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वीरता पदक से सम्मानित होंगे टीआई लीलाधर राठौर, जिन्होंने खूंखार नक्सली जगतन्ना का किया था सफाया

मई 2018 में नक्सलियों के खूंखार जन मिलिशिया कमांडर जगतन्ना का खात्मा करने वाले टीआई लीलाधर राठौर को मिलेगा वीरता पदक. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि अब नक्सलियों की कोई आइडियोलॉजी नहीं बची है वह सिर्फ उगाही और खून खराबा कर रहे है

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टीआई लीलाधर राठौर,
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Published : Aug 14, 2021, 11:11 PM IST

कोरबा: नक्सल ऑपरेशन में नक्सलियों से लोहा लेकर उनके कमांडर को मार गिराने वाले टीआई लीलाधर राठौर इस वर्ष 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के दिन वीरता पदक से सम्मानित होंगे. लीलाधर फिलहाल कोरबा जिले के कुसमुंडा थाना में बतौर टीआई पदस्थ हैं. इसके पहले वह बस्तर संभाग के अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी सेवाएं दे चुके हैं. लीलाधर को वर्ष 2018 में हुए एक नक्सल ऑपरेशन के दौरान जनमिलिशिया कमांडर रैंक के नक्सली को ढेर करने के लिए यह पुरस्कार दिया जा रहा है.

टीआई लीलाधर राठौर से खास बात

'कब कहां से गोली चल जाए पता नहीं चलता'

टीआई राठौर ने बताया कि नक्सली इलाकों में सेवा देना काफी चुनौतियों भरा होता है. जब हम नक्सल ऑपरेशन में होते हैं तब जंगल के बीच में कोई कनेक्टिविटी नहीं होती. किसी को तत्काल मदद के लिए नहीं बुला सकते, वहां अपने स्तर पर ही निर्णय लेने पड़ते हैं. जो काफी चुनौतीपूर्ण होता है. ऐसे में नक्सलियों से निपटना आसान नहीं होता.

'3 दिन पैदल चलने के बाद दोपहर में हुआ था हमला'

जिस घटना के लिए लीलाधर को वीरता पदक मिलने जा रहा है. उसका जिक्र करते हुए राठौर कहते हैं कि, हम 2018 के जून महीने में सर्चिंग के लिए निकले थे. 3 दिन पैदल चलने के बाद हम जुलाई में वापस लौट रहे थे. बीजापुर के गंगालूर और मिरतुर क्षेत्र मैं यह मुठभेड़ हुई थी. जो कि आईईडी ब्लास्ट के लिए बेहद संवेदनशील इलाका माना जाता है. दोपहर लगभग 12 बजे अचानक हम पर हमला हुआ और आत्मरक्षा के लिए हमने जवाबी कार्रवाई शुरू की. इस दौरान हमने सभी नक्सलियों को ढेर कर दिया, जिसमें जनमिलिशिया कमांडर रैंक के नक्सली को मार गिराया था. इसके लिए ही मुझे वीरता पुरस्कार दिया जा रहा है.

'आउट ऑफ टर्म प्रमोशन मिला'

राठौर यह भी कहते हैं कि वह कई मुठभेड़ में शामिल हुए हैं और नक्सलियों का जमकर सामना किया, इंद्रावती नेशनल पार्क में हुई एक बड़ी मुठभेड़ में नक्सलियों से बड़ी मात्रा में गोला-बारूद बरामद हुए थे. इस मुठभेड़ के लिए आउट ऑफ टर्न प्रमोशन मिला था और डीआरजी कमांडर बना था. तब भी 8 लाख के इनामी नक्सली जगतन्ना को हमने मार गिराया था, जोकि मूलता: तेलंगाना का रहने वाला था. काफी सारे सामान हमने बरामद किए थे. उनके कई इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स को भी हमने तब नष्ट किया था.

