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कॉरपोरेट परस्ती के मामले में सभी सरकारों का रुख एक जैसा : आलोक शुक्ला

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला ने ETV भारत से खास चर्चा में बताया कि कांग्रेस हो या भाजपा सभी ने ग्राम सभाओं को दरकिनार कर खनन परियोजनाओं का आवंटन कॉरपोरेट घरानों को दिया है. जिससे कि छत्तीसगढ़ में जल, जंगल और जमीन की लड़ाई चरम पर है.

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आलोक शुक्ला से ईटीवी भारत की खास बातचीत
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Published : Mar 21, 2021, 2:13 PM IST

कोरबा: छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला शनिवार को कोरबा प्रवास पर थे. इस दौरान उन्होंने छत्तीसगढ़ में जल, जंगल, जमीन की लड़ाई के साथ विस्थापन से होने वाली समस्याओं से जुड़े मुद्दों पर ETV भारत से खास बातचीत की. छत्तीसगढ़ में आवंटित कोल ब्लॉक में गड़बड़ियों के मुद्दे पर आलोक शुक्ला लगातार मुखरता से बोलते रहे हैं. उनका सरकारों पर सीधा आरोप है कि जब बात कॉरपोरेट परस्ती की आती है, तब सभी पार्टियों का रुख एक जैसा होता है.

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला से खास बातचीत


सवाल: जिनकी जमीन गयी आज वह लोग कहां है?


जवाब: छत्तीसगढ़ में खनन का मामला हो या फिर पूरे प्रदेश में पर्यावरण असंतुलन का मुद्दा. सवाल कई हैं लेकिन इनका जवाब नहीं मिलता, लोगों की आजीविका और उनका जो अस्तित्व है जो उनके जीवन का आधार है, जल, जंगल और जमीन उस पर लगातार हमला हो रहा है. सवाल यह है कि खनन परियोजनाएं में जिन आदिवासियों की या जिन लोगों की जमीन गई है आज वह कहां है? उनका कुछ पता नहीं चलता. सरकार एक भी ऐसा उदाहरण नहीं बता सकती जहां किसी विस्थापित व्यक्ति ने कहा हो कि उन्हें बढ़िया पुनर्वास मिला और उनका जीवन स्तर सुधरा है. पुनर्वास और विस्थापन के समस्याओं के कारण ही आज आदिवासी क्षेत्र के लोग अपनी जमीन नहीं देना चाहते.
लेकिन बावजूद उन पर कई तरह के हमले हो रहे हैं. ग्राम सभाओं को बायपास करके सरकार जमीनों को हथियाना चाहती है. हसदेव अरण्य के लोग लगातार एक दशक से लड़ रहे हैं. वह संगठित हैं और अपने संवैधानिक अधिकारों के लिए वह लगातार डटे हुए हैं. जिसके कारण वहां से ग्राम सभाओं का अनुमोदन नहीं हो पा रहा है.

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला से खास बातचीत
सवाल: आवंटन में क्या कोई गड़बड़ी हुई है ?


जवाब: हसदेव अरण्य क्षेत्र में आवंटित कोल ब्लॉक के आवंटन में कुल 20 कोल ब्लॉक को चिन्हित किया गया है. जिसमें से 7 का आवंटन सरकार ने कर दिया है. परसा केटेवासन और चोटिया का संचालन शुरू हो चुका है. जबकि मदनपुर साउथ, पतुरिया, गिधमुड़ी को अधिसूचित किया गया है. 2015 में सभी कोल ब्लॉक का आवंटन मोदी सरकार ने किया. इसके पहले इन सभी के आवंटन को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था. छत्तीसगढ़ के ज्यादातर इलाके पांचवी अनुसूची में आते हैं, पेसा कानून यहां पर लागू हैं. जिसके तहत आदिवासियों को वन अधिकार के साथ ही जंगल प्रबंधन का भी अधिकार मिलता है. पहले दिन से हम यह बात कह रहे हैं कि इसके लिए ग्राम सभाओं की अनुमति बेहद जरूरी है. ग्राम सभा के अनुमोदन के बिना किसी भी कोल ब्लॉक आवंटित नहीं किया जा सकता जबकि अधिकारियों ने फर्जी तरीके से कुछ कोल ब्लॉक का आवंटन जारी कर दिया है. फर्जी ग्राम सभा का सर्टिफिकेट जारी किया गया है. हम लगातार संघर्ष कर रहे हैं अगर जरूरत पड़ी तो कोर्ट भी जाएंगे.

