कोरबाः जिले के हितग्राहियों को पीएम आवास योजना (PM Awas yojna) के तहत मिलने वाली किस्त की राशि नहीं मिल पा रही है. पिछले 2 सालों से हितग्राहियों के मकान अधूरा पड़े हैं. कुछ हितग्राहियों को पहली और दूसरी किस्त की राशि मिली है लेकिन कई ऐसे भी हैं जिन्हें योजना की एक भी किस्त नहीं मिली है. या यूं कहें कि 4 किस्तों में मिलने वाली सहायता राशि रोक दी गई है.
नगर निगम कोरबा (Municipal Corporation Korba) के अलग-अलग वार्डों (Ward) में तकरीबन दो सालों से लोगों के घर आधे बने है. पैसों की कमी के कारण ग्रामीणों (villagers) के घरों का निर्माण नहीं हो पा रहा है. प्रधानमंत्री आवास योजना (PM Awas Yojana) के तहत 2 साल पहले जिस मकान की नींव रखी गई थी. वह अब तक अधूरा पड़ा है. पहले तो सरकार ने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत '2022 तक सबको पक्का मकान' देने के स्लोगन के साथ ग्रामीणों को वादा किया था. केन्द्र सरकार (Central government) के स्कीम की शुरुआत के बाद लोगों को कहा गया कि वो अपने पुराने घरों को तोड़ दें, जिसके बाद सरकार द्वारा उन्हें पीएम आवास योजना (PM Awas Yojana) के तहत 2 लाख 25 हजार की सहायता राशि प्रदान की जाएगी.
आधी-अधूरी आई लोगों की किस्त
जिसके बाद ग्रामीणों ने घरों को तोड़ दिया. कुछ दिन बाद लोगों के खाते में पहली किस्त आई. उसके बाद राशि आई ही नहीं. ऐसे में ग्रामीण अधूरे घरों के पास अपने पुराने टूटे-फूटे घर में रहने को मजबूर हैं. बताया जा रहा है कि पीएम आवास योजना के तहत हितग्राहियों को 4 किस्तों में मिलने वाली सहायता राशि रोक दी गई है. कुछ को 1, किसी को 2, तो कुछ भाग्यशाली हितग्राहियों को 3 किस्त ही मिली है. यही कारण है कि लोग आधे-अधूरे घरों को बनाकर ही रह गये. उनके पास इतनी राशि ही नहीं है कि वो अपने अधूरे घर को पूरा कर पाये. ऐसे में मजबूर ग्रामीण आंधी-तूफान और बारिश में भी टूटे-फूटे घरों में रहने को मजबूर हैं.
केन्द्र और राज्य सरकार के झगड़े में पिस रहे लोग
ऐसे में अब सवाल ये उठता है कि आखिरकार वादा करके सरकार ने पैसा क्यों नहीं दिया. जब ETV भारत ने लोगों से इस विषय में बातें की तो उनका कहना है कि केन्द्र और राज्य सरकार के बीच चल रही अनबन के कारण ये सब हो रहा है. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है. कांग्रेस ने इस विषय में बताया कि केन्द्र की ओर से राज्य सरकार को राशि ही नहीं मुहैया की गई तो वो आखिरकार कैसे ग्रामीणोें को सारी किस्तों की राशि का भुगतान करेंगे.हालांकि केन्द्र सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि राज्य सरकार को पैसे दे दिये गये हैं. यानी कि आम लोगों को केन्द्र और राज्य सरकार के झगड़े के कारण ये तकलीफें झेलनी पड़ रही है.
रहने के लिए घर ही नहीं बचा
नगर पालिक निगम के वार्ड संख्या 47 जमनीपाली की निचली बस्ती में रहने वाले सुराजी दास ने ETV भारत से खास बातचीत के दौरान बताया कि 2 साल पहले पीएम आवास के तहत घर का निर्माण शुरू हुआ था. तब से लेकर अब तक केवल एक क़िस्त की राशि ही मिली है. आवास मित्र ने कहा था कि नींव से छज्जा लेवल तक निर्माण पूरा होने के बाद दूसरी किस्त मिल जाएगी, जो कि आज नहीं मिली है. इसी तरीके से अन्य ग्रामीणों ने भी यही बातें कही.
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कर्ज लेकर निर्माण किया पूरा अब देनदार कर रहा है परेशान
इधर, निगम क्षेत्र में वार्ड संख्या 48 सुमेधा के निवासी हरि दास महंत कहते हैं कि 2 साल पहले पीएम आवास के तहत मेरे नाम पर आवास स्वीकृत हुआ. इसका निर्माण जोर-शोर से शुरू किया गया. लेकिन जब छत ढलाई की बारी आई. तब किस्त आनी बंद हो गई. आवास मित्र से जब इसके बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि किसी कारण से राशि अटका पड़ा है, मिल जाएगा. ऐसे में हमने उधार लेकर घर बनाया. लेकिन किस्त न आने के कारण कर्ज देने वाले भी घर आकर बुरा-भला बोल जाते हैं.
कांग्रेस और भाजपा में आरोप-प्रत्यारोप
वहीं, जब ETV भारत ने नगर पालिक निगम कोरबा के मेयर राजकिशोर प्रसाद से इस विषय में बातचीत की, तब उन्होंने बताया कि पीएम आवास योजना में राशि सीधे केंद्र सरकार से आती है. वही राशि रुकी हुई है, जिसके कारण गरीबों को दिक्कत हो रही है. जिसके कारण वह अपने मकान का निर्माण पूरा नहीं करा पा रहे हैं. राज्य ने अपनी तरफ से सारी व्यवस्थाएं दे दी हैं. लेकिन केंद्र जब तक पैसा नहीं दे देती, उन्हें क़िस्त जारी नहीं किया जा सकता. इसके लिए लगातार हम पत्राचार भी कर रहे हैं. इसके इत्तर भाजपाइयों का कहना है कि केंद्र सरकार ने पैसे राज्य सरकार को आवंटित कर दिए हैं. लेकिन अब राज्य सरकार ने इन पैसों को रोककर रखी है. यह केंद्र सरकार को बदनाम करने की साजिश है.
योजनाएं महज योजना बनकर रह जाती है
यानी कि कुल मिलाकर ग्रामीणों को दोनों सरकार के बीच के झगड़े में पिसना पड़ रहा है. कई ग्रामीणों ने कर्ज ले रखा है, जिसे चुका पाना उनके लिए संभव नहीं है. ऐसे में साफ है कि आम लोगों के लिए बनायी गई योजनाएं महज अखबारों और विज्ञापनों तक ही सीमित होता है. इसका लाभ लोगों को किस तरीके से मिलता है, ये तो कोरबा के ग्रामीणों की दशा साफ बता रही है.