कोरबा : महिलाएं पुरुषों के साथ अब कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं. हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी (Chhattisgarh is moving ahead in women empowerment) है. वहीं घर से जुड़े अहम फैसलों में भी महिलाओं की रजामंदी अब जरुरी हो चली है. आज के दौर में घर से जुड़ी महिलाओं की हामी के बगैर परिवार से जुड़ा कोई भी फैसला मुमकिन नहीं है. महिला सशक्तिकरण की राह में ये एक मील के पत्थर जैसा है. महिलाएं लगातार सशक्त हो रही हैं. समाज में बढ़ती महिलाओं की हिस्सेदारी और महिला सशक्तिकरण को लेकर ईटीवी भारत ने समाज के अलग अलग क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं से बात की.
महिला सशक्तिकरण से जुड़े सर्वे के नतीजे(% में)
1. शादीशुदा महिलाएं जो परिवार से जुड़े कम से कम 3 अहम फैसलों में शामिल रहती हैं: साल 2015-16 में छत्तीसगढ़ में यह 91% था तो कोरबा में यह 93% रहा, साल 2019- 21 छत्तीसगढ़ में यह 91% रहा तो कोरबा में यह 96 % रहा
2. महिलाएं जिनके पास जिनके नाम पर बैंक अकाउंट है और वह उसे खुद अपडेट करती हैं:साल 2015-16 में यह छत्तीसगढ़ में 51% था तो कोरबा में यह 80% रहा , साल 2019- 21 छत्तीसगढ़ में यह 58% रहा तो कोरबा में यह 75 % रहा
3. महिलाएं जिनके पास खुद का मोबाइल फोन है और वह उसे खुद ही इस्तेमाल करती हैं:साल 2015-16 में यह छत्तीसगढ़ में 31% रहा तो कोरबा में यह 41% रहा, साल 2019- 21 में यह छत्तीसगढ़ में 35% रहा तो कोरबा में यह 49 % रहा
4. 15 से 24 आयु वर्ग की महिलाएं जो माहवारी के समय सुरक्षा के लिए स्वच्छ साधनों का उपयोग करती हैं:साल 2015-16 में छत्तीसगढ़ में 47% रहा तो कोरबा में यह 69% रहा , साल 2019- 21 में छत्तीसगढ़-45% रहा तो कोरबा में यह 65 % रहा
घर और बाहर दोनों स्थानों पर उत्कृष्ट काम : महिला सशक्तिकरण के बारे में आधुनिक युग की जिम ट्रेनर नेहा चौधरी कहती हैं कि "आज के जमाने में महिला घर और बाहर दोनों स्थानों पर तालमेल बैठाकर बेहतर काम कर रही हैं. महिलाएं आज की मांग के अनुसार ही काम कर रही हैं. वह अपने और घर के अहम फैसले ले रही हैं.अब किसी क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों से पीछे नहीं हैं. यह बात जरूर है कि गांव में जागरूकता थोड़ी कम है. लेकिन अब ग्रामीण महिला समिति जरूर है. लेकिन अब वहां भी बदलाव आ रहा वहां से सुधार हो रहा है".
घर के फैसले लेना तो दूर बताया भी नहीं जाता था : सामाजिक कार्यकर्ता सुधा झा कहती हैं कि "पुराने जमाने में तो संयुक्त परिवार रहते थे. महिलाओं को घर के फैसले लेना तो दूर, उन्हें बताया ही नहीं जाता था. लेकिन आज बात बदल चुकी है. केंद्र हो या राज्य सरकार. महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए कई तरह की योजनाएं चल रही हैं. जोकि बेहद महत्वपूर्ण है और खास तौर पर हमारे देश के लिए यह विकास का प्रमुख सोपान है. महिलाएं आत्मनिर्भर हो रही हैं.अपने आप को शिक्षित कर रही हैं. वह किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं. हर क्षेत्र में महिलाएं आगे हैं, राजनीति के क्षेत्र में भी खासी महिलाएं सक्रिय हैं".
शिक्षा का स्तर बढ़ा इससे महिलाएं हुई सशक्त : बाल कल्याण समिति की पूर्व सदस्य और वरिष्ठ अधिवक्ता मधु पांडे का कहना है कि "महिलाओं में शिक्षा का स्तर तेजी से बढ़ा है. खासतौर पर कोरबा औद्योगिक जिला है. जहां अधिकारियों की पत्नियां पढ़ी लिखी रहती हैं. चारों तरफ से जागरूकता हो रही है. महिलाएं शिक्षित हैं, इसलिए वह घर का निर्णय लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं. जब महिलाएं निर्णय लेती हैं, तब परिवार उन्नति करता है. महिलाओं के विषय मे यह आंकड़ा दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है. कोरबा में शिक्षा का स्तर काफी बेहतर है. गांव में भी समूह के माध्यम से जो काम हुआ है. वह प्रशंसनीय है, इसके कारण गांव की महिलाएं भी अब सशक्त हो रही हैं. वह आत्मनिर्भर बन रही हैं.
सरकारों के प्रयास अब लाने लगे रंग : राज्य महिला आयोग की सदस्य अर्चना उपाध्याय का कहना है कि ''महिलाएं अब समूह चला रही हैं. वह लगातार आगे बढ़ रही हैं. समूह के माध्यम से उन्हें स्वरोजगार से जोड़ा जा रहा है.महिला सशक्तिकरण के लिए महिलाएं आगे आकर अपने ग्रुप में जाकर वहां लीडरशिप कर रही हैं. अच्छा लग रहा है, जब वह आगे बढ़ रही हैं. उनका डिसीजन पावर लगातार बढ़ रहा है. हमारे युग की महिलाएं बधाई की पात्र हैं. अब महिलाएं अपने दायरे से बाहर निकलकर काम कर रहीं हैं. वह कहीं भी किसी भी तरह के फैसले लेने में पीछे नहीं हैं. खासतौर पर गांव में भी अब पढ़ी लिखी महिला पत्राचार करने में सक्षम है. वो दिन अब नहीं रहे, जब किसी पत्र को पढ़ने के लिए महिला दूसरों की सहायता लेती थी.''