कोरबा: पूरा देश नए साल के जश्न की तैयारी में हैं. हालांकि कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिनके लिए क्या नया साल और क्या पुराना साल. दरअसल हम बात कर रहे हैं कोरबा जिले के पहाड़ी कोरवाओं की. पहाड़ी कोरवाओं को विशेष पिछड़ी जनजाति का दर्जा प्राप्त है. ये जनजाति राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहलाते हैं. हालांकि फिर भी इनका जीवन अंधकारमय है.
दरअसल, कोरबा जिले के दूधीटांगर गांव में पहाड़ी कोरवा आदिवासियों के कुछ परिवार रहते हैं. यहां लगभग 40 कोरवा आदिवासी रह रहे हैं, जो नए साल का जश्न नहीं मनाते हैं. गांव में कुछ पीएम आवास स्वीकृत हुए थे, लेकिन अब तक काम अधूरे हैं. आवास के नाम पर सिर्फ लोहे के चार छड़ खड़े दिखाई देते हैं. कोरवा कहते हैं कि नए साल का जश्न तो हम नहीं मना पाते, पीएम आवास के अधूरे रह जाने के पीड़ा दोगुनी जरूर हुई है.
संसाधन की कमी के कारण नहीं मना रहे जश्न: ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान रामप्रसाद पहाड़ी कोरवा ने कहा कि, "नए साल के बारे में जानकारी तो है, लेकिन यह त्यौहार हम मानते नहीं हैं. कुछ खास नहीं भात और साग खा लेते हैं. सामान्य दिन की तरह ही हमारा जीवन इस दिन भी बीतता है. प्रधानमंत्री जनमन योजना के बारे में भी हमें कोई जानकारी नहीं है और कोई अधिकारी भी यहां आते नहीं हैं. हमारे गांव में पानी और लाइट की समस्या है. पानी हमारे घर तक नहीं आता है. लगभग आधा किलोमीटर दूर से हम झिरिया के नाले से पानी लेते हैं. वहीं का पानी हम पीते हैं और उसे ही निस्तारी के लिए भी इस्तेमाल करते हैं.
जल जीवन मिशन के बारे में सुना तो है. टंकी लगाने के लिए यहां कुछ साल पहले जमीन खोदा गया, लेकिन पानी नहीं निकला. गांव की जनसंख्या लगभग 40 लोगों के आसपास है. सभी पहाड़ी कोरवा समुदाय के हैं."
बगैर घर के क्या मनाएंगे नया साल: गांव दूधीटांगर के बुधराम ने ईटीवी भारत से बातचीत की. बुधराम ने कहा, "हम नया साल तो नहीं मानते. हमें इसके बारे में कोई जानकारी ही नहीं है, नए साल का जश्न क्या होता है. हमें इसके बारे में नहीं पता. हमारे हाथ में कुछ रूपए-पैसे होते तो हम बाजार से कुछ मुर्गी-मुर्गा लाते और कुछ पार्टी करते. लेकिन हमारे पास संसाधन नहीं है." अपने पीछे लोहे के छड़ को दिखाते हुए बुधराम कहते हैं कि, "यह आवास सरकार ने हमें दिया था, लेकिन इसके पैसे ठेकेदार खा गया. बैंक से मेरे नाम पर पैसा आया. बैंक से पैसे निकालकर मुझे ₹3000 दिया गया. बाकी ठेकेदार ने अपने पास रख लिए. मेरे खाते में ₹24000 आए थे और कुल 1 लाख रुपए पूरा आवास बनाया जाना चाहिए था. लेकिन साल बीत गया मेरा आवास अधूरा है. अधिकारी इन्हीं छड़ को खड़ा कर दिए और कहते हैं कि पहाड़ी कोरवा का आवास बन गया, लेकिन हमारा जीवन इसी तरह से कट रहा है.
