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बढ़ते औद्योगीकरण से कोरबा के इकोसिस्टम पर गंभीर खतरा !

कोरबा में बढ़ते औद्योगीकरण की वजह से जंगलों का दायरा घटता जा रहा है. जंगलों की कम होती सीमा का असर इकोसिस्टम पर पड़ रहा है. जिसकी वजह से जीव जंतुओं पर भी खतरा मंडरा रहा है.

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Published : Jan 15, 2021, 7:49 PM IST

Updated : Jan 15, 2021, 7:56 PM IST

effect of increasing industrialization in korba
बढ़ते औद्योगीकरण से कोरबा के इकोसिस्टम पर गंभीर खतरा

कोरबा: औद्योगीकरण के चलते पेड़ों की कटाई से जंगलों का संतुलन बिगड़ रहा है. हालांकि विशेषज्ञों की मानें तो कोरबा जिला में जंगलो की अधिकता से यहां की जैव विविधता बेहद समृद्ध है. लेकिन दूसरी तरफ तेजी से हो रहे औद्योगीकरण और वनों की कटाई से इको सिस्टम (परिस्थितक तंत्र) पर खतरा मंडराने लगा है. वन विभाग के अधिकारी भी इस बात से इंकार नहीं कर रहे की बीते कुछ सालों में ईको सिस्टम में काफी बदलाव आया है. वनों को बचाने और परिस्थितिक तंत्र को मजबूत बनाने के लिए लोगों को भी आगे आना होगा. सामाजिक सहभागिता के बिना वन विभाग अपने बल बूते जंगलों का पूरी तरह से संरक्षण नहीं कर सकता.

बढ़ते औद्योगीकरण से कोरबा के इकोसिस्टम पर गंभीर खतरा

कटघोरा-अंबिकापुर नेशनल हाइवे से जिले के विकास को गति तो मिली है. करीब 150 किलोमीटर की यह सड़क जिले के लिए मील का पत्थर है. लेकिन इस सड़क के लिए 25 हजार पेड़ों की बलि दे दी गई. वन विभाग की अनुशंसा के बाद इसकी रिपोर्ट केंद्रीय वन मंत्रालय ने मांगी थी. सड़क चौड़ीकरण के लिए यहां 25 हजार पेड़ काटे गए हैं.

5 किलोमीटर की सड़क के लिए काटे 600 पेड़

शहर के बीच स्थित सीएसएबी चौक से लेकर मेजर ध्यानचंद चौक तक बनने वाले फोरलेन सड़क की लागत 43 करोड़ रुपये है. इस 5 किलोमीटर की सड़क बनाने के लिए भी 600 से ज्यादा पेड़ों की कटाई की गई है. सड़क निर्माण में ग्रीन प्वॉइंट विकास का काम भी शामिल है. लेकिन अब तक ये काम अधूरा है. सड़क निर्माण का काम जनवरी 2020 तक पूरा हो जाना था. लेकिन कोरोना काल के कारण काम अब भी अधूरा ही है. पेड़ों की अंधाधुंध कटाई कर बेतरतीब ढंग से उन्हें यहां वहां फेंक दिया गया है. नियमित अंतराल पर इस तरह विकास के नाम पर पेड़ों की कटाई जिले में होती रही है.

पढ़ें: बेहतर इलाज के लिए जिला अस्पताल को बना दिया हाईटेक: जयसिंह अग्रवाल

अब तक 202 प्रकरण किए गए दर्ज

विभाग के ढीले रवैए के कारण जंगल के भीतर भी बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई होती है. ग्रामीण अपनी सुविधा के मुताबिक पेड़ों को काटकर इसे जलाऊ लकड़ी के तौर पर इस्तेमाल करते हैं. तो कई बार सुनियोजित तरीके से लकड़ी तस्कर आकर साल और सागौन की बेशकीमती लकड़ी को जंगलों से काट कर ले जाते हैं. इस तरह के मामलों में वन विभाग के जमीनी कर्मचारियों की भी मिलीभगत से भी इंकार नहीं किया जा सकता. पेड़ों की अवैध कटाई के खिलाफ अब तक वन विभाग ने साल 2020 में कोरबा वन मंडल में 202 प्रकरण भी दर्ज किए हैं.

