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International labor day : कोरबा में आज भी न्यूनतम मजदूरी के लिए संघर्षरत हैं मजदूर

कोरबा जिले को प्रदेश की ऊर्जानगरी कहा जाता है. यहां से ना सिर्फ प्रदेश, देश के कई राज्यों को भी बिजली मिलती है. कोयला खदानों से देश को 20% कोयला मिलता है. यह सभी उद्योग मजदूरों के दम पर ही चलते हैं. लेकिन मजदूर अभी भी अपनी समस्याओं से जूझ रहे हैं. उन्हें न्यूनतम मजदूरी दर के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है.

international labor day
मजदूरी के लिए आज भी संघर्षरत हैं मजदूर
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Published : May 1, 2023, 8:15 PM IST

Updated : May 1, 2023, 10:45 PM IST

मजदूरी बनी मजबूरी !

कोरबा : केंद्र और राज्य स्तर से न्यूनतम मजदूरी दर को लेकर नियम बने हुए हैं. हर महीने एक सर्कुलर जारी होता है. जिसमें न्यूनतम मजदूरी दरों का उल्लेख होता है. इसमें मूल वेतन और महंगाई भत्ता शामिल होता है. लेकिन अब भी इसके अनुसार मजदूरों को मजदूरी नहीं दी जाती. श्रमिक संगठनों की मानें तो ठेकेदार प्रबंधन के साथ मिलकर मजदूरों का शोषण करते हैं. मजदूर इस बारे में कहते हैं, कि उन्हें मजदूरी का एक हिस्सा वापस करने के लिए कह दिया जाता है. काम से निकालने का भय दिखाया जाता है. मजबूरन मजदूर ऐसा करने पर विवश हो जाते हैं.



कितनी श्रेणियों में काम करते हैं मजदूर : केंद्र ने श्रम कानूनों में बदलाव किया है. आउटसोर्सिंग को बढ़ावा दिया गया है . नतीजतन बिजली उद्योग हो या कोयला कामगार. इन क्षेत्रों में ठेका श्रमिकों की संख्या बढ़ गई है. इनके लिए भी सरकार ने नियम तय किया है. फिलहाल 4 कैटेगरी में मजदूर विभाजित हैं. जिनमें अतिकुशल, कुशल, अर्धकुशल और अंत में अकुशल मजदूरों को रखा जाता है. केंद्र सरकार ने अकुशल मजदूर के लिए 675 से 700 तो राज्य सरकार ने 460 रुपए प्रतिदिन की मजदूरी के भुगतान का नियम रखा है. जैसे-जैसे कैटेगरी बढ़ती है. इस मजदूरी में 20 से 30% की वृद्धि होती जाती है. मजदूरी को सरकारी नियमों के अनुसार ही मजदूरी मिलनी चाहिए.


प्रबंधन और ठेकेदार के सांठगांठ से मजदूरों का शोषण : श्रमिक संगठन सीटू के जिलाध्यक्ष एसएन बनर्जी कहते हैं कि "मजदूरों का संघर्ष आजादी के बाद से लेकर अब तक जारी है. कॉरपोरेट परस्ती को बढ़ावा दिया जा रहा है. न्यूनतम मजदूरी दरों के लिए नियम तो बनाए जाते हैं. लेकिन धरातल पर इसका पालन नहीं होता. ठेकेदार प्रबंधन से सांठगांठ कर लेते हैं और वह मजदूरों का शोषण करते हैं. कई तरह के प्रपंच लगाकर वह मजदूरों के अधिकार पर डंडी मारते हैं. नियमानुसार उन्हें सरकारी नियमों के तहत मजदूरी का भुगतान करना चाहिए, लेकिन कुछ जगह को छोड़ दिया जाए तो कभी ऐसा होता नहीं है."



ये भी पढ़ें- मजदूरी के लिए सड़क पर उतरे मजदूर


ऑनलाइन ट्रांजैक्शन दिखाकर वापस मांग ली जाती है राशि : मजदूरी दर में कटौती की शिकायत लेकर हाल ही में एनटीपीसी के कुछ मजदूरों ने शिकायत की थी. इनमें से एक मजदूर महिपाल, यहां टेक्निकल मजदूर हैं. महिपाल कहते हैं कि "हम काफी साल से एनटीपीसी के अधीन नियोजित ठेकेदार के अंडर काम कर रहे हैं. न्यूनतम मजदूरी के नियमों के तहत हमारे खाते में ठेकेदार की राशि ट्रांसफर कर दी जाती है. लेकिन यह सिर्फ दिखावे के लिए होता है. बाद में मुंशी राशि वापस ले लेते हैं.'' यानी कुल मिलाकर नियम कायदे कानून धरातल पर आकर टूट जाते हैं. असल में मजदूर आज भी वहीं हैं, जहां पहले थे. इन मजदूरों की रोजी मारकर आज भी कुछ ठेकेदार धन्ना सेठ बने हुए हैं.

