कोरबा: कछुआ चोरी से जुड़े वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम के आपराधिक मामले में उपसंचालक, अभियोजन ने एसपी कोरबा को शिकायती पत्र लिखा था. जिसमें तत्कालीन सीएसईबी चौकी प्रभारी और वर्तमान में रामपुर चौकी और साइबर सेल का प्रभार संभाल रहे कृष्णा साहू के खिलाफ शिकायत की गई थी. इस प्रकरण में पुलिस विभाग ने जांच टीम का गठन किया था. जिसमें उपसंचालक, अभियोजन द्वारा की गई शिकायत को अप्रमाणित पाया गया है. पुलिस की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार जिन बिंदुओं पर शिकायत की गई थी. वह जांच में सिद्ध नहीं हो सकी जिसके बाद मामले को नस्तीबंद यानि खारिज और बंद कर दिया गया है.
जांच के बाद केस को किया गया नस्तीबंद : इस मामले में जिला एवं सत्र न्यायालय के उपसंचालक अभियोजन ने 1 फरवरी 2021 को कोरबा एसपी को पत्र लिखा था. पुलिस विभाग में इस तरह के विभागीय जांच के मामले लंबित होने का समाचार ईटीवी भारत में प्रसारित किया था. जिसमें इस प्रकरण का भी लंबित होने का जिक्र था. लेकिन यह मामला अब निराकृत हो चुका है. इस संबंध में एडिशनल एसपी अभिषेक वर्मा ने बताया कि " एक पत्र प्राप्त हुआ था. जिसमें विवेचक कृष्णा साहू की गलतियां निकाली गई थी. जिसमें कहा गया था कि आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया गया और कछुआ की पहचान पशु चिकित्सक से नहीं कराई गई थी.
मामले में एसपी के निर्देश पर जांच टीम हुई थी गठित: इस केस में पुलिस अधीक्षक के निर्देश पर जांच कमेटी का गठन किया गया था. जांच में यह पाया गया कि अभियोजन ने विवेचक की जो कमी बताई थी. वह अप्रमाणित पाई है. इसमें मुख्य तौर पर सुप्रीम कोर्ट का हवाला दिया गया था. उसके अनुसार ही कार्रवाई की गई है. जांच में टीम ने पाया कि वेटनरी की जगह फॉरेस्ट डिपार्टमेंट द्वारा भी वन्य प्राणी की पहचान कराई जा सकती है. इस तरह जांच में विवेचक की जो कमियां निकाली गई थी. वह अप्रमाणित रहीं. जिसके बाद इस प्रकरण को नवंबर 2021 में नस्तीबंद कर दिया गया है.
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लगभग एक साल तक केस में चली छानबीन: इस मामले में कृष्णा साहू ने आरोपियों के विरुद्ध पहली बार 21 नवंबर 2020 को अपराध पंजीबद्ध किया था. उपसंचालक, अभियोजन ने 1 फरवरी 2021 को शिकायती पत्र कोरबा एसपी को लिखा. जिसमें वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम के गंभीर आपराधिक प्रकरण में आरोपीगणों को गिरफ्तार ना किए जाने और त्रुटियुक्त अभियोग पत्र न्यायालय में पेश किए जाने के संबंध में प्रतिवेदन दिया. जिसके बाद पुलिस विभाग ने इस मामले की लंबी जांच की और यह पाया कि अभियोजन का प्रतिवेदन अप्रमाणित है. इस प्रकरण को अंतिम बार नवंबर 2021 में नस्तीबंद किया गया है.