पेड़ों की प्रजातियों पर भी खतरा

विज्ञान सभा के जानकारों की मानें तो जिले की जैव विविधता बेहद खास है. एक स्थानीय प्रजाति से कई दूसरे लोकल जीव जंतु जुड़े होते हैं. आयुर्वेद में खैर का पेड़ कुष्ठ, एग्जिमा जैसे चर्म रोगों की अच्छी दवा के तौर पर जाना जाता है. भूख जगाने और खाना आसानी से पचाने के भी गुण खैर में होते हैं. यह गुणकारी पेड़ कोरबा और छत्तीसगढ़ की एक स्थानीय प्रजाति है. जोकि कोरबा में भी बड़े पैमाने पर पाई जाती थी. लेकिन अब यह प्रजाति विलुप्ति के कगार पर है. खैर के अलावा चार, महुआ, साल, बीज, खम्हार और कोसम जैसे स्थानीय पेड़ों की संख्या बढ़ाने के लिए एक पहल की जरूरत है. ताकि उन्हें न केवल बचाया जा सके बल्कि उनसे मिलने वाले वनोपज के जरिए स्थानीय लोगों की आजीविका का प्रबंध भी किया जा सके.

कोरबा जंगल के मामले में अब भी समृद्ध, लेकिन वनों के संरक्षण की जरूरत

रिसर्च के मुताबिक किसी क्षेत्र में शुद्ध हवा तभी पाई जा सकती है जब संबंधित इलाके के कुल क्षेत्रफल का 33 फीसदी भाग जंगलों से भरा हो या पेड़ों से घिरा हो. कोरबा जिले के कुल क्षेत्रफल का 40 फीसदी भाग जंगलों से घिरा है. औसत से 7% ज्यादा पेड़ कोरबा जिले में मौजूद हैं. इस लिहाज से कोरबा फिलहाल काफी समृद्ध है. लेकिन लगातार औद्योगीकरण और अवैध कटाई के कारण जंगलों का दायरा तेजी से सिमट रहा है. भविष्य में भी यह समृद्धि बनी रहे, इसके लिए जंगलों के संरक्षण की बेहद जरूरत है.

फैक्ट फाइल

  • जिले का कुल क्षेत्रफल- 7 लाख 14 हजार 544 हेक्टेयर.
  • 3 लाख हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र वन में शामिल.
  • कुल क्षेत्रफल का 40 फीसदी है वन क्षेत्र.

कोरबा: औद्योगीकरण के चलते पेड़ों की कटाई से जंगलों का संतुलन बिगड़ रहा है. हालांकि विशेषज्ञों की मानें तो कोरबा जिला में जंगलो की अधिकता से यहां की जैव विविधता बेहद समृद्ध है. लेकिन दूसरी तरफ तेजी से हो रहे औद्योगीकरण और वनों की कटाई से इको सिस्टम (परिस्थितक तंत्र) पर खतरा मंडराने लगा है. वन विभाग के अधिकारी भी इस बात से इंकार नहीं कर रहे की बीते कुछ सालों में ईको सिस्टम में काफी बदलाव आया है. वनों को बचाने और परिस्थितिक तंत्र को मजबूत बनाने के लिए लोगों को भी आगे आना होगा. सामाजिक सहभागिता के बिना वन विभाग अपने बल बूते जंगलों का पूरी तरह से संरक्षण नहीं कर सकता.

बढ़ते औद्योगीकरण से कोरबा के इकोसिस्टम पर गंभीर खतरा

कटघोरा-अंबिकापुर नेशनल हाइवे से जिले के विकास को गति तो मिली है. करीब 150 किलोमीटर की यह सड़क जिले के लिए मील का पत्थर है. लेकिन इस सड़क के लिए 25 हजार पेड़ों की बलि दे दी गई. वन विभाग की अनुशंसा के बाद इसकी रिपोर्ट केंद्रीय वन मंत्रालय ने मांगी थी. सड़क चौड़ीकरण के लिए यहां 25 हजार पेड़ काटे गए हैं.

