बारबांध एक ऐसा गांव है जहां तक पहुंचने के लिए पक्की सड़क नहीं है. दो साल से यहां लगे बिजली के खम्भे किसी शो पीस से कम नहीं हैं, जिनमें लाइट ही नहीं है. पीने व निस्तार के लिए गांव में एक ढोड़ी है, जिस पर ही ग्रामीण पानी के लिए निर्भर हैं.
घने जंगलों को पारकर आने को मजबूर ग्रामीण
इस गांव के लोग बताते हैं कि घने जंगल और पहाड़ को पारकर दुर्गम रास्तों से किसी तरह यहां तक पहुंचा जा सकता है. शासन और प्रशासन की ओर से अभी तक यहां विकास के लिए एक भी काम नहीं कराए गए हैं. आजादी के 70 साल बाद भी पक्की सड़क और बिजली का सपना ग्रामीणों को देखना पड़ रहा है.
ग्रामीण बताते हैं प्रशासन के द्वारा यहां तीन बोर कराये गये पर किसी में पानी नहीं निकला. गांव के प्राथमिक स्कूल और आंगनबाड़ी के बच्चे भी इसी ढोड़ी का पानी पीते हैं. बुनियादी सुविधाओं के अलावा यहां स्थित प्राथमिक स्कूल में बारिश के दिनों में पानी भर जाता है, छत की हालत ऐसी है कि बच्चों को स्कूल के बाहर बैठाना पड़ता है.
स्कूल के हालात बद से बदतर
स्कूल के कमरों की हालत वहां बिखरे सामान और खाली टंगे हुए ब्लैक बोर्ड को देखकर लगााया जा सकता है. 10 साल पहले स्कूल के लिए नया भवन स्वीकृत हुआ, नींव भी खोदी गई पर इसके बाद आगे कुछ नहीं हुआ. यहां की समस्याओं की जानकारी विधायक अम्बिका सिंहदेव को मिली तो उन्होंने ग्रामीणों से चर्चा कर पूरी जानकारी ली. जहां एक ओर गांव में विकास को लेकर पंचायत सचिव गोलमोल जवाब दे रहे हैं, वहीं इलाके की विधायक सुविधाओं को पूरा करने की कोशिश करने की बात कह रही हैं.