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Independence Day Special: ऐसा है आजादी से पहले के कोरबा का इतिहास - उपरोड़ा रहा जमींदारी का मुख्यालय

आजादी से पहले कोरबा में 5 रियासतें हुआ करती थी. हालांकि वर्तमान में इन पाचों जमींदारियों में सिर्फ एक जमींदारी का ही इतिहास बचा है. बाकी समय के साथ यहां की चार रियासतों के राजा और राजमहल का इतिहास लगभग खत्म हो चुका है.

आजादी से पहले का कोरबा
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Published : Aug 15, 2019, 8:33 PM IST

कोरबा: जिले में आजादी से पहले की 5 रियासतों का उल्लेख है, उस वक्त कोरबा, छुरी, उपरोड़ा, मातिन और लाफा जमींदारियां हुआ करती थी. हालांकि वर्तमान में इन पाचों जमींदारियों में सिर्फ एक जमींदारी का ही इतिहास बचा है. समय के साथ यहां चार रियासतों के राजा और राजमहल इतिहास हो गए हैं.

कोरबा का इतिहास

राजा-रानी की कहानी
वर्तमान में जिले में एकमात्र उपरोड़ा जमींदारी का लिखित इतिहास बचा है. इसके अलावा आज भी उपरोड़ा जमींदारी होने के सबूत मौजूद है. वर्तमान में पोड़ी उपरोड़ा जहां स्थित है, वहां कभी उपरोड़ा जमींदारी का मुख्यालय हुआ करता था. उस समय की अदालत और जमींदार परिवार का महल यहां आज भी मौजूद है. इस अदालत के सारे फैसले कोरबा रियासत की मालकिन रानी धनराज कुंवर करती थीं. उनकी गैरमौजूदगी में अंतिम जमींदार रूद्र शरण प्रताप सिंह फैसले लेते थे. दरअसल, रानी कुंवर की बेटी की शादी उपरोड़ा के जमींदार रूद्र शरण प्रताप सिंह से हुई थी, जिस वजह से कोरबा की रानी उपरोड़ा के भी फैसले लिया करती थी.

ऐसा है गढ़ उपरोड़ा का इतिहास
इतिहासकार हरि सिंह क्षत्रिय बताते हैं, गढ़ उपरोड़ा में रुद्र शरण प्रताप सिंह के परिवार का राज बाद में स्थापित हुआ था. इसके पहले वहां ब्राह्मण जमींदार का शासन था. उन्होंने बताया कि, हिम्मत राय नाम का व्यक्ति गढ़ उपरोड़ा के जंगलों में शिकार के लिए निकला हुआ था और उसी जंगल में ब्राह्मण जमींदार भी शिकार के लिए मौजूद था. इसी दौरान शिकार करने को लेकर जमींदार और हिम्मत राय में बहस हो गई. जिसके बाद दोनों में युद्ध हो गया और लड़ाई में हिम्मत राय ब्राह्मण जमींदार को जान से मार देते हैं. इसके बाद हिम्मत राय ब्राह्मण जमींदार की जमींदारी भी ले लेते हैं.

हिम्मत राय को कर लिया गया था गिरफ्तार
हिम्मत राय के गढ़ उपरोड़ा की गद्दी सभांलने को लेकर रतनपुर रियासत के राजा कल्याण साय नाराजगी जताते हैं और अपने सैनिकों को भेजकर उन्हें रतनपुर में बंधक बना लेते हैं. बताया जाता है, हिम्मत राय का मौहरी राजा को अपने वाद्य यंत्र मौहरिया बजाकर खुश कर देते हैं और अपने मालिक की रिहाई और उन्हें गढ़ उपरोड़ा का जमींदार बनाने को कहते हैं. राजा मौहरी की बात मानकर हिम्मत राय को गढ़ उपरोड़ा का जमींदार नियुक्त करते हैं. इसके बाद 1584 से लेकर देश की आजादी तक हिम्मत राय के वंशज ही जमींदार रहे.

1860 से उपरोड़ा रहा जमींदारी का मुख्यालय
गढ़ उपरोड़ा में सन 1804 से 1860 तक जो भी संतानें जन्म लेती थी, उन संतानों की मृत्यु हो जाती थी. इसके अलावा भालू और हाथियों का आतंक भी क्षेत्र में ज्यादा था. इन सब बातों को ध्यान में रखकर सन 1860 में गढ़ उपरोड़ा जमींदारी का मुख्यालय बदल दिया गया. पोड़ी उपरोड़ा को गढ़ उपरोड़ा जमींदारी का मुख्यालय बनाया गया, जो वर्तमान में कोरबा जिले में एक विकासखण्ड है. सन 1860 से देश की आजादी तक पोड़ी उपरोड़ा ही गढ़ उपरोड़ा जमींदारी का मुख्यालय रहा.

