कोरबाः कोरोना काल में जिला अस्पताल प्रबंधन और पुलिस की खींचतान के कारण 6 दिन तक एक युवक का शव मरच्युरी में पड़ा रहा. परिजन शव का दाह संस्कार करने के लिए तरसते रहे और लगातार अस्पताल के चक्कर लगाते रहे. इस खबर को ETV भारत ने प्रमुखता से दिखाया था.
अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही के कारण गुरसिया का एक परिवार अपने परिजन के शव के लिए छह दिनों तक भटकता रहा. कोरोना जांच के बाद शव दिए जने की जानकारी के बाद मंगलवार यानी छठवें दिन शव को परिजन के सुपुर्द किया गया, लेकिन किसी तरह की जांच रिपोर्ट नहीं दी गई.
पुलिस और अस्पताल प्रबंधन के बीच कम्युनिकेशन गैप
कोरोना काल में मृतक के परिजनों के साथ अमानवीय व्यवहार किया गया. जिला अस्पताल के प्रबंधन ने खुद इस बात को स्वीकार किया है कि अस्पताल प्रबंधन और पुलिस के बीच कम्युनिकेशन गैप था. जिसके कारण परिजनों को शव नहीं दिया जा सका. डॉक्टरों ने कहा कि मृतक की कोई ट्रेवल हिस्ट्री नहीं होने के कारण उसका सैंपल लिया ही नहीं गया.
दूसरी तरफ पुलिस का कहना है कि सैंपल लिया गया था. इसलिए कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की गई. पुलिस और अस्पताल प्रबंधन के बीच कम्युनिकेशन गैप का खामियाजा मृतक के परिजनों को झेलना पड़ा. छठवें दिन रामपुर पुलिस चौकी से सब इंस्पेक्टर राजेश चंद्रवंशी अस्पताल पहुंचे. जिसके बाद अस्पताल प्रबंधन और पुलिस के बीच बातचीत हुई. बातचीत के बाद परिजनों को मृतक का शव मिला.
6 दिन पुराना है मामला
गुरसिया निवासी सुखराम यादव (35 वर्ष) की तबियत कुछ महीनों से खराब थी. 6 दिन पहले तबियत ज्यादा खराब होने पर मरीज को पोड़ी पीएचसी लाया गया, जहां से उसे जिला अस्पताल रेफर कर दिया गया. पोड़ी से कोरबा जिला अस्पताल लाते वक्त सुखराम की रास्ते में मौत हो गई. जहां डॉक्टरों ने जांच के बाद उसे मृत घोषित कर दिया.
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वहीं पोड़ी पीएचसी के दिए गए मेडिकल इंस्ट्रक्शन के मुताबिक उसे कोरोना संदिग्ध मानते हुए, उसके शव को मरच्युरी में रखकर कोरोना जांच के लिए सैंपल लेने की बात कही. दूसरे दिन डॉक्टरों की टीम मरच्युरी में सैंपल लेने गई थी, लेकिन शव का सैंपल लिया गया या नहीं इसकी पुष्टि नहीं हुई.