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SPECIAL: कड़कनाथ की इस आदत से परेशान हैं किसान, ये मशीन बनेगी 'वरदान'

कोरबा के कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने एक मशीन तैयार, जिसकी मदद से कड़कनाथ के अंडों को सेया जा सकता है.

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Published : Jun 20, 2019, 4:47 PM IST

Updated : Jun 20, 2019, 5:55 PM IST

कोरबा: छत्तीसगढ़ की पहचान नक्सलियों के अलावा अगर किसी से होती है तो वह है वन एन ओनली कड़कनाथ. इसके अंडे बहुत पौष्टिक होते हैं. इसके मांस में विटमिन बी-1, बी-2-बी-6 सी और विटमिन ई मौजूद होता है. कड़कनाथ में दुसरे मुर्गों के मुकाबले 25 फीसदी ज्यादा प्रोटीन मौजूद रहता है. इसमें सफेद मुर्गे के मुकाबले 25 फीसदी कम कॉलेस्ट्रॉल मौजूद रहता है.

स्टोरी पैकेज

अंडों से होता कई रोगों का इलाज
कड़कनाथ के अंडों को अस्थमा, हेडेक्स और किडनी की बीमारियों को ठीक करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इतना ही नहीं कड़कनाथ मुर्गे को अमेरिका और जर्मनी में एक्सपोर्ट भी किया जाता है. ये तो थी कड़कनाथ मुर्गे की खूबियां और अब नजर डालते हैं उस कमजोरी पर जिसने दंतेवाड़ा के साथ-साथ आस-पास के जिलों में इसकी फार्मिंग करने वाले किसानों की मुसीबत बढ़ा रही है.

कड़कनाथ की फार्मिंग थी बड़ी समस्या
दरअसल कड़कनाथ मुर्गी में भूलने की प्रवृत्ति होती है, जिसकी वजह से वह अंडे देकर उसे भूलकर चली जाती है. अंडे से चूजों के बाहर निकलने के लिए मुर्गी की ओर से उसे सेना जरूरी होता है. कड़कनाथ मुर्गी में तो ये हैबिट थी ही नहीं ऐसे में इस नस्ल की फार्मिंग करने वाले किसानों के सामने एक बड़ी मुसीबत आन पड़ी कि जब मुर्गे अंडों सेयेगी ही नहीं तो इसमें से चूजे बाहर कैसे आएंगे.

मुर्गी की तरह करना है अंडों की देखभाल
किसानों की इस मुसीबत का हल निकाला कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने. इस साइंटिस्टों ने एक ऐसी मशीन तैयार की जो देखने में तो एक छोटे रेफ्रीजिलेटर की तरह लगती है, लेकिन है बड़े काम की चीज. यह छोटा सा इक्विपमेंट अंडों की देखभाल ठीक मुर्गी की तरह ही करता है.

एक किलो की कीमत 600 से 800 रुपये
मार्केट में पहले भी अंडों को सेने वाली मशीनें को मौजूद हैं लेकिन उनकी कीमत इतनी ज्यादा थी कि दंतेवाड़ा के भोले-भाले किसान इनकी पहुंच से खासा दूर थे. बाइट कड़कनाथ नस्ल के मुर्गा या मुर्गी की कीमत बाजार में 600 से 800 रुपये प्रति किलो तक है.

अविष्कार बना वरदान
जैसा कि हम पहले ही बता चुके हैं कि कड़कनाथ के अंडे और उसके मांस का इस्तेमाल कई तरह की बीमारियों को कंट्रोल करने किया जाता है. ऐसे में कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों का यह अविष्कार किसानों के साथ-साथ कई तरह के मरीजों के लिए भी वरदान साबित होगा.

कोरबा: छत्तीसगढ़ की पहचान नक्सलियों के अलावा अगर किसी से होती है तो वह है वन एन ओनली कड़कनाथ. इसके अंडे बहुत पौष्टिक होते हैं. इसके मांस में विटमिन बी-1, बी-2-बी-6 सी और विटमिन ई मौजूद होता है. कड़कनाथ में दुसरे मुर्गों के मुकाबले 25 फीसदी ज्यादा प्रोटीन मौजूद रहता है. इसमें सफेद मुर्गे के मुकाबले 25 फीसदी कम कॉलेस्ट्रॉल मौजूद रहता है.

