कोरबा: छात्रों को बेहतर और उच्च शिक्षा देने के लिए कोरबा में सरकारी कॉलेजों की संख्या तो बढ़ा दी गई लेकिन शिक्षा विभाग प्रोफेसरों को नियुक्त करना ही भूल गया. ऐसे में जब पढ़ाने वाले ही नहीं रहेंगे तो कॉलेज आने वाले छात्रों को क्या शिक्षा मिल पाएगी. आंकड़ों की मानें तो प्रदेश के सरकारी कॉलेजों में असिस्टेंट प्रोफेसर, प्रोफेसर सहित कुल मिलाकर 42 फीसदी पद खाली पड़े हैं. कॉलेज में पढ़ाई का काम गेस्ट टीचरों के भरोसे चल रहा है. पढ़ाने वाले कई ऐसे गेस्ट लेक्चरर भी हैं जिनको जल्द ही कार्यमुक्त भी करने की तैयारी है. प्रोफेसर्स को सरकार से कई तरह के काम भी दिए जाते हैं जिसके कारण भी पढ़ाई प्रभावित हो रही है. शिक्षकों की कमी का खामियाजा अब छात्रों को सीधे तौर पर भुगतना पड़ रहा है.
सरकारी कॉलेजों की हालत सबसे बदतर: सरकारी कॉलेजों में सबसे बुरी हालत है. असिस्टेंट प्रोफेसरों का लंबे समय से प्रमोशन नहीं हुआ है. भर्ती नियमों और बाकी तकनीकी दिक्कतों के चलते करीब 100 से ज्यादा पद प्रोफेसर्स के खाली हैं. प्रदेश के सरकारी कॉलेज में प्रोफेसर के 682 पद हैं, जबकि इतने ही पद खाली भी पड़े हैं. लंबे समय से प्रोफेसर्स की भर्ती यहां हुई ही नहीं है, जबकि असिस्टेंट प्रोफेसर के भी 1365 पद खाली पड़े हैं.
गेस्ट लेक्चरर से लिया जाता है काम: असिस्टेंट प्रोफेसर और प्रोफेसर के रिक्त पदों के विरुद्ध सरकारी कॉलेज में अस्थाई तौर पर गेस्ट लेक्चरर की नियुक्ति की जाती है. अपने विषय में मास्टर्स की डिग्री रखने वाले युवाओं को गेस्ट लेक्चरर के तौर पर नियुक्त किया जाता है. गेस्ट लेक्चरर भी एक साल के कॉन्ट्रैक्ट या संविदा आधार पर ही रखा जाता है. हर साल इनका टर्म रिन्यू करना होता है, इन्हें पूरे 1 साल का पेमेंट भी नहीं मिल पाता. प्रत्येक पीरियड के हिसाब से इनको पेमेंट किया जाता है.
भूपेश सरकार में नए कॉलेजों की भरमार: प्रदेश में 15 साल के बाद सत्ता में आई कांग्रेस सरकार ने थोक के भाव में कॉलेज खोले. भूपेश बघेल सरकार ने 33 नए सरकारी कॉलेजों की प्रदेश में शुरुआत की, इस दौरान 76 प्राइवेट कॉलेज भी शुरू हुए. कई क्षेत्र ऐसे भी हैं, जहां वर्षों से कॉलेज नहीं थे. इन दुर्गम क्षेत्रों में भी कॉलेज की शुरुआत की गई. कई जगहों पर तो न तो संसाधन उपलब्ध कराए गए, ना ही प्रोफेसर की नियुक्ति हो पाई. कोरबा की बात करें तो यहां कुछ साल पहले खुला शासकीय महाविद्यालय जटगा हो या फिर हाल फिलहाल में खुले शासकीय कॉलेज रामपुर और उमरेली. किसी के पास भी अपना भवन नहीं है. ये सभी कॉलेज सरकारी स्कूल के उधारर के भवन में संचालित किये जा रहे हैं.
"पद खाली रहने से अध्यापन के कार्य में दिक्कत होती है. खाली पदों के लिए गेस्ट लेक्चरर को रखा जाता है, लेकिन इन्हें बीच में डिसकंटीन्यूू भी करना होता है. प्रोफेसर्स को और भी कई तरह के काम दिए जाते हैं, जिसके कारण अध्यापन कार्य कहीं ना कहीं प्रभावित होता है. कॉलेज में बच्चों की संख्या अधिक है ऐसे में पद अगर खाली होते हैं तो इन्हें भरने का प्रयास किया जाना चाहिए. प्रोफेसर के पद के लिए भर्ती भी निकाली गई थी, लेकिन तकनीकी कारणों से वह अभी रुकी हुई है. संगठन की ओर से भी हमने रिक्त पदों पर भर्ती की मांग की है. सबसे ज्यादा बुरी स्थिति प्रोफेसर के पद की है. प्रदेश में प्रोफेसर के सभी पद खाली हैं. सभी शिक्षाविदों की भी यही मांग है कि खाली पदों को भरा जाए ताकि हम उच्च शिक्षा के क्षेत्र में छत्तीसगढ़ को एक अग्रणी राज्य बना सकें" - डॉ संदीप शुक्ला, सचिव, छत्तीसगढ़ शासकीय महाविद्यालयीन प्राध्यापक एवं अधिकारी संघ
16 यूनिवर्सिटी और 285 सरकारी कॉलेज: छत्तीसगढ़ में फिलहाल 16 सरकारी यूनिवर्सिटी हैं. जिनके अधीन प्रदेश में 285 सरकारी कॉलेज संचालित हैं. 12 कॉलेज ऐसे भी हैं, जो अनुदान प्राप्त हैं जहां कुछ पद यूजीसी के ग्रांट पर हैं इन कॉलेजों में बीए, बीएससी, बीकॉम जैसी डिग्रियों के अलावा एमए, एमएससी और एमकॉम भी कराए जाते हैं. कई प्रोफेशनल कोर्सेज भी संचालित हैं. हिंदी, इंग्लिश, जियोलॉजी, बॉटनी, मैथ्स, फिजिक्स, इकोनॉमिक्स, इतिहास, पॉलिटिकल साइंस, संस्कृत जैसे 27 विषय मौजूद हैं, जिनका अध्यापन प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर कराते हैं. मास्टर्स की डिग्री करने वाले छात्र असिस्टेंट प्रोफेसर और प्रोफेसर्स पर ही निर्भर रहते हैं, यह विषय काफी जटिल होते हैं जिनमें एक्सपर्ट्स की जरूरत पड़ती है.
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नियुक्ति के बिना पढ़ाई अधूरी: पीजी प्रिंसिपल से लेकर यूजी प्रिंसिपल तक और प्रोफेसर से लेकर अस्सिटेंट प्रोफेसर तक की जो कमी है उससे छात्र लगातार जूझ रहे हैं. विश्वविद्यालय और महाविद्यालय में कुल पद 5 हजार 448 है जबकि वर्तमान में 3 हजार 419 लोग ही कार्यरत हैं, जबकि कुल 2 हजार 429 पद इन सभी विभागों में खाली हैं. छात्रों से ऐसे में अगर बेहतर रिजस्ट की कल्पना की जाए तो साफ है वो उस पैमाने में खरे नहीं उतरेंगे. आधी अधूरी पढ़ाई और व्यवस्था के चलते छात्रों का भविष्य कैसे बेहतर होगा इसकी चिंता अब नई सरकार को जरूर करनी चाहिए.