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लिव इन के पहले जान लें पारिवारिक बैकग्राउंड, मनमुटाव होने पर पति पत्नी की तर्ज पर कोर्ट करता है डील - काउंसलर कल्पना पांडे

दिल्ली में श्रद्धा और आफताब की लिव इन रिलेशनशिप ने एक मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया. चारों चरफ लिव इन रिलेशनशिप का चर्चा का विषय बन गया है. इसे लेकर ईटीवी भारत की टीम फैमिली कोर्ट के दो काउंसलर बातचीत की. लिव इन रिलेशनशिप के बारे में जानने की कोशिश की. पढ़ें पूरी रिपोर्ट...

कुटुम्ब न्यायालय
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Published : Nov 17, 2022, 10:53 AM IST

कोरबा: दिल्ली में श्रद्धा और आफताब की रेयरेस्ट ऑफ द रेयर श्रेणी के केस के बाद लिव इन रिलेशनशिप के बारे में देश भर में चर्चा का विषय बन गया है. ईटीवी भारत ने इसके पीछे की मानसिकता और लिव इन रिलेशनशिप में रहते हुए किन बातों की सावधानी बरतनी चाहिए इस विषय पर उन जानकारों खुद जाकर चर्चा की. जो इस तरह के मामलों को डील करते हैं. हालांकि कोरबा जैसे छोटे शहरों में लिव इन के मामले कम ही आते हैं. लेकिन इक्का दुक्का मामले हैं, कोरबा के कोर्ट में भी आए हैं. जानकारों का कहना है कि इस तरह के मामलों में कोर्ट संवेदनशीलता बरतता है, यदि एक लड़का और लड़की पति पत्नी की तरह साथ रह रहे हैं. तो उन पर वह सभी नियम और कानून लागू होते हैं. जो किसी शादीशुदा जोड़े के लिए बनाए गए हैं.

लिव इन के पहले जान लें पारिवारिक बैकग्राउंड

पारिवारिक पृष्ठभूमि का पता लगाना बेहद जरूरी : फैमिली कोर्ट कोरबा की काउंसलर अरुणा श्रीवास्तव ने बताया कि "कोरबा जैसे छोटी जगह में लिव इन के मामले कम ही देखने को मिलते हैं. हम परिवार से जुड़े मामलों पर ही डील करते हैं. जब जोड़े हमारे पास आते हैं तो हमारा प्रयास रहता है कि परिवार को टूटने से बचाया जाए. कई बार तो बात इतनी छोटी सी होती है कि उसे भी समझाने वाला कोई मौजूद नहीं होता हम वहां पर अहम भूमिका निभाते हैं. कई बार लोग समझना नहीं चाहते और छोटी सी गलतफहमी की वजह से बात बढ़ जाती है. ऐसा भी हुआ है कि हमारे समझाने से बात बन गई और परिवार टूटने से बच गया है. दिल्ली में जो मामला सामने आया है. उसके तर्ज पर यदि देखा जाए तो लिव इन में जाने से पहले पारिवारिक पृष्ठभूमि का पता लगाना बेहद जरूरी है. यह पता लगाया जाना चाहिए कि जिसके साथ रह रहे हैं. वह आपराधिक पृष्ठभूमि वाला तो नहीं है. लिव इन एक तरह से जिम्मेदारी से बचने का भी तरीका है. इसमें दोनों ही अपना स्वहित देखते हैं. सिर्फ इस्तेमाल करने की मंशा नहीं होनी चाहिए, यदि परिवार को आगे बढ़ाने की इच्छा है. तभी लिव इन में जाना चाहिए".

यह भी पढ़ें: छत्तीसगढ़ का मौसम: उत्तर और दक्षिण छत्तीसगढ़ में कड़ाके की ठंड, नारायणपुर में चली शीतलहर

लिव इन के मामलो को ठीक पति पत्नी की तरह दिए गए हैं कानूनी अधिकार: फैमिली कोर्ट कोरबा में ही अपनी सेवाएं दे रही अधिवक्ता और काउंसलर कल्पना पांडे ने लीव इन के मामलों पर कहा कि "इस तरह के ज्यादातर मामले मेट्रो शहरों में ही आते हैं. कोई जोड़ा लिव इन रिलेशनशिप में रह रहा है और उनके बीच कोई मनमुटाव है तो वह भी अपना केस फैमिली कोर्ट में लगा सकते हैं. कोई वर्षों से पति पत्नी की तरह रिलेशन में रह रहे हैं. भले ही उन्होंने शादी नहीं की तब भी कोर्ट उन्हें पति पत्नी ही मानता है और उन पर सभी नियम कानून लागू होते हैं. मुझे लिव इन की जो प्रक्रिया है, यह कुछ खास पसंद नहीं है. यह हमारे भारतीय संस्कृति के भी खिलाफ है. इसलिए मेरा तो मानना है कि यदि शादी करने का इरादा हो तभी लिव इन रिलेशनशिप में रहना चाहिए. लेकिन आजकल की जनरेशन में यह सोच काफी कम होती जा रही है. वह कुछ समय के लिए ही साथ रहते हैं और फिर कहते हैं कि हमें अब साथ नहीं रहना. लेकिन यह ठीक नहीं है. यदि माता पिता ने शादी की है तो आपको रिश्ते को बचाकर रखने की दिशा में काम करना चाहिए. छोटी बातों को नजरअंदाज करके रिश्ते को निभाने की सोच होनी चाहिए, अगर रिश्ते को बचाने की सोच हो. तब ही लिव इन में रहने के बारे में विचार करना चाहिए."

