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कोरबा : बदलती आबोहवा से रूठे 'विदेशी मेहमान', लगातार कम हो रही है संख्या - कनकी धाम कोरबा

कोरबा में एक समय कई प्रजातियों के पक्षी आते थे, लेकिन बदलते वातावरण के चलते इनकी संख्या लगातार कम होती जा रही है, जो चिंता का विषय है.

रूठे 'विदेशी मेहमान'
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Published : Nov 12, 2019, 9:16 PM IST

कोरबा : एक वक्त था जब भारत में अक्टूबर से नवंबर उमंग और खुशियों भरा होता था. क्योंकि इन दो महीनों में कई पर्व त्योहार मनाये जाते हैं. लेकिन बीते एक दशक में इंसानों की यहीं उत्सव और उमंग अब कष्टदायी हो चला है. हर वर्ष बढ़ते प्रदूषण ने इंसानों के साथ अन्य जीवों के सामने जिंदा रहने का संकट खड़ा कर दिया. बताते हैं, छत्तीसगढ़ के कोरबा में एक दशक पहले तक हजारों की संख्या में विदेशी पक्षी नवंबर में प्रवास पर आते थे, लेकिन बीते 10 साल में यहां की हवा इतनी प्रदूषित होते चली गई कि, यहां आने वाली पक्षियों की प्रजाति 15 से घटकर पांच रह गई. इन प्रजातियों में भी इस साल अभी तक महज एक-दो पक्षी ही कोरबा पहुंचे हैं.

बदलती आबोहवा से रूठे विदेशी मेहमान

हर साल बरसात के ठीक बाद सारस प्रजाति का साइबेरियन ओपन बिल्ड स्टोर्क बर्ड्स कोरबा के कनकेश्वर धाम कनकी पहुंचते थे. ये पक्षी यहां प्रवास के दौरान प्रजनन के बाद अपने परिवार के साथ वापस साइबेरिया लौट जाते थे, लेकिन 2010 के बाद से कोरबा आने वाले साइबेरियन पक्षियों की संख्या में लगातार गिरावट आई है. जिला विज्ञान सभा की सदस्य और केन कॉलेज में प्राणी शास्त्र की सहायक प्राध्यापक प्रोफेसर निधि सिंह बताती हैं. मौसम में लगातार हो रहे बदलाव के कारण पक्षियों की संख्या घटी है.

कनकी धाम के मुख्य पुरोहित रहे पुरुषोत्तम बताते हैं, उनकी 17 पीढ़ियों यहां मंदिर की सेवा की है और तभी से साइबेरियन पक्षी यहां आ रहे हैं, लेकिन बीते कुछ सालों में उनकी संख्या घटी. आसपास के लोग साइबेरियन पक्षी को देवदूत मानते हैं और इनके आने को आर्थिक समृद्धि से भी जोड़कर देखते हैं. मान्यता है कि जिस साल प्रवासी पक्षियों की संख्या ज्यादा होती है उस साल फसलें अच्छी होती है.

पढ़ें- राष्ट्रीय पक्षी दिवस: प्रकृति से हमने ऐसा मजाक किया कि रूठ गए पक्षी, नहीं सुनाई दे रहा कलरव

बीते दो दशकों में इंसानों ने जो किया है. उसका खामियाजा आज पूरी दुनिया के सभी प्रजातियों के प्राणियों को भुगतना पड़ रहा है. हालात बेहद खराब हो चले हैं पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था ग्रीनपीस के रिपोर्ट के मुताबिक प्रदूषण फैलाने के मामले में कोरबा विश्व में 17वें पायदान पर है. रिपोर्ट के मुताबिक कोयला आधारित बिजली संयंत्र इस तरह के प्रदूषण के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार है. अगर वक्त रहते इसके लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाये गए तो हालात बद से बदतर हो सकते हैं. अभी पक्षियों का आना कम हुआ है. यहीं हालात रहे तो कहीं इंसान भी अपने ही फैलाये धुंए और धुंध में खोकर न रह जाए.

कोरबा : एक वक्त था जब भारत में अक्टूबर से नवंबर उमंग और खुशियों भरा होता था. क्योंकि इन दो महीनों में कई पर्व त्योहार मनाये जाते हैं. लेकिन बीते एक दशक में इंसानों की यहीं उत्सव और उमंग अब कष्टदायी हो चला है. हर वर्ष बढ़ते प्रदूषण ने इंसानों के साथ अन्य जीवों के सामने जिंदा रहने का संकट खड़ा कर दिया. बताते हैं, छत्तीसगढ़ के कोरबा में एक दशक पहले तक हजारों की संख्या में विदेशी पक्षी नवंबर में प्रवास पर आते थे, लेकिन बीते 10 साल में यहां की हवा इतनी प्रदूषित होते चली गई कि, यहां आने वाली पक्षियों की प्रजाति 15 से घटकर पांच रह गई. इन प्रजातियों में भी इस साल अभी तक महज एक-दो पक्षी ही कोरबा पहुंचे हैं.

बदलती आबोहवा से रूठे विदेशी मेहमान

हर साल बरसात के ठीक बाद सारस प्रजाति का साइबेरियन ओपन बिल्ड स्टोर्क बर्ड्स कोरबा के कनकेश्वर धाम कनकी पहुंचते थे. ये पक्षी यहां प्रवास के दौरान प्रजनन के बाद अपने परिवार के साथ वापस साइबेरिया लौट जाते थे, लेकिन 2010 के बाद से कोरबा आने वाले साइबेरियन पक्षियों की संख्या में लगातार गिरावट आई है. जिला विज्ञान सभा की सदस्य और केन कॉलेज में प्राणी शास्त्र की सहायक प्राध्यापक प्रोफेसर निधि सिंह बताती हैं. मौसम में लगातार हो रहे बदलाव के कारण पक्षियों की संख्या घटी है.

कनकी धाम के मुख्य पुरोहित रहे पुरुषोत्तम बताते हैं, उनकी 17 पीढ़ियों यहां मंदिर की सेवा की है और तभी से साइबेरियन पक्षी यहां आ रहे हैं, लेकिन बीते कुछ सालों में उनकी संख्या घटी. आसपास के लोग साइबेरियन पक्षी को देवदूत मानते हैं और इनके आने को आर्थिक समृद्धि से भी जोड़कर देखते हैं. मान्यता है कि जिस साल प्रवासी पक्षियों की संख्या ज्यादा होती है उस साल फसलें अच्छी होती है.

पढ़ें- राष्ट्रीय पक्षी दिवस: प्रकृति से हमने ऐसा मजाक किया कि रूठ गए पक्षी, नहीं सुनाई दे रहा कलरव

बीते दो दशकों में इंसानों ने जो किया है. उसका खामियाजा आज पूरी दुनिया के सभी प्रजातियों के प्राणियों को भुगतना पड़ रहा है. हालात बेहद खराब हो चले हैं पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था ग्रीनपीस के रिपोर्ट के मुताबिक प्रदूषण फैलाने के मामले में कोरबा विश्व में 17वें पायदान पर है. रिपोर्ट के मुताबिक कोयला आधारित बिजली संयंत्र इस तरह के प्रदूषण के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार है. अगर वक्त रहते इसके लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाये गए तो हालात बद से बदतर हो सकते हैं. अभी पक्षियों का आना कम हुआ है. यहीं हालात रहे तो कहीं इंसान भी अपने ही फैलाये धुंए और धुंध में खोकर न रह जाए.

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