कोरबा: जिले को ऊर्जाधानी का तमगा तो मिला, लेकिन यही तमगा लोगों के लिए कई बार परेशानी खड़ी कर देता है. कोरबा में छोटे बड़े मिलाकर कुल 12 पावर प्लांट हैं. जहां से हर दिन में 2 लाख टन राख निकलती है. इस फ्लाई एश यूटिलाइजेशन के मामले में करीब सभी प्लांट बेहद फिसड्डी हैं. पावर प्लांट अपने राख डैम को मेंटेन करने में कोताही बरतते हैं. वहीं बीते कुछ दिनों से शहर के मुख्य सड़कों के किनारे बेतरतीब तरीके से राख डंप की जा रही है. राखड़ डैम के साथ ही अब सड़कों के किनारे डंप ये राख हल्की सी हवा चलने पर धूल के गुबार का रूप ले लेती है. जिससे लोगों का जीना मुहाल हो रहा है.
जिले के ज्यादातर पावर प्लांट राख यूटिलाइजेशन तो दूर, राखड़ डैम का भी उचित तरह से संधारण नहीं कर पाते. इसके कारण स्थानीय लोगों को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
पर्यावरण विभाग नहीं करता ठोस कार्रवाई
कुछ मामलों में पर्यावरण विभाग ने भी औद्योगिक उपक्रमों को नोटिस जारी कर ये कहा था कि राखड़ डैम से पैदा होने वाले वायु प्रदूषण को रोकने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. लेकिन इसके बाद भी संबंधित लोगों के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई.
दुपहिया वाहन चालकों को परेशानी
पानी छिड़काव के लिए स्प्रिंकल सिस्टम या टैंकर का उपयोग नहीं किया जा रहा है. जिससे जिले में प्रदूषण फैल रहा है. यहां तक कि सड़क से ट्रकों के जरिए किए जाने वाले राख के परिवहन में वायु प्रदूषण रोकने की पर्याप्त व्यवस्था भी नहीं है. इसके अलावा भारी वाहनों की आवाजाही से भी सड़कों पर धूल के गुब्बार उड़ते रहते हैं. जिसके चलते दुपहिया वाहन चालकों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
लोगों की सेहत पर बुरा असर
जिले में पावर प्लांट से उत्सर्जित राख लोगों के बिगड़ते स्वास्थ्य का एक बड़ा कारण है. इसके साथ ही सड़क से होने वाला प्रदूषण जिले में और भी भयावह स्थिति पैदा कर रहा है. जानकारों की मानें तो इस तरह के प्रदूषण से लोगों के स्वास्थ्य पर बेहद बुरा प्रभाव पड़ रहा है. सर्दी, खांसी लंबे समय तक बनी रहती है. जबकि सांस की बीमारी के साथ ही लोगों के फेफड़ों पर बेहद बुरा असर पड़ रहा है.