5 किलोमीटर की सड़क के लिए काटे 600 पेड़

शहर के बीच स्थित सीएसएबी चौक से लेकर मेजर ध्यानचंद चौक तक बनने वाले फोरलेन सड़क की लागत 43 करोड़ रुपये है. इस 5 किलोमीटर की सड़क बनाने के लिए भी 600 से ज्यादा पेड़ों की कटाई की गई है. सड़क निर्माण में ग्रीन प्वॉइंट विकास का काम भी शामिल है. लेकिन अब तक ये काम अधूरा है. सड़क निर्माण का काम जनवरी 2020 तक पूरा हो जाना था. लेकिन कोरोना काल के कारण काम अब भी अधूरा ही है. पेड़ों की अंधाधुंध कटाई कर बेतरतीब ढंग से उन्हें यहां वहां फेंक दिया गया है. नियमित अंतराल पर इस तरह विकास के नाम पर पेड़ों की कटाई जिले में होती रही है.

पढ़ें: बेहतर इलाज के लिए जिला अस्पताल को बना दिया हाईटेक: जयसिंह अग्रवाल

अब तक 202 प्रकरण किए गए दर्ज

विभाग के ढीले रवैए के कारण जंगल के भीतर भी बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई होती है. ग्रामीण अपनी सुविधा के मुताबिक पेड़ों को काटकर इसे जलाऊ लकड़ी के तौर पर इस्तेमाल करते हैं. तो कई बार सुनियोजित तरीके से लकड़ी तस्कर आकर साल और सागौन की बेशकीमती लकड़ी को जंगलों से काट कर ले जाते हैं. इस तरह के मामलों में वन विभाग के जमीनी कर्मचारियों की भी मिलीभगत से भी इंकार नहीं किया जा सकता. पेड़ों की अवैध कटाई के खिलाफ अब तक वन विभाग ने साल 2020 में कोरबा वन मंडल में 202 प्रकरण भी दर्ज किए हैं.

पेड़ों की प्रजातियों पर भी खतरा

विज्ञान सभा के जानकारों की मानें तो जिले की जैव विविधता बेहद खास है. एक स्थानीय प्रजाति से कई दूसरे लोकल जीव जंतु जुड़े होते हैं. आयुर्वेद में खैर का पेड़ कुष्ठ, एग्जिमा जैसे चर्म रोगों की अच्छी दवा के तौर पर जाना जाता है. भूख जगाने और खाना आसानी से पचाने के भी गुण खैर में होते हैं. यह गुणकारी पेड़ कोरबा और छत्तीसगढ़ की एक स्थानीय प्रजाति है. जोकि कोरबा में भी बड़े पैमाने पर पाई जाती थी. लेकिन अब यह प्रजाति विलुप्ति के कगार पर है. खैर के अलावा चार, महुआ, साल, बीज, खम्हार और कोसम जैसे स्थानीय पेड़ों की संख्या बढ़ाने के लिए एक पहल की जरूरत है. ताकि उन्हें न केवल बचाया जा सके बल्कि उनसे मिलने वाले वनोपज के जरिए स्थानीय लोगों की आजीविका का प्रबंध भी किया जा सके.

कोरबा जंगल के मामले में अब भी समृद्ध, लेकिन वनों के संरक्षण की जरूरत

रिसर्च के मुताबिक किसी क्षेत्र में शुद्ध हवा तभी पाई जा सकती है जब संबंधित इलाके के कुल क्षेत्रफल का 33 फीसदी भाग जंगलों से भरा हो या पेड़ों से घिरा हो. कोरबा जिले के कुल क्षेत्रफल का 40 फीसदी भाग जंगलों से घिरा है. औसत से 7% ज्यादा पेड़ कोरबा जिले में मौजूद हैं. इस लिहाज से कोरबा फिलहाल काफी समृद्ध है. लेकिन लगातार औद्योगीकरण और अवैध कटाई के कारण जंगलों का दायरा तेजी से सिमट रहा है. भविष्य में भी यह समृद्धि बनी रहे, इसके लिए जंगलों के संरक्षण की बेहद जरूरत है.

फैक्ट फाइल

  • जिले का कुल क्षेत्रफल- 7 लाख 14 हजार 544 हेक्टेयर.
  • 3 लाख हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र वन में शामिल.
  • कुल क्षेत्रफल का 40 फीसदी है वन क्षेत्र.
Last Updated : Jan 15, 2021, 7:56 PM IST
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