स्टोरी पैकेज

अंडों से होता कई रोगों का इलाज
कड़कनाथ के अंडों को अस्थमा, हेडेक्स और किडनी की बीमारियों को ठीक करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इतना ही नहीं कड़कनाथ मुर्गे को अमेरिका और जर्मनी में एक्सपोर्ट भी किया जाता है. ये तो थी कड़कनाथ मुर्गे की खूबियां और अब नजर डालते हैं उस कमजोरी पर जिसने दंतेवाड़ा के साथ-साथ आस-पास के जिलों में इसकी फार्मिंग करने वाले किसानों की मुसीबत बढ़ा रही है.

कड़कनाथ की फार्मिंग थी बड़ी समस्या
दरअसल कड़कनाथ मुर्गी में भूलने की प्रवृत्ति होती है, जिसकी वजह से वह अंडे देकर उसे भूलकर चली जाती है. अंडे से चूजों के बाहर निकलने के लिए मुर्गी की ओर से उसे सेना जरूरी होता है. कड़कनाथ मुर्गी में तो ये हैबिट थी ही नहीं ऐसे में इस नस्ल की फार्मिंग करने वाले किसानों के सामने एक बड़ी मुसीबत आन पड़ी कि जब मुर्गे अंडों सेयेगी ही नहीं तो इसमें से चूजे बाहर कैसे आएंगे.

मुर्गी की तरह करना है अंडों की देखभाल
किसानों की इस मुसीबत का हल निकाला कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने. इस साइंटिस्टों ने एक ऐसी मशीन तैयार की जो देखने में तो एक छोटे रेफ्रीजिलेटर की तरह लगती है, लेकिन है बड़े काम की चीज. यह छोटा सा इक्विपमेंट अंडों की देखभाल ठीक मुर्गी की तरह ही करता है.

एक किलो की कीमत 600 से 800 रुपये
मार्केट में पहले भी अंडों को सेने वाली मशीनें को मौजूद हैं लेकिन उनकी कीमत इतनी ज्यादा थी कि दंतेवाड़ा के भोले-भाले किसान इनकी पहुंच से खासा दूर थे. बाइट कड़कनाथ नस्ल के मुर्गा या मुर्गी की कीमत बाजार में 600 से 800 रुपये प्रति किलो तक है.

अविष्कार बना वरदान
जैसा कि हम पहले ही बता चुके हैं कि कड़कनाथ के अंडे और उसके मांस का इस्तेमाल कई तरह की बीमारियों को कंट्रोल करने किया जाता है. ऐसे में कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों का यह अविष्कार किसानों के साथ-साथ कई तरह के मरीजों के लिए भी वरदान साबित होगा.

Intro:कड़कनाथ नस्ले की माता द्वारा अपने अंडे सेने की आलसी प्रवृत्ति के कारण कृषि विज्ञान केंद्र कोरबा द्वारा एक आर्टिफिशियल मशीन तैयार की गई है। इस देसी मशीन की खासियत यह है कि किसी मुर्गी की तरह ही यह अंडों को सेती है और 21 दिनों में स्वस्थ चूजों को जन्म देती है।


