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नियुक्ति के इंतजार में मजदूर बन गए चयनित अभ्यर्थी, कोई वेल्डिंग कर रहा, कोई दूसरे के खेत में दिहाड़ी

शिक्षक भर्ती में हो रही देरी ने प्रदेश के युवाओं को निराश कर दिया है. दिन-रात मेहनत कर शिक्षक भर्ती परीक्षा पास करने वाले युवाओं को सरकार के आदेश का इंतजार है. 2 बार उनके दस्तावेज का सत्यापन भी हो चुका है. लेकिन नियुक्ति अब तक नहीं हुई है. शिक्षक बनकर बच्चों के भविष्य संवारने का सपना देखने वाले युवा अब मजदूरी और दूसरों के खेत में काम करने के मजबूर हो गया है.

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नियुक्ति के इंतजार में मजदूर बन गए चयनित अभ्यर्थी
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Published : Jul 8, 2021, 10:58 PM IST

कोरबा: प्रदेश में स्कूल शिक्षा विभाग (school education department) को विभिन्न वर्गों में 14 हजार 580 पदों पर शिक्षकों की भर्ती करनी थी. शिक्षक भर्ती का विज्ञापन 9 मार्च 2019 को जारी हुआ था. लेकिन 2 साल बीत जाने के बाद भी व्याख्याताओं (lecturer) के केवल 2 हजार 600 पदों पर ही नियुक्ति हो पाई है. भर्ती में हो रही देरी अब युवाओं को निराश कर रही है. बेरोजगारी ने चयनित अभ्यर्थियों का मनोबल तोड़ दिया है. हताश युवा या तो किसी की दुकान या खेत में काम कर रहे हैं या फिर मजदूरी करके पेट पालने को मजबूर हो गए हैं.

नियुक्ति के इंतजार में मजदूर बन गए चयनित अभ्यर्थी

प्रदेश में ऐसे 12 हजार युवा हैं, जो निराशा के दौर से गुजर रहे हैं. ETV भारत ने शिक्षक भर्ती परिक्षा में चयनित हुए कुछ अभ्यर्थियों से बात की है. इन युवाओं के मन में अब एक ही सवाल है कि नौकरी मिलेगी या फिर हमेशा के लिए उनके सिर पर बेरोजगार का ठप्पा लगा रहेगा. शिक्षक बनकर बच्चों के भविष्य संवारने का सपना देखने वाले युवा अब मजदूरी, खेती-किसानी और दूसरे काम कर दो वक्त की रोटी जुटा रहे हैं.

उम्मीदों पर फिरा पानी

2019 में परीक्षा के बाद चयन और फिर दस्तावेजों का वेरिफिकेशन कराया गया था. युवाओं को उम्मीद थी कि अब जल्द ही नियुक्ति मिलेगी. उनके अच्छे दिनों की शुरुआत होगी. लेकिन हुआ ठीक इसके उल्टा. नियुक्ति के इंतजार में कोई दूसरों के खेत में दिहाड़ी मजदूरी कर रहा है तो किसी ने वेल्डिंग दुकान में काम करना शुरू कर दिया है. 2 साल के लंबे इंतजार ने इनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. हम ऐसे तीन अभियार्थियों के हालातों से आपको अवगत करा रहे हैं, जिन्हें परीक्षा पास कर लेने के बावजूद अब तक नियुक्ति नहीं मिली है.