कोरबा: जिले में आजादी से पहले की 5 रियासतों का उल्लेख है, उस वक्त कोरबा, छुरी, उपरोड़ा, मातिन और लाफा जमींदारियां हुआ करती थी. हालांकि वर्तमान में इन पाचों जमींदारियों में सिर्फ एक जमींदारी का ही इतिहास बचा है. समय के साथ यहां चार रियासतों के राजा और राजमहल इतिहास हो गए हैं.

कोरबा का इतिहास

राजा-रानी की कहानी
वर्तमान में जिले में एकमात्र उपरोड़ा जमींदारी का लिखित इतिहास बचा है. इसके अलावा आज भी उपरोड़ा जमींदारी होने के सबूत मौजूद है. वर्तमान में पोड़ी उपरोड़ा जहां स्थित है, वहां कभी उपरोड़ा जमींदारी का मुख्यालय हुआ करता था. उस समय की अदालत और जमींदार परिवार का महल यहां आज भी मौजूद है. इस अदालत के सारे फैसले कोरबा रियासत की मालकिन रानी धनराज कुंवर करती थीं. उनकी गैरमौजूदगी में अंतिम जमींदार रूद्र शरण प्रताप सिंह फैसले लेते थे. दरअसल, रानी कुंवर की बेटी की शादी उपरोड़ा के जमींदार रूद्र शरण प्रताप सिंह से हुई थी, जिस वजह से कोरबा की रानी उपरोड़ा के भी फैसले लिया करती थी.

ऐसा है गढ़ उपरोड़ा का इतिहास
इतिहासकार हरि सिंह क्षत्रिय बताते हैं, गढ़ उपरोड़ा में रुद्र शरण प्रताप सिंह के परिवार का राज बाद में स्थापित हुआ था. इसके पहले वहां ब्राह्मण जमींदार का शासन था. उन्होंने बताया कि, हिम्मत राय नाम का व्यक्ति गढ़ उपरोड़ा के जंगलों में शिकार के लिए निकला हुआ था और उसी जंगल में ब्राह्मण जमींदार भी शिकार के लिए मौजूद था. इसी दौरान शिकार करने को लेकर जमींदार और हिम्मत राय में बहस हो गई. जिसके बाद दोनों में युद्ध हो गया और लड़ाई में हिम्मत राय ब्राह्मण जमींदार को जान से मार देते हैं. इसके बाद हिम्मत राय ब्राह्मण जमींदार की जमींदारी भी ले लेते हैं.

हिम्मत राय को कर लिया गया था गिरफ्तार
हिम्मत राय के गढ़ उपरोड़ा की गद्दी सभांलने को लेकर रतनपुर रियासत के राजा कल्याण साय नाराजगी जताते हैं और अपने सैनिकों को भेजकर उन्हें रतनपुर में बंधक बना लेते हैं. बताया जाता है, हिम्मत राय का मौहरी राजा को अपने वाद्य यंत्र मौहरिया बजाकर खुश कर देते हैं और अपने मालिक की रिहाई और उन्हें गढ़ उपरोड़ा का जमींदार बनाने को कहते हैं. राजा मौहरी की बात मानकर हिम्मत राय को गढ़ उपरोड़ा का जमींदार नियुक्त करते हैं. इसके बाद 1584 से लेकर देश की आजादी तक हिम्मत राय के वंशज ही जमींदार रहे.

1860 से उपरोड़ा रहा जमींदारी का मुख्यालय
गढ़ उपरोड़ा में सन 1804 से 1860 तक जो भी संतानें जन्म लेती थी, उन संतानों की मृत्यु हो जाती थी. इसके अलावा भालू और हाथियों का आतंक भी क्षेत्र में ज्यादा था. इन सब बातों को ध्यान में रखकर सन 1860 में गढ़ उपरोड़ा जमींदारी का मुख्यालय बदल दिया गया. पोड़ी उपरोड़ा को गढ़ उपरोड़ा जमींदारी का मुख्यालय बनाया गया, जो वर्तमान में कोरबा जिले में एक विकासखण्ड है. सन 1860 से देश की आजादी तक पोड़ी उपरोड़ा ही गढ़ उपरोड़ा जमींदारी का मुख्यालय रहा.