'यहां और वहां की पुलिसिंग में जमीन आसमान का अंतर'

कोरबा जिले में और नक्सल इलाके की पुलिसिंग में क्या अंतर है? इस प्रश्न के जवाब में राठौर कहते हैं कि, यहां और वहां की पुलिसिंग में जमीन आसमान का अंतर है. यहां सामान्य तौर पर चोरी, डकैती, हत्या बलात्कार जैसे जुर्म होते हैं और भी कई तरह के मामले होते हैं. जबकि वहां लगभग सभी मामले नक्सलियों से जुड़े होते हैं. वीआईपी सुरक्षा देनी होती है, सर्चिंग पर जाना ही होता है. हर समय जान हथेली पर होती है.

'कभी सोचा नहीं था नक्सलियों से लोहा लूंगा, लेकिन जो हुआ अच्छा है'

नक्सलियों से लोहा लेने और पुलिस विभाग में सेवा देने के प्रश्न पर राठौर कहते हैं कि, ऐसा कभी सोचा नहीं था कि पुलिस में शामिल होकर नक्सलियों से लोहा लूंगा. राठौर कहते हैं कि युवा अवस्था मे मैं पीएचडी की तैयारी कर रहा था. केमिस्ट्री से मैंने उच्च शिक्षा प्राप्त की है लेकिन फिर मेरे दिमाग में आया कि कुछ और करना चाहिए. सब इंस्पेक्टर की परीक्षा दी. चयन हो गया, ट्रेनिंग कंप्लीट की और पुलिस विभाग में पदस्थ हो गया. सब कुछ अच्छा रहा आउट ऑफ टर्म प्रमोशन मिला. मुझे ट्रेनिंग के लिए मिजोरम भी भेजा गया. जहां से आकर मुझे डीआरजी का कमांडर बनाया गया. कई बार तो ऐसा हुआ है, जब नक्सल ऑपरेशन में मैने 300 से लेकर 400 जवानों का नेतृत्व किया है.

स्वतंत्रता संग्राम में छत्तीसगढ़ी साहित्य और काव्य का कितना है योगदान ?

'अब तक जो मिला उससे संतुष्ट हूं'

वीरता पदक प्राप्त करने के बाद किस तरह के रिएक्शन मिल रहे हैं, परिवार में किस तरह का माहौल है? इसके जवाब में राठौर कहते हैं कि कहीं ना कहीं यह बात माननी पड़ेगी कि हमारा विभाग के प्रति जो योगदान है. हमने जो मातृभूमि की सेवा की है. उच्च अधिकारी भी इससे भलीभांति परिचित हैं. तभी तो मेरा नाम इस पुरस्कार के लिए आगे किया गया है. मैं ऐसा मानता हूं कि पुलिस विभाग का यह सबसे बड़ा पदक होता है. जिसके मिलने पर मैं बेहद खुश हूं, परिवार के लोग बहुत उत्साहित हैं. मेरे पिता जांजगीर के ग्राम झरना में आज भी खेती किसानी करते हैं, जो कि मेरी उपलब्धि पर गदगद हैं. बधाई संदेश आ रहे हैं.

2016 में पहली बार जब मेरी नियुक्ति हुई थी, तब वह दिन मुझे आज भी याद है. पूरे दिन बारिश होती रही थी 10 दिन तक घर वालों से कोई संपर्क नहीं हो सका था, तब कहीं ना कहीं मन में यह सोच थी की अच्छा प्रदर्शन करने के बाद भी हमें नक्सली इलाकों में पदस्थ किया जा रहा है, लेकिन जो हुआ वह कैरियर के लिए काफी अच्छा रहा. आज जब पीछे मुड़कर देखता हूं तो मैं अपने काम से काफी संतुष्ट हूं. मेरे साथ 54 जवानों की पदस्थापना हुई थी सभी ने बढ़िया काम किया है.

'नक्सलियों का कोई सिद्धांत नहीं बचा'

खून खराबा और नक्सलियों की मानसिकता के सवाल पर टीआई राठौर कहते हैं कि मैंने काफी दिनों तक नक्सली इलाकों में सेवा दी है. पहले तो नक्सलियों को उनका इतिहास पढ़ाया जाता है. शुरुआत में यह जमीदारों के खिलाफ थे. लेकिन अब वह पूरी तरह से भटक चुके हैं. नक्सलियों के पास कोई सिद्धांत बचा नहीं रह गया है. वह सरेंडर करने वाले नक्सलियों को भी मार देते हैं. वह अपने लोगों के नहीं हैं, इसका मतलब यह है कि, नक्सली अब किसी के भी नहीं रहे. उनका एक ही मकसद खूनखराबा और उगाही करना रह गया है.

