कोरबा: शहर के मुड़ापार स्थित कालीबाड़ी मंदिर का निर्माण 32 साल पहले 1991 में किया गया था. तब से लेकर अब तक यह मंदिर जिले के काली मां के भक्तों के लिए आस्था का केंद्र बिंदु है. इस मंदिर के विषय में मान्यता है कि इस मंदिर में सच्ची आस्था से प्रार्थना करते पर मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
बंगाली समाज ने की थी स्थापना: यूं तो बंगाली हिंदू धार्मिक ग्रंथों में माता काली विशेष महत्त्व रखती हैं. हिंदू धर्म में काली मां के भक्तों की कोई कमी नहीं है. लेकिन खासतौर पर बंगाली समाज में मां काली की विशेष आराधना का रिवाज है. मुड़ापार में ऐसईसीएल के तत्कालीन कर्मचारियों के द्वारा 1991 में इस मंदिर की नींव रखी गई थी.
बंगाली समाज करता है मंदिर का रख रखाव: आज भी एसईसीएल में बड़ी संख्या में वेस्ट बंगाल से आए कर्मचारी निवास करते हैं. बंगाली समाज, कालीबाड़ी मंदिर का लगातार रखरखाव कर रहा है. खास अवसरों पर यहां विशेष पूजन, अनुष्ठान किया जाता है. जबकि पूजा अर्चना के लिए यहां पंडित सदैव मौजूद रहते हैं. मंदिर में प्रत्येक दिन विधि विधान से पूजा की जाती है.
पूरी होती है मनोकामनाएं: कलीबाड़ी मंदिर के पुजारी स्वदेस चक्रवर्ती कहते हैं कि "इस मंदिर की स्थापना बंगाली समाज द्वारा ही की गई है. हम लगातार यहां का रखरखाव और मंदिर का ध्यान रखते हैं. खास अवसरों पर मनोकामना ज्योति कलश भी प्रज्वलित किए जाते हैं. धूमधाम से माता करने की पूजा अर्चना की जाती है. इस मंदिर में जो भी भक्त सच्ची श्रद्धा से आते हैं. उनकी मनोकामना जरूर पूर्ण होती है."
सर्व समाज के आते हैं भक्त: कलीबाड़ी मंदिर के पुजारी स्वदेस चक्रवर्ती कहते हैं कि "सर्व समाज के लोग यहां पर माता के दरबार में दर्शन के लिए आते हैं. जिनकी मनोकामना पूरी होती है. आने वाली चैत्र नवरात्री भी यहां धूम धाम से मनाई जाती है. हर समाज के लोग यहां बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं. साल 1992 में मंदिर की स्थापना हुई थी. उसके बाद से ही लगातार यहां भक्त पहुंचते हैं और दर्शन करते हैं."