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Holi 2023 in Korba: नगाड़े की थाप के बिना अधूरा रहता है फाग का राग, इस बार कारीगरों ने की है खास तैयारी

होली में नगाड़े का खास महत्व होता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नगाड़े की पूजा और इसके बजने के साथ ही होली के त्यौहार शुरू होते हैं. वर्तमान समय में नगाड़ों की जगह डीजे ने ले लिया है. बावजूद इसके पारंपरिक वाद्य यंत्र का महत्त्व अब भी बरकरार है. कारीगरों ने इस साल पहली बार नगाड़े को लेकर खास तैयारी की है. korba latest news

Holi 2023 in Korba
नगाड़े की थाप के बिना अधूरा
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Published : Mar 7, 2023, 12:23 AM IST

नगाड़े की थाप के बिना होली अधूरी

कोरबा: होली का त्यौहार हो और नगाड़े की धुन ना सुनाई दे, ऐसा हो ही नहीं सकता. कोरोना काल में जब सामाजिक दूरी का पालन सख्ती से कराया गया, तब होली का त्यौहार फीका रहा था. अब इस वर्ष होली मनाने को लेकर लोगों ने खास तैयारी की है. नगाड़ा बनाने वाले कारीगरों ने भी इस वर्ष मेहनत करके ढेर सारे नगाड़े तैयार किए हैं. जिनकी अच्छी खास बिक्री भी हो रही है. नगाड़ा व्यवसायियों ने बताया कि उन्होंने नगाड़ा बनाने का काम लगभग 3-4 साल से पूरी तरह से बंद कर दिया था. कोरोना के कारण पिछले वर्ष काफी कम संख्या में नगाड़ा बनाए थे, लेकिन इस वर्ष अच्छी खासी तादाद में नगाड़े तैयार किये गए हैं. जिसकी मांग भी बाजारों में बरकरार है. होली में खासतौर पर नगाड़ों का अपना महत्व होता है. नगाड़े की धुन और गुलाल के रन का कॉम्बिनेशन होली में हर बार देखने को मिलता है. फाग गीत भी नगाड़ों के बिना अधूरे रहते हैं. ज्यादातर फाग गीत नगाड़ों के साथ ही परवान चढ़ते हैं.


नगाड़ों का है खासा महत्व : देश और विदेशों तक भी ब्रज भूमि की होली काफी प्रसिद्ध है. यहां भी होली की शुरुआत नगाड़े की पूजा और इसके धुन के साथ की जाती है. प्राचीन काल से ही नगाड़ा बजाकर यहां होली मनाया जाता है. इसी तरह छत्तीसगढ़ में जशपुर राजघराने द्वारा भी प्रत्येक वर्ष होलिका पर नगाड़े की पूजा की परंपरा चली आ रही है. मान्यता है कि जशपुर के जूदेव राजघराने द्वारा 27वीं पीढ़ी के नगाड़े की पूजा करते हैं. जिसकी पूजा करने के बाद ही होली की शुरुआत होती है. धार्मिक मान्यताओं से लेकर संगीत की धुन तक नगाड़ों का होली में खास महत्व है.

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15 साल की उम्र से बना रहे नगाड़ा : शहर के मोतीसागर पारा में रहने वाले कृष्णा सागर अब वृद्ध हो चले हैं. जो 15 वर्ष की उम्र से नगाड़ा बना रहे हैं. कृष्णा कहते हैं कि "बचपन में जब मैं पढ़ाई करता था और 15 साल का था तभी से पिता के साथ नगाड़ा बनाता था. यह बकरे की खाल से बनाया जाता है. हम इसे लाकर पानी में भिगाते हैं. फिर मटके पर इसे चढ़ाकर संतुलित खिंचाव देते हैं. काफी मेहनत का काम है, बीच में जब कोरोना आया. तब पूरी तरह से नगाड़ा बनाना बंद ही कर दिया था. पिछले साल छोटे पैमाने पर इसकी शुरुआत की, लेकिन इस बार हमने अच्छी खासी तादात में लगाना बनाया है. बालको के बाजार में अच्छी बिक्री भी हुई है, नगाड़ों का होली में बहुत महत्व भी होता है. लोग आपस में मिलजुल कर नगाड़ा बजाकर फाग गीत गाते हैं, जिससे आनंद मिलता है. नगाड़े का इतिहास भी काफी पुराना है."


काफी मेहनत से तैयार करते हैं नगाड़ा, 1000 से 1500 है कीमत: नगाड़े का व्यवसाय कर रहे युवा कैलाश कहते हैं कि नगाड़ा को आकार देने में काफी मेहनत लगती है. मटके पर बकरा छाल को चढ़ाना होता है काफी तैयारी लगती है. तब जाकर एक नगाड़ा तैयार होता है पिछले कुछ सालों से व्यवसाय काफी मंदा रहा था. इस वर्ष काफी सारे नगाड़े तैयार किये हैं. जिसकी कीमत 1000 से 1500 के बीच है. लोग आ रहे हैं पूछ रहे हैं, उम्मीद है इस साल अच्छी बिक्री रहेगी."