Body:इस मशीन को मात्र ₹5000 में कृषि विज्ञान केंद्र के लोगों ने इसे तैयार किया है कृषि विज्ञान केंद्र में काम करने वाले मनमोहन यादव और मुख्य वैज्ञानिक आर.के. महोबिया की मेहनत से दो मशीन तैयार की गई है। एक मशीन जिसकी लागत ₹1000 है और यह मैन्युअल मशीन है, इसमें 50-60 अंडे सेने की क्षमता है। दूसरी मशीन को पुराने फ्रिज के इस्तेमाल से तैयार किया गया है। यह मशीन ऑटोमैटिक है और इसको बनाने की लागत ₹5000 आई है। इस मशीन में 120 अंडे सेने की क्षमता है।
दरअसल यह इनक्यूबेटर महंगी मशीनों से बिल्कुल अलग है। यह मशीन पूरी तरह से सस्ती और सीमित संसाधनों की उपलब्धता के आधार पर इजाद की गई है। इस मशीन में मुर्गी की तरह 21 दिनों तक अंडे सेने जाने के अलावा कई और लक्षण भी मुर्गी की ही तरह हैं। इसके भीतर ठीक वैसा ही तापमान मेंटेन किया जाता है जैसा कि मुर्गी के बैठने पर अंडे को मिलता है।
दरअसल की कृषि विज्ञान केंद्र की यह पहल इसलिए अभी सराहनीय है क्योंकि इससे जिले में कड़कनाथ के पालन को बढ़ावा मिलेगा। आमतौर पर मुर्गी पालन में कड़कनाथ की मौजूदगी नहीं पाई जाती है। कड़कनाथ बहुत ही दुर्लभ नस्ल के मुर्गे होते हैं। यह ज्यादातर बस्तर में पाए जाते हैं कड़कनाथ कभी भी अपने अंडे नहीं सेते हैं इसलिए इनकी तादाद बेहद कम है।
दरअसल, कड़कनाथ के अंडे बेहद पौष्टिक युक्त होते हैं और इसलिए किसान मुर्गी पालन में कड़कनाथ को भी रखना चाहते हैं। सबसे पहली बात कड़कनाथ आसानी से मिलते नहीं हैं और वह मिलते हैं तो उनके अंडों को सेने के लिए किसानों को मशीन की जरूरत होती है। लेकिन विदेशी मशीनें 50000 से 5 लाख की कीमत में आती हैं। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए और किसानों की भलाई को सोचते हुए कृषि विज्ञान केंद्र कोरबा ने सस्ती और देसी मशीन का इजाद किया है।
पुराने खराब पड़े फ्रिज के ढांचे में सेंसर तापमान नापने वाली मशीन और भाप देने के लिए पानी उबालने वाले प्लेट आदि को रखा गया है। इनक्यूबेटर के बाहर से ही तापमान का पता चलता रहता है। मशीन के भीतर इस तरह का वातावरण रखा जाता है कि जिससे अंडों के भीतर चूजे बनने की प्रक्रिया शुरू हो सके। कृषि विज्ञान केंद्र के किसान मोहन का भी मशीन तैयार करने में बड़ा हाथ है। मोहन बताते हैं उन्होंने पुरानी फ्रिज का इस्तेमाल किया, लेकिन इससे लकड़ी के बक्से में भी एसी मशीन सिर्फ ₹5000 में बनाकर किसानों को प्रदान किया जा सकता है। इसमें सिर्फ मुर्गी ही नहीं बत्तख और बटेर के अंडे भी रखे हैं। सभी के सकारात्मक परिणाम मिल रहे हैं।
यह जो अब चूजे यहां देख रहे हैं यह इसी इनक्यूबेटर से जन्मे है और यह बिल्कुल स्वस्थ हैं।
कड़कनाथ नस्ल का मुर्गा या मुर्गी की कीमत बाजार में 600 से 800 प्रति किलो रहती है। कड़कनाथ नस्ल के मुर्गों की खासियत यह है कि इसे बीपी, शुगर के मरीजों के लिए फायदेमंद माना जाता है। सबसे ज्यादा प्रोटीन इसी नस्ल के मुर्गों में होती है। यही कारण है कि इसकी मांग ज्यादा है। लेकिन इनकी तादाद बेहद कम है और सभी जगह यह नहीं मिलते हैं। लेकिन कृषि विज्ञान केंद्र कोरबा की इस पहल के बाद जिले में कड़कनाथ नस्ल के मुर्गो और उनके पालन में तेजी आएगी। मनमोहन यादव ने बताया कि अब इन मशीनों की मांग उठने लगी है। बीते कुछ दिनों में 3-4 किसानों ने मशीन के लिए आर्डर दिया है। मनमोहन यादव बताते हैं कि अब वे 900 अंडे की क्षमता के मशीन को तैयार करने की योजना पर काम कर रहे हैं।

बाइट- मनमोहन यादव, किसान, कृषि विज्ञान केंद्र
बाइट- एस.के. उपाध्याय, विषय वस्तु विशेषज्ञ, शस्य विज्ञान, कृषि विज्ञान केंद्र


Conclusion:
Last Updated : Jun 20, 2019, 5:55 PM IST
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