सवाल: हाल ही में मंत्री टीएस सिंहदेव ने पेसा कानून के लिए जागरूकता अभियान शुरू किया था और आपके भी मधुर संबंध है.


जवाब: बात किसी एक मंत्री की नहीं है. जब परसा केटेवासन कोल ब्लॉक राजस्थान सरकार को दिया गया. तब 2011 में राजस्थान में गहलोत सरकार थी. केंद्र में मनमोहन सिंह थे और राज्य में रमन सिंह थे. लेकिन सभी ने मिलकर कोल ब्लॉक का आवंटन कर दिया. तो जब कॉरपोरेट के हितों की बात आती है, कॉर्पोरेट परस्ती की बात आती है तो सभी सरकारें एक जैसा काम करते हैं.

सवाल: छत्तीसगढ़ में भोले आदिवासियों को बरगलाने का भी आरोप है ?


जवाब: हमें संविधान यह इजाजत देता है कि किसी भी क्षेत्र में जाकर हम काम कर सकते हैं. अक्सर छत्तीसगढ़ में यह बात उठती है अंदर और बाहर की चर्चा होती है. गुजरात की कंपनी छत्तीसगढ़ में आकर खनन चालू करती है और गलत तरीके से जिला कलेक्टर ग्राम सभा का फर्जी सर्टिफिकेट जारी कर देते हैं. सरपंच कहते है कि जिस तारीख को ग्राम सभा का सर्टिफिकेट जारी किया जाना उल्लेख किया गया, उस तारीख को गांव में कोई सभा हुई ही नहीं है. इस तरह का फर्जीवाड़ा कर अधिकारी और कंपनी छत्तीसगढ़ के हो जाते हैं, जबकि हम जैसे एक्टिविस्ट जो संघर्ष कर रहे हैं. जल जंगल जमीन की लड़ाई लड़ रहे हैं. आदिवासियों को संवैधानिक अधिकार दिलाने का प्रयास कर रहे हैं. उन्हें बाहरी कहा जाता है.

बादल सरोज से जानिए किसान आंदोलन कब खत्म होगा

सवाल: जिन अधिकारियों ने ऐसा किया उनके नाम एक्सपोज क्यों नहीं करते?


जवाब: साल 2018 में सरगुजा कलेक्टर ने गलत सर्टिफिकेट जारी कर कोल ब्लॉक आवंटन किया. ग्रामीणों ने इसकी शिकायत की. हमने भी इसकी शिकायत की और FIR का मांग भी कर रहे हैं. इसके बावजूद कार्रवाई नहीं हो पा रही है. हमने नाम सहित शिकायत की है. कलेक्टर कोई व्यक्ति नहीं होता, वह स्थाई पद होता है. किसी कर्मचारी ने किसी कंपनी ने मिलीभगत कर ऐसा किया होगा, तो जो भी हो उस पर कार्रवाई होनी चाहिए.


सवाल: वर्तमान सरकार के कामकाज को किस तरह देखते है ?


जवाब: पिछले 15 सालों में हमें यह बात कहने में कोई गुरेज नहीं है कि रमन सरकार ने कॉरपोरेट एजेंट के तौर पर काम किया. वर्तमान सरकार से हमें उम्मीद है लेकिन जब विधानसभा में कांग्रेस सरकार यह कहती है कि हम आप ही के काम को आगे बढ़ा रहे हैं. तब निराशा होती है. जहां कांग्रेस सरकार ने कोल ब्लॉक आवंटन को एक बड़ा घोटाला बताया था. भ्रष्टाचार बताया था. उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी हसदेव अरण्य क्षेत्र में आए थे और आदिवासियों से ग्रामीणों से कहा था कि इस लड़ाई में हम आपके साथ हैं. बावजूद इसके छत्तीसगढ़ सरकार उनके साथ खड़ी दिखाई नहीं देती. जिस प्रक्रिया को निरस्त करना चाहिए. वह उसे आगे बढ़ाने की बात करते हैं. तब निराशा होती है. हालांकि दो साल में आंकलन नहीं किया जा सकता है. हमें अब भी सरकार से उम्मीद है कि वह कॉरपोरेट के साथ नहीं बल्कि लोगों के साथ खड़ी दिखाई देगी.

