कोरबा: छत्तीसगढ़ की पहचान नक्सलियों के अलावा अगर किसी से होती है तो वह है वन एन ओनली कड़कनाथ. इसके अंडे बहुत पौष्टिक होते हैं. इसके मांस में विटमिन बी-1, बी-2-बी-6 सी और विटमिन ई मौजूद होता है. कड़कनाथ में दुसरे मुर्गों के मुकाबले 25 फीसदी ज्यादा प्रोटीन मौजूद रहता है. इसमें सफेद मुर्गे के मुकाबले 25 फीसदी कम कॉलेस्ट्रॉल मौजूद रहता है.
अंडों से होता कई रोगों का इलाज
कड़कनाथ के अंडों को अस्थमा, हेडेक्स और किडनी की बीमारियों को ठीक करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इतना ही नहीं कड़कनाथ मुर्गे को अमेरिका और जर्मनी में एक्सपोर्ट भी किया जाता है. ये तो थी कड़कनाथ मुर्गे की खूबियां और अब नजर डालते हैं उस कमजोरी पर जिसने दंतेवाड़ा के साथ-साथ आस-पास के जिलों में इसकी फार्मिंग करने वाले किसानों की मुसीबत बढ़ा रही है.
कड़कनाथ की फार्मिंग थी बड़ी समस्या
दरअसल कड़कनाथ मुर्गी में भूलने की प्रवृत्ति होती है, जिसकी वजह से वह अंडे देकर उसे भूलकर चली जाती है. अंडे से चूजों के बाहर निकलने के लिए मुर्गी की ओर से उसे सेना जरूरी होता है. कड़कनाथ मुर्गी में तो ये हैबिट थी ही नहीं ऐसे में इस नस्ल की फार्मिंग करने वाले किसानों के सामने एक बड़ी मुसीबत आन पड़ी कि जब मुर्गे अंडों सेयेगी ही नहीं तो इसमें से चूजे बाहर कैसे आएंगे.
मुर्गी की तरह करना है अंडों की देखभाल
किसानों की इस मुसीबत का हल निकाला कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने. इस साइंटिस्टों ने एक ऐसी मशीन तैयार की जो देखने में तो एक छोटे रेफ्रीजिलेटर की तरह लगती है, लेकिन है बड़े काम की चीज. यह छोटा सा इक्विपमेंट अंडों की देखभाल ठीक मुर्गी की तरह ही करता है.
एक किलो की कीमत 600 से 800 रुपये
मार्केट में पहले भी अंडों को सेने वाली मशीनें को मौजूद हैं लेकिन उनकी कीमत इतनी ज्यादा थी कि दंतेवाड़ा के भोले-भाले किसान इनकी पहुंच से खासा दूर थे. बाइट कड़कनाथ नस्ल के मुर्गा या मुर्गी की कीमत बाजार में 600 से 800 रुपये प्रति किलो तक है.
अविष्कार बना वरदान
जैसा कि हम पहले ही बता चुके हैं कि कड़कनाथ के अंडे और उसके मांस का इस्तेमाल कई तरह की बीमारियों को कंट्रोल करने किया जाता है. ऐसे में कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों का यह अविष्कार किसानों के साथ-साथ कई तरह के मरीजों के लिए भी वरदान साबित होगा.