा कोई मौका नहीं आया जब ये भालू कुटिया के अंदर गए हों.

भालुओं का किया नामकरण

इस वक्त एक नर और मादा भालू के साथ उनके दो शावक भी आ रहे हैं. भालुओं से उनका अपनापन इस तरह का हो गया है कि साधु ने उनका नामकरण भी कर दिया है. नर भालू को ‘लाला’ और मादा को ‘लल्ली’ के साथ ही शावकों को ‘चुन्नू’ और ‘मुन्नू’ का नाम दिया है.

कोरिया : घने जंगलों के बीच कुटिया बनाकर रहने वाले एक साधु के पास भालू उनके भजन की मधुर ध्वनि से आकर्षित होकर आते हैं. इतना ही नहीं आसपास की जगह में चुपचाप बैठकर भजन सुनते हैं. ये सभी भालू भजन के दौरान खामोशी से साधु के आस-पास बैठ जाते हैं और भजन पूरा होने पर प्रसाद लेकर वापस चले जाते हैं. इंसान और भालू के बीच ऐसा अनोखा मित्रता शायद ही किसी ने देखा होगा.

भरतपुर ब्लॉक के उचेहरा इलाके के राजमाड़ा जंगल में सीताराम साधु साल 2003 से कुटिया बनाकर रह रहे हैं. साधु ने बताया कि जंगल में कुटिया बनाने के बाद वो वहां हर दिन रामधुन के साथ ही पूजा पाठ करने लगे.

प्रसाद खाने आते हैं भालू

एक दिन जब वह भजन में लीन थे, तभी उन्होंने देखा कि दो भालू उनके पास आकर बैठे हुए थे और खामोशी से भजन सुन रहे थे. यह देखकर वह पहले तो सहम गए लेकिन उन्होंने जब देखा कि भालू खामोशी से बैठे हैं. किसी तरह की हरकत नहीं कर रहे हैं तो, उन्होंने भालूओं को भजन के बाद प्रसाद दिया और इसके बाद कुछ भालू वापस जंगल में लौट गए.

नहीं पहुंचाते नुकसान

भजन के दौरान भालुओं के आने का जो सिलसिला शुरू हुआ जो आज भी जारी है. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भालुओं ने आज तक उन्हें या आने जाने वालों को किसी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुंचाया है. इतना ही नहीं जब भी भालू आते हैं तो, कुटिया के बाहर ही बैठे रहते हैं. आज तक ऐसा कोई मौका नहीं आया जब ये भालू कुटिया के अंदर गए हों.

भालुओं का किया नामकरण

इस वक्त एक नर और मादा भालू के साथ उनके दो शावक भी आ रहे हैं. भालुओं से उनका अपनापन इस तरह का हो गया है कि साधु ने उनका नामकरण भी कर दिया है. नर भालू को ‘लाला’ और मादा को ‘लल्ली’ के साथ ही शावकों को ‘चुन्नू’ और ‘मुन्नू’ का नाम दिया है.

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