कोरबा: वन विभाग ने 27 मई को जिला मुख्यालय कोरबा से 35 किलोमीटर दूर सोहगपुर गांव से एक मादा अजगर का रेस्क्यू किया था. जिसके बाद करीब 2 महीने तक विभाग ने अगर को अपनी निगरानी रखा. मादा अजगर अपने अंडों के साथ वन विभाग को मिला था. विभाग अजगर के 14 अंडों के साथ लेकर कोरबा आई थी.
वन विभाग ने पिछले 2 महीने तक इस मादा अजगर की देखभाल की है, मादा अजगर अपने अंडों को लेकर काफी आक्रामक थी. जिसके बाद विभाग ने अजगर को रखने के लिए एक अलग से जगह बनाई. लिहाजा 67 दिन तक अजगर की देखभाल करने के बाद उसके 14 अंडों में से 11 बच्चे बाहर निकल आए हैं, जबकि 4 अंडे अभी अविकसित रहे हैं. मादा अजगर के यह बच्चे आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं. साथ इसकी देखभाल करना वन विभाग के लिए एक चुनौती बना हुआ है.
ऐसे की गई देखभाल
मादा अजगर को अंडों के साथ कोरबा लाने के बाद इसकी देखभाल की जिम्मेदारी रेस्क्यू टीम प्रमुख वन विभाग सदस्य जितेंद्र सारथी को सौंपी गई थी. यह कोरबा जिला का पहला मामला है जहां एक अजगर को रख कर उसकी देखभाल की गई है. कोरबा डीएफओ प्रियंका पाण्डेय ने भी इस मामले में विशेष रुचि ली थी. अब मादा अजगर के बच्चे अंडों से बाहर आ गए हैं जिसे लेकर डीएफओ ने कहा, 'यह बड़ा चैलेंज था जिसमें हम सफल रहे. इसमें कोरबा के सर्प मित्र दल जितेंद्र सारथी और उनकी टीम की अहम भूमिका रही. साथ ही कोरबा वन मण्डल के सभी कर्मचारियों ने अपनी भूमिका बखूबी निभाई है. 2 महीने तक अंडे सहित मादा अजगर की देखभाल करने के बाद अब हमने सभी को जंगल में आजाद कर दिया है.'
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ऐसे बनाया गया मादा अजगर के लिए घर
कोरबा लाने का बाद मादा अजगर के लिए एक घर बनाया गया. इसके लिए एक कमरे को प्राकृतिक रूप देने के लिए कमरे में मिट्टी रखी गई. जिसके ऊपर पैरा बिछाया गया. इसके साथ ही अजगर के लिए एक बड़े से घड़े में पानी रखा गया ताकि प्यास लगने पर वह अपनी प्यास बुझा सके. हालांकि अजगर अपने अंडो से बच्चे निकलते तक कुछ खाते पीते नहीं हैं. इस विषय का भी ध्यान दिया गया. कमरे का तापमान अंडों के लिए सही रहे इसके लिए लाइट के जरिए गर्माहट का खास ध्यान रखा गया. इसके बाद मादा अजगर ने अपने अंडो को सुरक्षा घेरे में लेकर बैठ गई और इन्हें सेकने लगी थी.