नियुक्ति के लिए शिक्षक अभ्यर्थियों का हल्लाबोल, सिर मुंडवाया और जूते पॉलिश किए

ज्ञान प्रकाश खेत में कर रहे मजदूरी

ज्ञान प्रकाश कोरबा जिले के बुंदेली के रहने वाले हैं. वह एक मध्यमवर्गीय परिवार से आते हैं. शिक्षक भर्ती में चयन के बाद उन्हें नियुक्ति नहीं मिली है. ज्ञान प्रकाश कहते हैं कि ढाई साल पहले परीक्षा हुई थी. चयन हुआ, दस्तावेजों का परीक्षण किया गया. जब आलोक शुक्ला डीपीआई बने तब कहा कि मैं फिर से दस्तावेजों का परीक्षण करूंगा. एक बार और दस्तावेजों का परीक्षण करा लिया. इसके बाद भी हमें नियुक्ति नहीं दी गई. यदि सरकार मुझे नौकरी दे देती तो आज मैं शिक्षक होता. समाज में इज्जत होती. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अब मैं खेत में मजदूरी करने को विवश हूं. मैं दूसरों के खेत में दिहाड़ी मजदूरी कर 200 रुपए रोजी कमा रहा हूं. किसी तरह गुजारा चल रहा है. मजदूरी आती नहीं इसलिए कई बार ताने भी सुनने पड़ते हैं.

ज्ञान प्रकाश कहते हैं कि कई आंदोलन हुए. हमने सरकार को जगाने के कई प्रयास किए. लेकिन हमें सिर्फ निराशा और हताशा ही हाथ लगी है. हमारे कई साथी कोरोना काल में दिवंगत हो गए. उनके लिए नौकरी पाने का सपना अधूरा ही रह गया. हमारे कई चयनित शिक्षक साथी ऐसे हैं, जिनकी शादी नौकरी की वजह से अटक गई है. कई काम अटके हुए हैं. बता नहीं सकते कि कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. कुछ व्याख्याता साथियों को छोड़ दिया जाए तो लगभग 12000 युवाओं को सरकार ने परीक्षा के बाद चयन और दस्तावेज परीक्षण के बाद भी शिक्षक के पद पर नियुक्ति नहीं दी है. मेरा चयन सहायक शिक्षक विज्ञान के पद पर हुआ था.

वेल्डिंग दुकान में काम कर रहे सुनील कुमार डहरिया

कोरबा के सुनील कुमार डहरिया का चयन विज्ञान शिक्षक के तौर पर हुआ है. सुनील कहते हैं कि नई सरकार से हमें उम्मीद थी कि बदलाव होगा. सरकार ने 14500 शिक्षकों की भर्ती निकाली और कहा कि हम नियमित शिक्षकों की भर्ती करेंगे. ढाई साल पहले परीक्षा हुई. अब भी हमारे सिर से बेरोजगारी का कलंक नहीं मिटा है. नौकरी मिलेगी भी या नहीं अब तो इस पर शंका हो रही है. हमें प्रोविजशनल लेटर भी दिया गया और कहा गया कि स्कूलों के खुलते ही नियुक्ति दी जाएगी. लेकिन प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पा रही है. मजबूरन मैं एक वेल्डिंग दुकान में काम कर रहा हूं. किसी तरह लोहा पिघलाकर रोजी-रोटी चल रही है. यदि सरकार मुझे नियुक्ति दे देती तो मैं भी शिक्षक होता लेकिन परिस्थितियां बेहद खराब हैं. किसी तरह गुजारा चल रहा है.

शिक्षक भर्ती और नियमितीकरण को लेकर 1458 किलोमीटर साइकल यात्रा पर निकला ये शख्स

प्राइवेट जॉब करने को मजबूर हैं लेखराज सोनी

लेखराज सोनी का चयन भी शिक्षक के पद पर हो चुका है, लेकिन नियुक्ति नहीं दिए जाने से वह हताश हैं. लेखराज कहते हैं कि मेरा चयन शिक्षक के पद पर हुआ लेकिन अब मैं 50 फीसदी सैलरी में काम करने को विवश हूं. घर चलाने के लिए कुछ ना कुछ तो करना था. नौकरी नहीं मिली इसलिए कोरोना काल में प्राइवेट नौकरी कर रहा हूं. यहां भी 50 फीसदी काटकर सैलरी दी जा रही है. दिन-रात एक करने के बाद भी 5 से 6 हजार रुपए महीने ही कमा पाता हूं. घर में भाई-बहन भी हैं. वह भी मजदूरी कर रहे हैं. परिवार की हालत खराब हो गई है. सरकार की बेरुखी के कारण हम हताशा के दौर से गुजर रहे हैं. जब शिक्षक भर्ती के लिए 14500 पदों की वैकेंसी निकली है तब मैंने नौकरी छोड़कर साल भर मेहनत की लगन से पढ़ाई की साल भर का समय बर्बाद किया तब जाकर मेरा चयन हुआ. लेकिन अब लग रहा है कि मैंने गलती की. नौकरी तो मिल नहीं रही. आर्थिक स्थिति भी दिनों दिन बिगड़ती जा रही है.