होली का खास आकर्षण है नगाड़ा: शहरवासी गजराज सिंह नगाड़ा खरीदने के लिए कैलाश के दुकान पर पहुंचे थे. गणराज कहते हैं कि नगाड़े के बिना होली का त्यौहार अधूरा ही रहता है. जब तक नगाड़े की थाप पर लोग मस्ती ना करें, तब तक होली का आनंद नहीं आता. हम तो टोली में निकलते हैं. गांव में जितने लोग भी जमा हो जाएं, एक टोली बनती है. इसके बाद हम घूम-घूम कर फाग गीत गाते हैं. बिना नगाड़े के फाग गीत की कल्पना ही नहीं हो सकती. इसलिए नगाड़ा होली का खास आकर्षण रहता है."

नगाड़े की थाप के बिना होली अधूरी

कोरबा: होली का त्यौहार हो और नगाड़े की धुन ना सुनाई दे, ऐसा हो ही नहीं सकता. कोरोना काल में जब सामाजिक दूरी का पालन सख्ती से कराया गया, तब होली का त्यौहार फीका रहा था. अब इस वर्ष होली मनाने को लेकर लोगों ने खास तैयारी की है. नगाड़ा बनाने वाले कारीगरों ने भी इस वर्ष मेहनत करके ढेर सारे नगाड़े तैयार किए हैं. जिनकी अच्छी खास बिक्री भी हो रही है. नगाड़ा व्यवसायियों ने बताया कि उन्होंने नगाड़ा बनाने का काम लगभग 3-4 साल से पूरी तरह से बंद कर दिया था. कोरोना के कारण पिछले वर्ष काफी कम संख्या में नगाड़ा बनाए थे, लेकिन इस वर्ष अच्छी खासी तादाद में नगाड़े तैयार किये गए हैं. जिसकी मांग भी बाजारों में बरकरार है. होली में खासतौर पर नगाड़ों का अपना महत्व होता है. नगाड़े की धुन और गुलाल के रन का कॉम्बिनेशन होली में हर बार देखने को मिलता है. फाग गीत भी नगाड़ों के बिना अधूरे रहते हैं. ज्यादातर फाग गीत नगाड़ों के साथ ही परवान चढ़ते हैं.


नगाड़ों का है खासा महत्व : देश और विदेशों तक भी ब्रज भूमि की होली काफी प्रसिद्ध है. यहां भी होली की शुरुआत नगाड़े की पूजा और इसके धुन के साथ की जाती है. प्राचीन काल से ही नगाड़ा बजाकर यहां होली मनाया जाता है. इसी तरह छत्तीसगढ़ में जशपुर राजघराने द्वारा भी प्रत्येक वर्ष होलिका पर नगाड़े की पूजा की परंपरा चली आ रही है. मान्यता है कि जशपुर के जूदेव राजघराने द्वारा 27वीं पीढ़ी के नगाड़े की पूजा करते हैं. जिसकी पूजा करने के बाद ही होली की शुरुआत होती है. धार्मिक मान्यताओं से लेकर संगीत की धुन तक नगाड़ों का होली में खास महत्व है.

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15 साल की उम्र से बना रहे नगाड़ा : शहर के मोतीसागर पारा में रहने वाले कृष्णा सागर अब वृद्ध हो चले हैं. जो 15 वर्ष की उम्र से नगाड़ा बना रहे हैं. कृष्णा कहते हैं कि "बचपन में जब मैं पढ़ाई करता था और 15 साल का था तभी से पिता के साथ नगाड़ा बनाता था. यह बकरे की खाल से बनाया जाता है. हम इसे लाकर पानी में भिगाते हैं. फिर मटके पर इसे चढ़ाकर संतुलित खिंचाव देते हैं. काफी मेहनत का काम है, बीच में जब कोरोना आया. तब पूरी तरह से नगाड़ा बनाना बंद ही कर दिया था. पिछले साल छोटे पैमाने पर इसकी शुरुआत की, लेकिन इस बार हमने अच्छी खासी तादात में लगाना बनाया है. बालको के बाजार में अच्छी बिक्री भी हुई है, नगाड़ों का होली में बहुत महत्व भी होता है. लोग आपस में मिलजुल कर नगाड़ा बजाकर फाग गीत गाते हैं, जिससे आनंद मिलता है. नगाड़े का इतिहास भी काफी पुराना है."


काफी मेहनत से तैयार करते हैं नगाड़ा, 1000 से 1500 है कीमत: नगाड़े का व्यवसाय कर रहे युवा कैलाश कहते हैं कि नगाड़ा को आकार देने में काफी मेहनत लगती है. मटके पर बकरा छाल को चढ़ाना होता है काफी तैयारी लगती है. तब जाकर एक नगाड़ा तैयार होता है पिछले कुछ सालों से व्यवसाय काफी मंदा रहा था. इस वर्ष काफी सारे नगाड़े तैयार किये हैं. जिसकी कीमत 1000 से 1500 के बीच है. लोग आ रहे हैं पूछ रहे हैं, उम्मीद है इस साल अच्छी बिक्री रहेगी."

होली का खास आकर्षण है नगाड़ा: शहरवासी गजराज सिंह नगाड़ा खरीदने के लिए कैलाश के दुकान पर पहुंचे थे. गणराज कहते हैं कि नगाड़े के बिना होली का त्यौहार अधूरा ही रहता है. जब तक नगाड़े की थाप पर लोग मस्ती ना करें, तब तक होली का आनंद नहीं आता. हम तो टोली में निकलते हैं. गांव में जितने लोग भी जमा हो जाएं, एक टोली बनती है. इसके बाद हम घूम-घूम कर फाग गीत गाते हैं. बिना नगाड़े के फाग गीत की कल्पना ही नहीं हो सकती. इसलिए नगाड़ा होली का खास आकर्षण रहता है."

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