मजदूरी बनी मजबूरी !

कोरबा : केंद्र और राज्य स्तर से न्यूनतम मजदूरी दर को लेकर नियम बने हुए हैं. हर महीने एक सर्कुलर जारी होता है. जिसमें न्यूनतम मजदूरी दरों का उल्लेख होता है. इसमें मूल वेतन और महंगाई भत्ता शामिल होता है. लेकिन अब भी इसके अनुसार मजदूरों को मजदूरी नहीं दी जाती. श्रमिक संगठनों की मानें तो ठेकेदार प्रबंधन के साथ मिलकर मजदूरों का शोषण करते हैं. मजदूर इस बारे में कहते हैं, कि उन्हें मजदूरी का एक हिस्सा वापस करने के लिए कह दिया जाता है. काम से निकालने का भय दिखाया जाता है. मजबूरन मजदूर ऐसा करने पर विवश हो जाते हैं.



कितनी श्रेणियों में काम करते हैं मजदूर : केंद्र ने श्रम कानूनों में बदलाव किया है. आउटसोर्सिंग को बढ़ावा दिया गया है . नतीजतन बिजली उद्योग हो या कोयला कामगार. इन क्षेत्रों में ठेका श्रमिकों की संख्या बढ़ गई है. इनके लिए भी सरकार ने नियम तय किया है. फिलहाल 4 कैटेगरी में मजदूर विभाजित हैं. जिनमें अतिकुशल, कुशल, अर्धकुशल और अंत में अकुशल मजदूरों को रखा जाता है. केंद्र सरकार ने अकुशल मजदूर के लिए 675 से 700 तो राज्य सरकार ने 460 रुपए प्रतिदिन की मजदूरी के भुगतान का नियम रखा है. जैसे-जैसे कैटेगरी बढ़ती है. इस मजदूरी में 20 से 30% की वृद्धि होती जाती है. मजदूरी को सरकारी नियमों के अनुसार ही मजदूरी मिलनी चाहिए.


प्रबंधन और ठेकेदार के सांठगांठ से मजदूरों का शोषण : श्रमिक संगठन सीटू के जिलाध्यक्ष एसएन बनर्जी कहते हैं कि "मजदूरों का संघर्ष आजादी के बाद से लेकर अब तक जारी है. कॉरपोरेट परस्ती को बढ़ावा दिया जा रहा है. न्यूनतम मजदूरी दरों के लिए नियम तो बनाए जाते हैं. लेकिन धरातल पर इसका पालन नहीं होता. ठेकेदार प्रबंधन से सांठगांठ कर लेते हैं और वह मजदूरों का शोषण करते हैं. कई तरह के प्रपंच लगाकर वह मजदूरों के अधिकार पर डंडी मारते हैं. नियमानुसार उन्हें सरकारी नियमों के तहत मजदूरी का भुगतान करना चाहिए, लेकिन कुछ जगह को छोड़ दिया जाए तो कभी ऐसा होता नहीं है."



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ऑनलाइन ट्रांजैक्शन दिखाकर वापस मांग ली जाती है राशि : मजदूरी दर में कटौती की शिकायत लेकर हाल ही में एनटीपीसी के कुछ मजदूरों ने शिकायत की थी. इनमें से एक मजदूर महिपाल, यहां टेक्निकल मजदूर हैं. महिपाल कहते हैं कि "हम काफी साल से एनटीपीसी के अधीन नियोजित ठेकेदार के अंडर काम कर रहे हैं. न्यूनतम मजदूरी के नियमों के तहत हमारे खाते में ठेकेदार की राशि ट्रांसफर कर दी जाती है. लेकिन यह सिर्फ दिखावे के लिए होता है. बाद में मुंशी राशि वापस ले लेते हैं.'' यानी कुल मिलाकर नियम कायदे कानून धरातल पर आकर टूट जाते हैं. असल में मजदूर आज भी वहीं हैं, जहां पहले थे. इन मजदूरों की रोजी मारकर आज भी कुछ ठेकेदार धन्ना सेठ बने हुए हैं.

Last Updated : May 1, 2023, 10:45 PM IST
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