कोरबा: छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला शनिवार को कोरबा प्रवास पर थे. इस दौरान उन्होंने छत्तीसगढ़ में जल, जंगल, जमीन की लड़ाई के साथ विस्थापन से होने वाली समस्याओं से जुड़े मुद्दों पर ETV भारत से खास बातचीत की. छत्तीसगढ़ में आवंटित कोल ब्लॉक में गड़बड़ियों के मुद्दे पर आलोक शुक्ला लगातार मुखरता से बोलते रहे हैं. उनका सरकारों पर सीधा आरोप है कि जब बात कॉरपोरेट परस्ती की आती है, तब सभी पार्टियों का रुख एक जैसा होता है.

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला से खास बातचीत


सवाल: जिनकी जमीन गयी आज वह लोग कहां है?


जवाब: छत्तीसगढ़ में खनन का मामला हो या फिर पूरे प्रदेश में पर्यावरण असंतुलन का मुद्दा. सवाल कई हैं लेकिन इनका जवाब नहीं मिलता, लोगों की आजीविका और उनका जो अस्तित्व है जो उनके जीवन का आधार है, जल, जंगल और जमीन उस पर लगातार हमला हो रहा है. सवाल यह है कि खनन परियोजनाएं में जिन आदिवासियों की या जिन लोगों की जमीन गई है आज वह कहां है? उनका कुछ पता नहीं चलता. सरकार एक भी ऐसा उदाहरण नहीं बता सकती जहां किसी विस्थापित व्यक्ति ने कहा हो कि उन्हें बढ़िया पुनर्वास मिला और उनका जीवन स्तर सुधरा है. पुनर्वास और विस्थापन के समस्याओं के कारण ही आज आदिवासी क्षेत्र के लोग अपनी जमीन नहीं देना चाहते.
लेकिन बावजूद उन पर कई तरह के हमले हो रहे हैं. ग्राम सभाओं को बायपास करके सरकार जमीनों को हथियाना चाहती है. हसदेव अरण्य के लोग लगातार एक दशक से लड़ रहे हैं. वह संगठित हैं और अपने संवैधानिक अधिकारों के लिए वह लगातार डटे हुए हैं. जिसके कारण वहां से ग्राम सभाओं का अनुमोदन नहीं हो पा रहा है.

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला से खास बातचीत
सवाल: आवंटन में क्या कोई गड़बड़ी हुई है ?


जवाब: हसदेव अरण्य क्षेत्र में आवंटित कोल ब्लॉक के आवंटन में कुल 20 कोल ब्लॉक को चिन्हित किया गया है. जिसमें से 7 का आवंटन सरकार ने कर दिया है. परसा केटेवासन और चोटिया का संचालन शुरू हो चुका है. जबकि मदनपुर साउथ, पतुरिया, गिधमुड़ी को अधिसूचित किया गया है. 2015 में सभी कोल ब्लॉक का आवंटन मोदी सरकार ने किया. इसके पहले इन सभी के आवंटन को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था. छत्तीसगढ़ के ज्यादातर इलाके पांचवी अनुसूची में आते हैं, पेसा कानून यहां पर लागू हैं. जिसके तहत आदिवासियों को वन अधिकार के साथ ही जंगल प्रबंधन का भी अधिकार मिलता है. पहले दिन से हम यह बात कह रहे हैं कि इसके लिए ग्राम सभाओं की अनुमति बेहद जरूरी है. ग्राम सभा के अनुमोदन के बिना किसी भी कोल ब्लॉक आवंटित नहीं किया जा सकता जबकि अधिकारियों ने फर्जी तरीके से कुछ कोल ब्लॉक का आवंटन जारी कर दिया है. फर्जी ग्राम सभा का सर्टिफिकेट जारी किया गया है. हम लगातार संघर्ष कर रहे हैं अगर जरूरत पड़ी तो कोर्ट भी जाएंगे.