कोरबा: प्रदेश में स्कूल शिक्षा विभाग (school education department) को विभिन्न वर्गों में 14 हजार 580 पदों पर शिक्षकों की भर्ती करनी थी. शिक्षक भर्ती का विज्ञापन 9 मार्च 2019 को जारी हुआ था. लेकिन 2 साल बीत जाने के बाद भी व्याख्याताओं (lecturer) के केवल 2 हजार 600 पदों पर ही नियुक्ति हो पाई है. भर्ती में हो रही देरी अब युवाओं को निराश कर रही है. बेरोजगारी ने चयनित अभ्यर्थियों का मनोबल तोड़ दिया है. हताश युवा या तो किसी की दुकान या खेत में काम कर रहे हैं या फिर मजदूरी करके पेट पालने को मजबूर हो गए हैं.

नियुक्ति के इंतजार में मजदूर बन गए चयनित अभ्यर्थी

प्रदेश में ऐसे 12 हजार युवा हैं, जो निराशा के दौर से गुजर रहे हैं. ETV भारत ने शिक्षक भर्ती परिक्षा में चयनित हुए कुछ अभ्यर्थियों से बात की है. इन युवाओं के मन में अब एक ही सवाल है कि नौकरी मिलेगी या फिर हमेशा के लिए उनके सिर पर बेरोजगार का ठप्पा लगा रहेगा. शिक्षक बनकर बच्चों के भविष्य संवारने का सपना देखने वाले युवा अब मजदूरी, खेती-किसानी और दूसरे काम कर दो वक्त की रोटी जुटा रहे हैं.

उम्मीदों पर फिरा पानी

2019 में परीक्षा के बाद चयन और फिर दस्तावेजों का वेरिफिकेशन कराया गया था. युवाओं को उम्मीद थी कि अब जल्द ही नियुक्ति मिलेगी. उनके अच्छे दिनों की शुरुआत होगी. लेकिन हुआ ठीक इसके उल्टा. नियुक्ति के इंतजार में कोई दूसरों के खेत में दिहाड़ी मजदूरी कर रहा है तो किसी ने वेल्डिंग दुकान में काम करना शुरू कर दिया है. 2 साल के लंबे इंतजार ने इनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. हम ऐसे तीन अभियार्थियों के हालातों से आपको अवगत करा रहे हैं, जिन्हें परीक्षा पास कर लेने के बावजूद अब तक नियुक्ति नहीं मिली है.

नियुक्ति के लिए शिक्षक अभ्यर्थियों का हल्लाबोल, सिर मुंडवाया और जूते पॉलिश किए

ज्ञान प्रकाश खेत में कर रहे मजदूरी

ज्ञान प्रकाश कोरबा जिले के बुंदेली के रहने वाले हैं. वह एक मध्यमवर्गीय परिवार से आते हैं. शिक्षक भर्ती में चयन के बाद उन्हें नियुक्ति नहीं मिली है. ज्ञान प्रकाश कहते हैं कि ढाई साल पहले परीक्षा हुई थी. चयन हुआ, दस्तावेजों का परीक्षण किया गया. जब आलोक शुक्ला डीपीआई बने तब कहा कि मैं फिर से दस्तावेजों का परीक्षण करूंगा. एक बार और दस्तावेजों का परीक्षण करा लिया. इसके बाद भी हमें नियुक्ति नहीं दी गई. यदि सरकार मुझे नौकरी दे देती तो आज मैं शिक्षक होता. समाज में इज्जत होती. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. अब मैं खेत में मजदूरी करने को विवश हूं. मैं दूसरों के खेत में दिहाड़ी मजदूरी कर 200 रुपए रोजी कमा रहा हूं. किसी तरह गुजारा चल रहा है. मजदूरी आती नहीं इसलिए कई बार ताने भी सुनने पड़ते हैं.

