कोरबा: छत्तीसगढ़ में खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं है, जरूरत है तो बस इन प्रतिभाओं को ढूंढने की, इन्हें निखारने की और इनका हरसंभव मदद करने की. प्रदेश में ऐसे भी बच्चे हैं जो आर्थिक अभाव की वजह से अपना टैलेंट बाहर नहीं ला पाते और अगर किसी तरह उन्हें अपना जोनर दिखाने का मौका मिल भी जाए तो पर्याप्त संसाधन नहीं होने की वजह से पीछे रह जाते हैं.
कोरबा जिले के कटघोरा कसनिया गांव की दुर्गेश्वरी पटेल की कहानी भी कुछ इसी तरह है. दुर्गेश्वरी बहुत अच्छी साइकिलिस्ट है, लेकिन घर की आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से उसके पास अच्छी साइकिल नहीं है.
नेशनल साइकिलिंग प्रतियोगिता में चौथा स्थान
दुर्गेश्वरी ने उत्तराखंड के हल्द्वानी में हुए नेशनल साइकिलिंग प्रतियोगिता में भाग लिया था और चौथा स्थान प्राप्त किया. दुर्गेश्वरी का कहना है कि, 'साइकिल अच्छी होती तो मैं गोल्ड मेडल जरूर लाती.'
एक तरफ सरकार खेलो इंडिया का नारा भी देती है और दूसरी तरफ ग्रामीण क्षेत्रों में खेल प्रतिभा छिपी रह जाती है. खासकर ग्रामीण अंचल के खिलाड़ियों को सरकार की योजनाओं का लाभ आसानी से नहीं मिल पाता.
'बेटी की कोई कर दे मदद'
दुर्गेश्वरी की मां का कहना है कि, 'हम लोग बड़ी मुश्किल से साग-सब्जी बेचकर परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं, अगर सरकार या किसी अन्य संस्था हमारी बेटी को मदद देती है तो वह जरूर प्रदेश और देश का नाम रोशन करेगी.'
'शासन-प्रशासन ने नहीं दिया ध्यान'
दुर्गेश्वरी के साइकिलिंग कोच का कहना है कि, 'कटघोरा में 7-8 साल से साइकिलिंग के खिलाड़ी संस्था से कोचिंग ले रहे हैं, लेकिन सरकार से किसी भी खिलाड़ी को कभी मदद नहीं मिली और न ही किसी जिम्मेदार ने आज तक इस तरफ ध्यान दिया.'
कोच का कहना है कि, 'दुर्गेश्वरी बहुत ही मेहनती है. उसने उत्तराखंड में हुए नेशनल साइकिलिंग प्रतियोगिता में 40 किलोमीटर की रेस को एक घंटे दस मिनट में पूरा कर लिया, अगर उसके पास अच्छी साइकिल होती तो वह पहले या दूसरे स्थान पर जरूर आती.
सोचने वाली बात यह है कि सरकार युवाओं के विकास के लाख दावे करती है, लेकिन जमीनी स्तर पर इसकी सच्चाई कुछ और नजर आ रही है. शासन-प्रशासन को चाहिए कि प्रदेश के आखिरी छोर पर अभाव में जिंदगी जीने को मजबूर खिलाड़ियों की मदद करे, ताकि वो बेहतर प्रदर्शन कर प्रदेश और देश का मान बढ़ा सकें.