कोरबा: प्रदूषणों में ध्वनि प्रदूषण की मार सबसे घातक है. पानी और हवा में होने वाले प्रदूषण को अमूमन हम देख पाते हैं, महसूस कर पाते हैं. इसलिए इन पर चर्चाएं होती हैं. ध्वनि प्रदूषण का मामला इनसे अलग है. ध्वनि प्रदूषण लोगों की मानसिकता और दिनचर्या को प्रभावित कर रहा है. कई लोग घातक बीमारियों का शिकार हो रहे हैं. ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए सिर्फ नियम बनाए गए हैं. जमीनी स्तर पर कुछ खास असर नहीं दिख रहा है.
औद्योगिक नगरी होने के कारण कोरबा प्रदेश के अन्य जिलों की तुलना में ध्वनि प्रदूषण के लिहाज से ज्यादा संवेदनशील है. औद्योगिक उपक्रमों से होने वाला ध्वनि प्रदूषण वर्तमान परिवेश में चरम सीमा लांघने के बेहद करीब है. जितना ध्वनि प्रदूषण जिलेवासी फिलहाल झेल रहे हैं, अगर वक्त पर रोक नहीं लगाई गई तो लोगों के लिए घातक साबित हो सकता है.
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औद्योगिक उपक्रमों के लिए 75 डेसीबल
अधिकतम सीमा ध्वनि प्रदूषण मापने के लिए डेसिबल का प्रयोग किया जाता है. यह सीमा सभी क्षेत्रों के लिए अलग-अलग निर्धारित है. शांत वातावरण में 55 डेसिबल, रिहायशी इलाकों में 65 तो औद्योगिक उपक्रमों के लिए 75 डेसिबल की अधिकतम ध्वनि की सीमा निर्धारित है. कुछ समय पहले ही अलग-अलग औद्योगिक उपक्रमों में जाकर ध्वनि प्रदूषण की जांच की गई थी. पर्यावरण विभाग ने औद्योगिक क्षेत्रों की जांच की. 74 डेसीबल तक ध्वनि प्रदूषण हो रहा है. हालांकि 75 डेसीबल से अधिक ध्वनि उत्पन्न करने का मामला अबतक कहीं भी नहीं पाया गया है.
बालको में हुई थी जांच
बालको पुलिस थाने के करीब बालको प्लांट का कूलिंग टावर मौजूद है. इससे ध्वनि प्रदूषण ज्यादा से ज्यादा 74 डेसीबल तक पहुंचा. हालांकि औद्योगिक क्षेत्र से उत्पन्न ध्वनि ने अधिकतम सीमा को नहीं लांघा. इसकी वजह से वह कार्रवाई के दायरे से बाहर है. शिकायत मिली तो कार्रवाई का प्रावधान है. पर्यावरण विभाग की मानें तो हर तरह के प्रदूषण के लिए वह जवाबदेह हैं. ध्वनि प्रदूषण ज्यादा होने पर कार्रवाई की जाएगी.
इस तरह के खतरे
ध्वनि प्रदूषण के संपर्क में लगातार आने के कारण लोग चिड़चिड़ापन, अनिद्रा और मानसिक रोग से ग्रसित हो सकते हैं. पर्यावरण विभाग के वैज्ञानिक राजेंद्र वासुदेव ने कहा कि ध्वनि प्रदूषण सभी तरह के प्रदूषण में सबसे खतरनाक है. इससे एक सीमा के बाद व्यक्ति पूरी तरह से पागल भी हो सकता है. जबकि कान, नाक और गले के रोग के विशेषज्ञ डॉक्टर गुरु गोस्वामी ने कहा कि लगातार तेज ध्वनि में काम करते रहने वाले व्यक्ति की मानसिक स्थिति डगमगा सकती है.
ध्वनि के संपर्क में आने से लोग हो रहे बीमार
डॉक्टर गुरु गोस्वामी ने कहा कि ज्यादा ध्वनि के संपर्क में आने के कारण लोग अनिद्रा का शिकार हो सकते हैं. लोगों को कई तरह की बीमारियां घेर सकती हैं. इससे बचने के लिए इयर प्लग जैसे संसाधनों का सहारा लेना चाहिए.
जिले के ये क्षेत्र हैं संवेदनशील
जिले में खासतौर पर पथर्रीपारा, सीएसईबी, दर्री, बालको, एनटीपीसी, हरदीबाजार, रतिजा सहित जहां-जहां भी पावर प्लांट स्थापित हैं, वह इलाके ध्वनि प्रदूषण के लिहाज से संवेदनशील हैं. परीक्षण के दौरान तकनीकी खामियों के कारण प्लांट जब ट्रिप होते हैं, तब बेहद ध्वनि उत्पन्न होती है. जब भी ऐसा होता है, तब आसपास के लगभग 1 से 2 किलोमीटर के दायरे में तेज ध्वनि उत्पन्न होती है. इस समय आसपास खड़े लोग भी एक दूसरे से बात नहीं कर सकते.
शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव
- ज्यादा शोर के कारण हाई ब्लड प्रेशर
- हाइपरटेंशन
- दिल की बीमारियां
- आंख की पुतलियों में खिंचाव और तनाव
- मांसपेशियों में खिंचाव, पाचन तंत्र में गड़बड़ी
- मानसिक तनाव, अल्सर जैसे पेट एवं अंतड़ियों के रोग हो सकते हैं.
- बेहद ज्यादा शोर के कारण गर्भवती महिलाओं में गर्भपात भी हो सकता है.
ध्वनि प्रदूषण के लिए रोकथाम
- रोकथाम, उपचार और लोगों में इसे रोकने के लिए जागरूकता लाना.
- कम शोर करने वाली मशीनों के इस्तेमाल पर जोर.
- ज्यादा आवाज करने वाली मशीनों को साउंडप्रूफ कमरों में लगाया जाए.
- गाड़ियों के हॉर्न की आवाज को नियंत्रित किया जाना चाहिए.
- तेज आवाज वाले वाहनों का प्रवेश रिहायशी इलाकों में प्रतिबंधित किया जाना.
- तेज आवाज वाले बैंड और लाउडस्पीकर पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए.
- तेज आवाज के पटाखों पर भी नियंत्रण होना चाहिए.
- वृक्षारोपण किया जाना चाहिए, वृक्ष ध्वनि शोषक होते हैं.