कुछ दिन पहले ही जिला पंचायत सीईओ ने ली थी बैठक: प्रदेश में चुनाव के बाद भाजपा की सरकार बन चुकी है. इसके बाद जिला प्रशासन का फोकस भी प्रधानमंत्री जनमन योजना पर है. प्रशासन वंचित समूह का जीवन स्तर सुधारने का प्रयास कर रहा है. सभी स्थानों पर शिविरों का आयोजन किया जा रहा है. विशेष पिछड़ी जनजाति के लोगों को पेयजल, आवास, सड़क, आंगनबाड़ी के माध्यम से सारी सुविधाएं देने के दावे किए जा रहे हैं. जिला पंचायत सीईओ विश्वदीप त्रिपाठी ने 29 दिसंबर को विशेष पिछली जनजाति समुदाय से आने वाले कुछ समाज प्रमुखों की बैठक ली थी. समस्याओं को जानने का प्रयास किया था. जनमन योजना का लाभ दिलाने की बातें भी कही थी, लेकिन यह दावे केवल अधिकारियों के दफ्तरों तक सीमित रह जाते हैं. धरातल पर उनका लाभ नहीं मिलता. हालांकि पीएम जनमन योजना की शुरुआत अभी हो रही है. लेकिन विशेष पिछड़ी जनजातियों के लिए योजनाएं पिछले कई दशकों से जारी है. वजूद इसके उनका जीवन स्तर अभी नहीं सुधरा है. वह काफी पिछड़ा हुआ जीवन व्यतीत कर रहे हैं.
अधूरे आवास के मामले पर आवश्यक संज्ञान लिया जाएगा : इस विषय में जिला पंचायत सीईओ विश्व दीपक त्रिपाठी ने बताया कि पीएम आवास फिलहाल हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता पर है. जिले में 64000 आवास हैं, जिन्हें पूर्ण कराया जाना है. दूधीटांगर में पहाड़ी कोरवा का आवास अधूरा रहने की बात आपके माध्यम से हमारे संज्ञान में आई है. इस पर हम आवश्यक कार्रवाई करेंगे. फिलहाल पीएम जनमन योजना के तहत हम धरातल पर उतरकर योजनाओं की जानकारी ले रहे हैं. रविवार के दिन भी हम एक प्रोजेक्ट के दौरे पर हैं. जहां हम योजनाओं की समीक्षा कर रहे हैं. जो भी खामी होगी उसे दूर किया जाएगा और हितग्राहियों को योजना का लाभ प्रदान किया जाएगा.
पहाड़ी कोरवा जनजातियों को छत्तीसगढ़ में विशेष दर्जा: छत्तीसगढ़ के अलग-अलग जिलों में मौजूद पहाड़ी कोरवा, बिरहोर, बैगा, अबूझमडि़या और कमार को विशेष पिछड़े जनजाति का दर्जा दिया गया है. इन्हें राष्ट्रपति का दस्तक पुत्र कहा जाता है. इनकी नसबंदी पर प्रतिबंध है. इनकी संस्कृति और जनसंख्या को भी संवारने की जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासन की होती है. कई योजनाएं भी संचालित की जाती हैं. इन्हें पीवीटीजी की संज्ञा दी गई है.
छत्तीसगढ़ में पहाड़ी कोरवा जनजाति के हालात: छत्तीसगढ़ में पहाड़ी कोरवा जनजाति के लोगों की संख्या काफी अधिक है. प्रदेश के बलरामपुर, जशपुर, कोरबा और सरगुजा जिलों में पहाड़ी कोरवा जनजाति के लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है.
छत्तीसगढ़ में बैगा जनजाति की स्थिति: बैगा जनजाति छत्तीसगढ़ के बिलासपुर, कबीरधाम, कोरिया, मुंगेली और राजनांदगांव जिले रहते हैं. इनके परिवारों की संख्या 24589 है. जनसंख्या पर अगर हम गौर करें तो 88 हजार से अधिक बैगा जनजाति की जनसंख्या छत्तीसगढ़ में है.