कोरबा: नक्सल ऑपरेशन में नक्सलियों से लोहा लेकर उनके कमांडर को मार गिराने वाले टीआई लीलाधर राठौर इस वर्ष 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के दिन वीरता पदक से सम्मानित होंगे. लीलाधर फिलहाल कोरबा जिले के कुसमुंडा थाना में बतौर टीआई पदस्थ हैं. इसके पहले वह बस्तर संभाग के अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी सेवाएं दे चुके हैं. लीलाधर को वर्ष 2018 में हुए एक नक्सल ऑपरेशन के दौरान जनमिलिशिया कमांडर रैंक के नक्सली को ढेर करने के लिए यह पुरस्कार दिया जा रहा है.

टीआई लीलाधर राठौर से खास बात

'कब कहां से गोली चल जाए पता नहीं चलता'

टीआई राठौर ने बताया कि नक्सली इलाकों में सेवा देना काफी चुनौतियों भरा होता है. जब हम नक्सल ऑपरेशन में होते हैं तब जंगल के बीच में कोई कनेक्टिविटी नहीं होती. किसी को तत्काल मदद के लिए नहीं बुला सकते, वहां अपने स्तर पर ही निर्णय लेने पड़ते हैं. जो काफी चुनौतीपूर्ण होता है. ऐसे में नक्सलियों से निपटना आसान नहीं होता.

'3 दिन पैदल चलने के बाद दोपहर में हुआ था हमला'

जिस घटना के लिए लीलाधर को वीरता पदक मिलने जा रहा है. उसका जिक्र करते हुए राठौर कहते हैं कि, हम 2018 के जून महीने में सर्चिंग के लिए निकले थे. 3 दिन पैदल चलने के बाद हम जुलाई में वापस लौट रहे थे. बीजापुर के गंगालूर और मिरतुर क्षेत्र मैं यह मुठभेड़ हुई थी. जो कि आईईडी ब्लास्ट के लिए बेहद संवेदनशील इलाका माना जाता है. दोपहर लगभग 12 बजे अचानक हम पर हमला हुआ और आत्मरक्षा के लिए हमने जवाबी कार्रवाई शुरू की. इस दौरान हमने सभी नक्सलियों को ढेर कर दिया, जिसमें जनमिलिशिया कमांडर रैंक के नक्सली को मार गिराया था. इसके लिए ही मुझे वीरता पुरस्कार दिया जा रहा है.

'आउट ऑफ टर्म प्रमोशन मिला'

राठौर यह भी कहते हैं कि वह कई मुठभेड़ में शामिल हुए हैं और नक्सलियों का जमकर सामना किया, इंद्रावती नेशनल पार्क में हुई एक बड़ी मुठभेड़ में नक्सलियों से बड़ी मात्रा में गोला-बारूद बरामद हुए थे. इस मुठभेड़ के लिए आउट ऑफ टर्न प्रमोशन मिला था और डीआरजी कमांडर बना था. तब भी 8 लाख के इनामी नक्सली जगतन्ना को हमने मार गिराया था, जोकि मूलता: तेलंगाना का रहने वाला था. काफी सारे सामान हमने बरामद किए थे. उनके कई इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स को भी हमने तब नष्ट किया था.

'यहां और वहां की पुलिसिंग में जमीन आसमान का अंतर'

कोरबा जिले में और नक्सल इलाके की पुलिसिंग में क्या अंतर है? इस प्रश्न के जवाब में राठौर कहते हैं कि, यहां और वहां की पुलिसिंग में जमीन आसमान का अंतर है. यहां सामान्य तौर पर चोरी, डकैती, हत्या बलात्कार जैसे जुर्म होते हैं और भी कई तरह के मामले होते हैं. जबकि वहां लगभग सभी मामले नक्सलियों से जुड़े होते हैं. वीआईपी सुरक्षा देनी होती है, सर्चिंग पर जाना ही होता है. हर समय जान हथेली पर होती है.