Intro: वर्तमान जिले में आजादी के पहले की 5 रियासतों का उल्लेख है। कोरबा, छुरी, उपरोड़ा, मातिन और लाफा जमींदारियां हुआ करती थी। लेकिन समय के साथ सिर्फ 1 ज़मींदारी को छोड़कर किसी भी जमीदारी के इतिहास का अस्तित्व नहीं बचा है।


Body:उपरोड़ा एकमात्र जमीदारी जिसके होने का जीतजागता सबूत आज भी मौजूद है। वर्तमान में पोड़ी उपरोड़ा जहां स्थित है वहीं उपरोड़ा जमीदारी का मुख्यालय हुआ करता था। वहीं पर उस समय की अदालत और जमीदार परिवार का राज महल आज भी मौजूद है। इस अदालत के सारे फैसले कोरबा रियासत की मालकिन रानी धनराज कुंवर करती थी। उनकी गैरमौजूदगी में अंतिम जमीदार रूद्र शरण प्रताप सिंह फैसले लिया करते थे। दरअसल, रानी कुंवर की बेटी की शादी उपरोड़ा जमीदार रूद्र शरण प्रताप सिंह से हुई थी, जिस वजह से कोरबा की रानी उपरोड़ा के भी फैसले लिया करती थी।

वाक थ्रू...

इतिहासकार हरि सिंह क्षत्रिय बताते हैं कि गढ़ उपरोड़ा में रुद्र शरण प्रताप सिंह के परिवार का राज बाद में स्थापित हुआ था। इसके पहले वहां ब्राह्मण ज़मींदार का शासन हुआ करता था। उन्होंने बताया कि हिम्मत राय नाम का व्यक्ति गढ़ उपरोड़ा के जंगलों में शिकार के लिए निकला हुआ था और उसी जंगल में ब्राह्मण ज़मींदार भी शिकार के लिए मौजूद था। इतिहासकार बताते हैं कि शिकार करने को लेकर ज़मींदार और हिम्मत राय में बहस होती है जो लड़ाई में तब्दील हो जाती है। इस लड़ाई में हिम्मत राय ब्राह्मण ज़मींदार को जान से मार देते हैं। हिम्मत राय ब्राह्मण ज़मींदार को मारकर अपने आप को गढ़ उपरोड़ा का राजा घोषित कर देते हैं।
हिम्मत राय के गढ़ उपरोड़ा की गद्दी सम्भालने को लेकर रतनपुर रियासत के राजा कल्याण साय नाराज़गी जताते हैं और अपने सैनिकों को भेजकर उन्हें रतनपुर में बंधक बना लेते हैं। लेकिन बताया जाता है कि हिम्मत राय का मौहरी राजा को अपने वाद्य यंत्र मौहरिया बजाने के माध्यम से खुश कर देते हैं। राजा कल्याण साय मौहरी से मांग करने को कहते हैं जिसमे मौहरी अपने मालिक की रिहाई और उन्हें गढ़ उपरोड़ा का ज़मींदार बनाने को कहते हैं। राजा मौहरी की बात मानकर हिम्मत राय को गढ़ उपरोड़ा का ज़मींदार नियुक्त करते हैं। इसके बाद 1584 से लेकर देश की आज़ादी तक हिम्मत राय के वंशज ज़मींदार रहे।



Conclusion:बताया यह भी जाता है कि गढ़ उपरोड़ा में सन 1804 से 1860 तक जो भी संतानें जन्म लेती थी उन संतानों की मृत्यु हो जाती थी। इसके अलावा भालू और हाथियों का आतंक भी क्षेत्र में ज़्यादा था और मच्छरों से होने वाली बीमारियां भी बढ़ रही थी। इन सब बातों को ध्यान में रखकर सन 1860 में गढ़ उपरोड़ा ज़मींदारी का मुख्यालय बदल दिया गया। पोड़ी उपरोड़ा को गढ़ उपरोड़ा ज़मींदारी का मुख्यालय बनाया गया जो वर्तमान में कोरबा जिले में एक विकासखण्ड है। सन 1860 से देश की आज़ादी तक पोड़ी उपरोड़ा ही गढ़ उपरोड़ा ज़मींदारी का मुख्यालय रहा।

बाइट- हरि सिंह क्षत्रिय, इतिहासकार
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