कोरबा: दिल्ली में श्रद्धा और आफताब की रेयरेस्ट ऑफ द रेयर श्रेणी के केस के बाद लिव इन रिलेशनशिप के बारे में देश भर में चर्चा का विषय बन गया है. ईटीवी भारत ने इसके पीछे की मानसिकता और लिव इन रिलेशनशिप में रहते हुए किन बातों की सावधानी बरतनी चाहिए इस विषय पर उन जानकारों खुद जाकर चर्चा की. जो इस तरह के मामलों को डील करते हैं. हालांकि कोरबा जैसे छोटे शहरों में लिव इन के मामले कम ही आते हैं. लेकिन इक्का दुक्का मामले हैं, कोरबा के कोर्ट में भी आए हैं. जानकारों का कहना है कि इस तरह के मामलों में कोर्ट संवेदनशीलता बरतता है, यदि एक लड़का और लड़की पति पत्नी की तरह साथ रह रहे हैं. तो उन पर वह सभी नियम और कानून लागू होते हैं. जो किसी शादीशुदा जोड़े के लिए बनाए गए हैं.

लिव इन के पहले जान लें पारिवारिक बैकग्राउंड

पारिवारिक पृष्ठभूमि का पता लगाना बेहद जरूरी : फैमिली कोर्ट कोरबा की काउंसलर अरुणा श्रीवास्तव ने बताया कि "कोरबा जैसे छोटी जगह में लिव इन के मामले कम ही देखने को मिलते हैं. हम परिवार से जुड़े मामलों पर ही डील करते हैं. जब जोड़े हमारे पास आते हैं तो हमारा प्रयास रहता है कि परिवार को टूटने से बचाया जाए. कई बार तो बात इतनी छोटी सी होती है कि उसे भी समझाने वाला कोई मौजूद नहीं होता हम वहां पर अहम भूमिका निभाते हैं. कई बार लोग समझना नहीं चाहते और छोटी सी गलतफहमी की वजह से बात बढ़ जाती है. ऐसा भी हुआ है कि हमारे समझाने से बात बन गई और परिवार टूटने से बच गया है. दिल्ली में जो मामला सामने आया है. उसके तर्ज पर यदि देखा जाए तो लिव इन में जाने से पहले पारिवारिक पृष्ठभूमि का पता लगाना बेहद जरूरी है. यह पता लगाया जाना चाहिए कि जिसके साथ रह रहे हैं. वह आपराधिक पृष्ठभूमि वाला तो नहीं है. लिव इन एक तरह से जिम्मेदारी से बचने का भी तरीका है. इसमें दोनों ही अपना स्वहित देखते हैं. सिर्फ इस्तेमाल करने की मंशा नहीं होनी चाहिए, यदि परिवार को आगे बढ़ाने की इच्छा है. तभी लिव इन में जाना चाहिए".

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लिव इन के मामलो को ठीक पति पत्नी की तरह दिए गए हैं कानूनी अधिकार: फैमिली कोर्ट कोरबा में ही अपनी सेवाएं दे रही अधिवक्ता और काउंसलर कल्पना पांडे ने लीव इन के मामलों पर कहा कि "इस तरह के ज्यादातर मामले मेट्रो शहरों में ही आते हैं. कोई जोड़ा लिव इन रिलेशनशिप में रह रहा है और उनके बीच कोई मनमुटाव है तो वह भी अपना केस फैमिली कोर्ट में लगा सकते हैं. कोई वर्षों से पति पत्नी की तरह रिलेशन में रह रहे हैं. भले ही उन्होंने शादी नहीं की तब भी कोर्ट उन्हें पति पत्नी ही मानता है और उन पर सभी नियम कानून लागू होते हैं. मुझे लिव इन की जो प्रक्रिया है, यह कुछ खास पसंद नहीं है. यह हमारे भारतीय संस्कृति के भी खिलाफ है. इसलिए मेरा तो मानना है कि यदि शादी करने का इरादा हो तभी लिव इन रिलेशनशिप में रहना चाहिए. लेकिन आजकल की जनरेशन में यह सोच काफी कम होती जा रही है. वह कुछ समय के लिए ही साथ रहते हैं और फिर कहते हैं कि हमें अब साथ नहीं रहना. लेकिन यह ठीक नहीं है. यदि माता पिता ने शादी की है तो आपको रिश्ते को बचाकर रखने की दिशा में काम करना चाहिए. छोटी बातों को नजरअंदाज करके रिश्ते को निभाने की सोच होनी चाहिए, अगर रिश्ते को बचाने की सोच हो. तब ही लिव इन में रहने के बारे में विचार करना चाहिए."

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