कोरबा : छत्तीसगढ़ के कोयलांचल क्षेत्रों में ठंड बढ़ने के साथ ही कोयले का धुआं नजर आने लगा है.कोरबा की यदि बात करें तो शहर के गली और मोहल्लों में कोयले के धुएं के कारण विजिबिलटी कम हो रही है.
सिगड़ी के धुआं है सबसे ज्यादा : घर पर खाना पकाने के लिए महिलाएं सिगड़ी का इस्तेमाल करती हैं. महंगाई के दौर में कम लागत पर परिवार चलाने के लिए सिगड़ी का उपयोग फायदे का सौदा है. जिले में कोयला खदानों की कमी नहीं है. इसी वजह से लोगों को कोयला आसानी से 100 से 250 रुपए प्रति बोरी मिल जाता है.
कोयले के कारण प्रदूषण : झुग्गी-झोपड़ी और लेबर एरिया में सुबह और शाम होते ही खाना पकाने के लिए लोग कोयला की सिगड़ी सुलगाते हैं. इस सुलगते सिगड़ी से निकलने वाला धुआं हवा में घुल रहा है. जिसका असर लोगों के स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है. ठंड के मौसम में हवा में यह धुआं ठहर जाता है. इसी वजह से कोहरे जैसा धुआं सड़कों पर दिखता है.
प्रशासनिक प्रयास भी रहे हैं विफल : सबसे अधिक परेशानी बच्चे, महिला, बुजुर्ग और अस्वस्थ्य लोगों को हो रही है. लेकिन प्रशासन इसे लेकर गंभीर नहीं है. हालांकि जिला प्रशासन ने काफी पहले शहर को धुआं रहित बनाने के लिए प्रयास किए. लेकिन अधिकांश प्रयास विफल साबित हुए हैं. शहरी क्षेत्र के सर्वमंगला रोड, संजय नगर, सीतामढ़ी सहित कई ऐसे मुख्य मार्ग हैं. जहां पर सड़क किनारे सिगड़ी जलती है. इस कारण मुख्य मार्ग धुएं से घिर जाता है.
किन क्षेत्रों में सबसे अधिक धुआं : शहरी क्षेत्र के संजय नगर, पुरानी बस्ती, मुड़ापार, सीतामढ़ी, मोतीसागर पारा, कुआंभट्ठा, राताखार, तुलसीनगर, रामसागर पारा, पंप हाउस, मानिकपुर, पोड़ीबहार, शांतिनगर, फोकटपारा, रिस्दी सहित अन्य क्षेत्रों में सबसे अधिक कोयला सिगड़ी का उपयोग हो रहा है. उपनगरीय क्षेत्रों क्षेत्र के झुग्गी झोपड़ी इलाकों में भी यही स्थिति है. ठेलों और टपरों में भी कोयले का इस्तेमाल हो रहा है. इस बारे में पर्यावरण संरक्षण मंडल कोरबा के क्षेत्रीय अधिकारी शैलेश पिस्दा ने कहा कि लोगों को ईंधन के तौर पर कोयले का उपयोग नहीं करने की समझाइए दी जाती रही है. इस दिशा में लोगों को जागरूक किया गया था. आगे भी कार्ययोजना बनाकर ठोस कार्रवाई करेंगे.