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SPECIAL: जब कोरबा रियासत की इस रानी ने अंग्रेजों को सबक सिखा दिया था

यूं तो कोरबा जिला वर्तमान में एक औद्योगिक नगरी के रूप में जाना जाता है. चारों ओर से पहाड़ों और जंगलों से घिरे इस जिले से आजादी की लड़ाई को लेकर कई रहस्यमई और रोचक कहानियां जुड़ी हुई हैं.

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Published : Aug 15, 2019, 12:04 AM IST

Updated : Aug 15, 2019, 2:56 PM IST

रानी धनराज कुंवर

कोरबा: रानी धनराज कुंवर कोरबा रियासत की अंतिम कर्ताधर्ता थीं, लेकिन यह जानकर आपको हैरानी होगी कि रानी धनराज कुंवर ने अपने आगे अंग्रेजों की नहीं चलने दी और उन्हीं की भाषा में जवाब दिया.

स्टोरी पैकेज.
लॉर्ड डलहौजी की हड़प नीति से दूसरी रियासतों की ही तरह कोरबा भी अछूता नहीं था. सन 1918 में तत्कालीन जमीदार जोगेश्वर प्रताप सिंह की मौत हो गई, जिसके बाद लॉर्ड डलहौजी ने रानी धनराज कुंवर से कोरबा की जमींदारी हड़प ली थी. अंग्रेजों के कानून के तहत अगर उस राज्य में पुरुष उत्तराधिकारी नहीं होता था, तो अंग्रेज उस राज्य को अपने अधीन कर लेते थे.

भतीजे को लिया गोद
जोगेश्वर प्रताप सिंह और रानी धनराज कुंवर को संतान के तौर पर बेटी थी, लेकिन रानी ने अंग्रेजों की साजिश को भांपते हुए अपने भतीजे कुंवर दृगपाल सिंह और कुंवर भूषण प्रताप सिंह को उत्तराधिकारी तय किया. इसके लिए रानी ने अंग्रेजों से चार साल तक कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी और 1922 में उन्हें जीत मिली, जिसके बाद अंग्रेजों ने धनराजकुंवर को राज्य की गद्दी वापस सौंप की.

वाइसरॉय ने की थी तारीफ
बकायदा लॉर्ड वाइसरॉय ने महारानी की तारीफ में पत्र लिखकर उन्हें जनसेवी बताया था और यह भी लिखा था कि आपके राज्य की आर्थिक स्थिति भी बेहद मजबूत है. उस जमाने में रानी धनराज कुंवर ने अपने राज्य में शैक्षिक संस्थान और एंबुलेंस की सुविधा आम जनता को प्रदान की थी.

कोरबा: रानी धनराज कुंवर कोरबा रियासत की अंतिम कर्ताधर्ता थीं, लेकिन यह जानकर आपको हैरानी होगी कि रानी धनराज कुंवर ने अपने आगे अंग्रेजों की नहीं चलने दी और उन्हीं की भाषा में जवाब दिया.

स्टोरी पैकेज.
लॉर्ड डलहौजी की हड़प नीति से दूसरी रियासतों की ही तरह कोरबा भी अछूता नहीं था. सन 1918 में तत्कालीन जमीदार जोगेश्वर प्रताप सिंह की मौत हो गई, जिसके बाद लॉर्ड डलहौजी ने रानी धनराज कुंवर से कोरबा की जमींदारी हड़प ली थी. अंग्रेजों के कानून के तहत अगर उस राज्य में पुरुष उत्तराधिकारी नहीं होता था, तो अंग्रेज उस राज्य को अपने अधीन कर लेते थे.

भतीजे को लिया गोद
जोगेश्वर प्रताप सिंह और रानी धनराज कुंवर को संतान के तौर पर बेटी थी, लेकिन रानी ने अंग्रेजों की साजिश को भांपते हुए अपने भतीजे कुंवर दृगपाल सिंह और कुंवर भूषण प्रताप सिंह को उत्तराधिकारी तय किया. इसके लिए रानी ने अंग्रेजों से चार साल तक कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी और 1922 में उन्हें जीत मिली, जिसके बाद अंग्रेजों ने धनराजकुंवर को राज्य की गद्दी वापस सौंप की.