'कभी सोचा नहीं था नक्सलियों से लोहा लूंगा, लेकिन जो हुआ अच्छा है'

नक्सलियों से लोहा लेने और पुलिस विभाग में सेवा देने के प्रश्न पर राठौर कहते हैं कि, ऐसा कभी सोचा नहीं था कि पुलिस में शामिल होकर नक्सलियों से लोहा लूंगा. राठौर कहते हैं कि युवा अवस्था मे मैं पीएचडी की तैयारी कर रहा था. केमिस्ट्री से मैंने उच्च शिक्षा प्राप्त की है लेकिन फिर मेरे दिमाग में आया कि कुछ और करना चाहिए. सब इंस्पेक्टर की परीक्षा दी. चयन हो गया, ट्रेनिंग कंप्लीट की और पुलिस विभाग में पदस्थ हो गया. सब कुछ अच्छा रहा आउट ऑफ टर्म प्रमोशन मिला. मुझे ट्रेनिंग के लिए मिजोरम भी भेजा गया. जहां से आकर मुझे डीआरजी का कमांडर बनाया गया. कई बार तो ऐसा हुआ है, जब नक्सल ऑपरेशन में मैने 300 से लेकर 400 जवानों का नेतृत्व किया है.

स्वतंत्रता संग्राम में छत्तीसगढ़ी साहित्य और काव्य का कितना है योगदान ?

'अब तक जो मिला उससे संतुष्ट हूं'

वीरता पदक प्राप्त करने के बाद किस तरह के रिएक्शन मिल रहे हैं, परिवार में किस तरह का माहौल है? इसके जवाब में राठौर कहते हैं कि कहीं ना कहीं यह बात माननी पड़ेगी कि हमारा विभाग के प्रति जो योगदान है. हमने जो मातृभूमि की सेवा की है. उच्च अधिकारी भी इससे भलीभांति परिचित हैं. तभी तो मेरा नाम इस पुरस्कार के लिए आगे किया गया है. मैं ऐसा मानता हूं कि पुलिस विभाग का यह सबसे बड़ा पदक होता है. जिसके मिलने पर मैं बेहद खुश हूं, परिवार के लोग बहुत उत्साहित हैं. मेरे पिता जांजगीर के ग्राम झरना में आज भी खेती किसानी करते हैं, जो कि मेरी उपलब्धि पर गदगद हैं. बधाई संदेश आ रहे हैं.

2016 में पहली बार जब मेरी नियुक्ति हुई थी, तब वह दिन मुझे आज भी याद है. पूरे दिन बारिश होती रही थी 10 दिन तक घर वालों से कोई संपर्क नहीं हो सका था, तब कहीं ना कहीं मन में यह सोच थी की अच्छा प्रदर्शन करने के बाद भी हमें नक्सली इलाकों में पदस्थ किया जा रहा है, लेकिन जो हुआ वह कैरियर के लिए काफी अच्छा रहा. आज जब पीछे मुड़कर देखता हूं तो मैं अपने काम से काफी संतुष्ट हूं. मेरे साथ 54 जवानों की पदस्थापना हुई थी सभी ने बढ़िया काम किया है.

'नक्सलियों का कोई सिद्धांत नहीं बचा'

खून खराबा और नक्सलियों की मानसिकता के सवाल पर टीआई राठौर कहते हैं कि मैंने काफी दिनों तक नक्सली इलाकों में सेवा दी है. पहले तो नक्सलियों को उनका इतिहास पढ़ाया जाता है. शुरुआत में यह जमीदारों के खिलाफ थे. लेकिन अब वह पूरी तरह से भटक चुके हैं. नक्सलियों के पास कोई सिद्धांत बचा नहीं रह गया है. वह सरेंडर करने वाले नक्सलियों को भी मार देते हैं. वह अपने लोगों के नहीं हैं, इसका मतलब यह है कि, नक्सली अब किसी के भी नहीं रहे. उनका एक ही मकसद खूनखराबा और उगाही करना रह गया है.

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