ज्ञान प्रकाश कहते हैं कि कई आंदोलन हुए. हमने सरकार को जगाने के कई प्रयास किए. लेकिन हमें सिर्फ निराशा और हताशा ही हाथ लगी है. हमारे कई साथी कोरोना काल में दिवंगत हो गए. उनके लिए नौकरी पाने का सपना अधूरा ही रह गया. हमारे कई चयनित शिक्षक साथी ऐसे हैं, जिनकी शादी नौकरी की वजह से अटक गई है. कई काम अटके हुए हैं. बता नहीं सकते कि कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. कुछ व्याख्याता साथियों को छोड़ दिया जाए तो लगभग 12000 युवाओं को सरकार ने परीक्षा के बाद चयन और दस्तावेज परीक्षण के बाद भी शिक्षक के पद पर नियुक्ति नहीं दी है. मेरा चयन सहायक शिक्षक विज्ञान के पद पर हुआ था.

वेल्डिंग दुकान में काम कर रहे सुनील कुमार डहरिया

कोरबा के सुनील कुमार डहरिया का चयन विज्ञान शिक्षक के तौर पर हुआ है. सुनील कहते हैं कि नई सरकार से हमें उम्मीद थी कि बदलाव होगा. सरकार ने 14500 शिक्षकों की भर्ती निकाली और कहा कि हम नियमित शिक्षकों की भर्ती करेंगे. ढाई साल पहले परीक्षा हुई. अब भी हमारे सिर से बेरोजगारी का कलंक नहीं मिटा है. नौकरी मिलेगी भी या नहीं अब तो इस पर शंका हो रही है. हमें प्रोविजशनल लेटर भी दिया गया और कहा गया कि स्कूलों के खुलते ही नियुक्ति दी जाएगी. लेकिन प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पा रही है. मजबूरन मैं एक वेल्डिंग दुकान में काम कर रहा हूं. किसी तरह लोहा पिघलाकर रोजी-रोटी चल रही है. यदि सरकार मुझे नियुक्ति दे देती तो मैं भी शिक्षक होता लेकिन परिस्थितियां बेहद खराब हैं. किसी तरह गुजारा चल रहा है.

शिक्षक भर्ती और नियमितीकरण को लेकर 1458 किलोमीटर साइकल यात्रा पर निकला ये शख्स

प्राइवेट जॉब करने को मजबूर हैं लेखराज सोनी

लेखराज सोनी का चयन भी शिक्षक के पद पर हो चुका है, लेकिन नियुक्ति नहीं दिए जाने से वह हताश हैं. लेखराज कहते हैं कि मेरा चयन शिक्षक के पद पर हुआ लेकिन अब मैं 50 फीसदी सैलरी में काम करने को विवश हूं. घर चलाने के लिए कुछ ना कुछ तो करना था. नौकरी नहीं मिली इसलिए कोरोना काल में प्राइवेट नौकरी कर रहा हूं. यहां भी 50 फीसदी काटकर सैलरी दी जा रही है. दिन-रात एक करने के बाद भी 5 से 6 हजार रुपए महीने ही कमा पाता हूं. घर में भाई-बहन भी हैं. वह भी मजदूरी कर रहे हैं. परिवार की हालत खराब हो गई है. सरकार की बेरुखी के कारण हम हताशा के दौर से गुजर रहे हैं. जब शिक्षक भर्ती के लिए 14500 पदों की वैकेंसी निकली है तब मैंने नौकरी छोड़कर साल भर मेहनत की लगन से पढ़ाई की साल भर का समय बर्बाद किया तब जाकर मेरा चयन हुआ. लेकिन अब लग रहा है कि मैंने गलती की. नौकरी तो मिल नहीं रही. आर्थिक स्थिति भी दिनों दिन बिगड़ती जा रही है.

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