वाइसरॉय ने की थी तारीफ
बकायदा लॉर्ड वाइसरॉय ने महारानी की तारीफ में पत्र लिखकर उन्हें जनसेवी बताया था और यह भी लिखा था कि आपके राज्य की आर्थिक स्थिति भी बेहद मजबूत है. उस जमाने में रानी धनराज कुंवर ने अपने राज्य में शैक्षिक संस्थान और एंबुलेंस की सुविधा आम जनता को प्रदान की थी.

Intro:यूं तो कोरबा जिला वर्तमान में एक औद्योगिक नगरी के रूप में जाना जाता है और चारों ओर पहाड़ों और जंगलों से घिरा हुआ एक रहस्यमय जिला है। कोरबा जिले में आजादी के पहले इसी तरह की कुछ रहस्यमई और रोचक कहानियां जुड़ी हुई हैं।


Body:यह तो सभी जानते हैं कि रानी धनराज कुंवर कोरबा रियासत की अंतिम कर्ता धर्ता थी। लेकिन यह जानकर आपको गर्व होगा कि रानी धनराज कुंवर ने 1947 यानी देश की आज़ादी से पहले ही कोरबा रियासत को अंग्रेजों की ग़ुलामी से आज़ाद करा लिया था। दरअसल लॉर्ड डलहौजी की हड़प नीति से कोरबा भी अछूता नहीं था। सन 1918 में तत्कालीन जमीदार जोगेश्वर प्रताप सिंह की मृत्यु हो गई थी। जिसके बाद लॉर्ड डलहौजी ने रानी धनराज कुंवर से कोरबा की जमीदारी हड़प ली थी। इसके बाद अंग्रेजों के कानून के तहत और भारत के पुरुष प्रधान देश होने वाले नियम के तहत अगर उस राज्य में पुरुष उत्तराधिकारी नहीं होता था तो अंग्रेज़ उस राज्य को अपने अधीन कर लेते थे। जोगेश्वर प्रताप सिंह और रानी धनराज कुंवर की बेटी संतान थी। लेकिन रानी धनराज कुंवर ने अपने भतीजे कुंवर दृगपाल सिंह और कुंवर भूषण प्रताप सिंह को उत्तराधिकारी तय किया। लेकिन इसके लिए भी उन्हें अंग्रेजों से 4 साल कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी, तब जाकर 1922 में उन्हें जीत हासिल हुई और अंग्रेजो ने कोरबा राज्य की गद्दी वापस रानी धनराज कुंवर को सौंप दी। बकायदा लॉर्ड वाइसरॉय ने उनकी पत्र में तारीफ लिखते हुए उन्हें जनसेवी बताया था और यह भी लिखा था कि आपके राज्य की आर्थिक स्थिति भी बेहद मजबूत है। उस जमाने में रानी धनराज कुंवर ने अपने राज्य में शैक्षिक संस्थान और एंबुलेंस की सुविधा आम जनता को प्रदान की थी।





Conclusion:रानी धनराज कुंवर के कोरबा रियासत में उस वक़्त 1 लाख 60 हज़ार की संपत्ति थी। अंग्रेजों ने रानी के प्रगतिशील सोच की काफी तारीफ की थी। 1922 में रानी को कोरबा सौंपने के बाद अंग्रेज़ रानी से टैक्स तो लेते थे लेकिन उन्हें साल में एक बार उनके राज्य के विकास के लिए कुछ आर्थिक मदद भी पहुंचाते थे। बताया जाता है कि ऐसा देश के बहुत कम रियासतों में अंग्रेजों ने ऐसी नम्रता दिखाई थी।
Last Updated : Aug 15, 2019, 2:56 PM IST
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