सवाल: हाल ही में मंत्री टीएस सिंहदेव ने पेसा कानून के लिए जागरूकता अभियान शुरू किया था और आपके भी मधुर संबंध है.


जवाब: बात किसी एक मंत्री की नहीं है. जब परसा केटेवासन कोल ब्लॉक राजस्थान सरकार को दिया गया. तब 2011 में राजस्थान में गहलोत सरकार थी. केंद्र में मनमोहन सिंह थे और राज्य में रमन सिंह थे. लेकिन सभी ने मिलकर कोल ब्लॉक का आवंटन कर दिया. तो जब कॉरपोरेट के हितों की बात आती है, कॉर्पोरेट परस्ती की बात आती है तो सभी सरकारें एक जैसा काम करते हैं.

सवाल: छत्तीसगढ़ में भोले आदिवासियों को बरगलाने का भी आरोप है ?


जवाब: हमें संविधान यह इजाजत देता है कि किसी भी क्षेत्र में जाकर हम काम कर सकते हैं. अक्सर छत्तीसगढ़ में यह बात उठती है अंदर और बाहर की चर्चा होती है. गुजरात की कंपनी छत्तीसगढ़ में आकर खनन चालू करती है और गलत तरीके से जिला कलेक्टर ग्राम सभा का फर्जी सर्टिफिकेट जारी कर देते हैं. सरपंच कहते है कि जिस तारीख को ग्राम सभा का सर्टिफिकेट जारी किया जाना उल्लेख किया गया, उस तारीख को गांव में कोई सभा हुई ही नहीं है. इस तरह का फर्जीवाड़ा कर अधिकारी और कंपनी छत्तीसगढ़ के हो जाते हैं, जबकि हम जैसे एक्टिविस्ट जो संघर्ष कर रहे हैं. जल जंगल जमीन की लड़ाई लड़ रहे हैं. आदिवासियों को संवैधानिक अधिकार दिलाने का प्रयास कर रहे हैं. उन्हें बाहरी कहा जाता है.

बादल सरोज से जानिए किसान आंदोलन कब खत्म होगा

सवाल: जिन अधिकारियों ने ऐसा किया उनके नाम एक्सपोज क्यों नहीं करते?


जवाब: साल 2018 में सरगुजा कलेक्टर ने गलत सर्टिफिकेट जारी कर कोल ब्लॉक आवंटन किया. ग्रामीणों ने इसकी शिकायत की. हमने भी इसकी शिकायत की और FIR का मांग भी कर रहे हैं. इसके बावजूद कार्रवाई नहीं हो पा रही है. हमने नाम सहित शिकायत की है. कलेक्टर कोई व्यक्ति नहीं होता, वह स्थाई पद होता है. किसी कर्मचारी ने किसी कंपनी ने मिलीभगत कर ऐसा किया होगा, तो जो भी हो उस पर कार्रवाई होनी चाहिए.


सवाल: वर्तमान सरकार के कामकाज को किस तरह देखते है ?


जवाब: पिछले 15 सालों में हमें यह बात कहने में कोई गुरेज नहीं है कि रमन सरकार ने कॉरपोरेट एजेंट के तौर पर काम किया. वर्तमान सरकार से हमें उम्मीद है लेकिन जब विधानसभा में कांग्रेस सरकार यह कहती है कि हम आप ही के काम को आगे बढ़ा रहे हैं. तब निराशा होती है. जहां कांग्रेस सरकार ने कोल ब्लॉक आवंटन को एक बड़ा घोटाला बताया था. भ्रष्टाचार बताया था. उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी हसदेव अरण्य क्षेत्र में आए थे और आदिवासियों से ग्रामीणों से कहा था कि इस लड़ाई में हम आपके साथ हैं. बावजूद इसके छत्तीसगढ़ सरकार उनके साथ खड़ी दिखाई नहीं देती. जिस प्रक्रिया को निरस्त करना चाहिए. वह उसे आगे बढ़ाने की बात करते हैं. तब निराशा होती है. हालांकि दो साल में आंकलन नहीं किया जा सकता है. हमें अब भी सरकार से उम्मीद है कि वह कॉरपोरेट के साथ नहीं बल्कि लोगों के साथ खड़ी दिखाई देगी.

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