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ग्रामीणों के लिए 'वरदान' हैं वनोपज, इन्हीं से चलती है आजीविका

वनोपज पर निर्भर रहने वाले ग्रामीण आदिवासी इन दिनों तेंदूपत्ता, टोरी और चिरौंजी सहित साल बीज के संग्रहण में व्यस्त हैं. जिसकी खरीदी बिक्री के लिए वन विभाग ने समिति के माध्यम से अनेक गांवों में केंद्र खोलना निर्धारित किया है.

Villagers are collecting forest produce
वनोपज के संग्रहण में जुटे ग्रामीण
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Published : Jun 5, 2020, 2:32 PM IST

कोंडागांव: वनांचल क्षेत्रों में रहने वाले ग्रामीण आदिवासी अपनी आजीविका के लिए ज्यादातर वनों पर ही निर्भर रहते हैं. ग्रामीण हमेशा ही कुछ न कुछ वनोपज का संग्रहण कर जीविकोपार्जन करते हैं.

Villagers are collecting forest produce
वनोपज के संग्रहण में जुटे ग्रामीण

इनमें मुख्य रूप से तेंदूपत्ता, महुआ, टोरी, साल बीज, तुलसा, चिरौंजी, इमली के अलावा तरह-तरह की जड़ी बूटियां एकत्रित कर अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत बनाते हैं.

वनोपज के संग्रहण में जुटे ग्रामीण

इन दिनों ग्रामीण तेंदूपत्ता, टोरी और चिरौंजी सहित साल बीज के संग्रहण में व्यस्त हैं. तेंदूपत्ता और चिरौंजी का सीजन अंतिम चरण में पहुंच चुका है. ऐसे समय में आंधी और तेज हवा से पेड़ से साल बीज गिरना शुरू हो गया है.

वनोपज को बेचने के लिए करते हैं तैयार

ग्रामीण सुबह-शाम साल बीज चुनने में व्यस्त हैं. जिसे जलाकर और सुखाकर दला जाता है और साफ कर आवश्यक प्रक्रिया पूरी करने के बाद ग्रामीण इसे बिक्री के लिए तैयार करते हैं.

गांवों में खुले खरीदी केंद्र

वन विभाग ने समिति के माध्यम से अनेक गांवों में केंद्र खोलने के लिए निर्धारित किया है. संबंधित गांव के ग्रामीण इन खरीदी केंद्रों में समर्थन मूल्य पर साल बीज की बिक्री कर सकेंगे.

समर्थन मूल्य में बिक्री

शासन के निर्देशानुसार वन विभाग समिति के माध्यम से साल बीज की खरीदी करेगा. निर्धारित अवधि में संग्राहकों से समर्थन मूल्य 20 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बीज खरीदी की जाएगी और इसका भुगतान समय-सीमा में किया जाएगा.

वनोपज पर निर्भर ग्रामीण

बता दें कि क्षेत्र के आदिवासी ग्रामीणों के लिए वनों में मिलने वाले कई तरह के वनोपज वरदान साबित होते हैं. खरीफ और रबी की फसल अंतिम चरण पर पहुंचने के बाद क्षेत्र के आदिवासी मजदूर अपने परिवार, बच्चों के पालन-पोषण के लिए वनोपज पर निर्भर रहते हैं.

तेंदूपत्ता और साल बीज का उत्पादन

इस मौसम में ही महुआ, चिरौंजी, तेंदूपत्ता, टोरी और साल बीज जैसे वनोपज का उत्पादन होता है. ग्रामीण इन वनोपज को बड़े उत्साह से चुनते हैं. गर्मी के मौसम में इन्हें जंगलों से वनोपज निःशुल्क मिल जाता है.

इसकी बिक्री कर प्राप्त होने वाली रकम से उनके कृषि कार्य, परिवार की जरूरतों और बच्चों की पढ़ाई में होने वाले खर्च सहित अनेक जरूरी कार्य की पूर्ति होती है. यही कारण है कि जितनी भी तपती दोपहरी हो, ग्रामीण परिवार सहित वनोपज का संग्रहण करने निकल जाते हैं.

समिति के माध्यम से केंद्र का निर्माण

वन विभाग फरसगांव के एसडीओ वरुण जैन ने बताया कि क्षेत्र में साल बीच खरीदी के लिए समिति के माध्यम से केंद्र बनाया गया है. जहां संग्रहणकर्ता साल बीज ला कर विक्रय कर सकते हैं.

व्यापारियों से भी कर सकते हैं खरीदी

शासन के प्रस्तावित समर्थन मूल्य के अनुरूप 20 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से खरीदी की जाएगी. इसके अतिरिक्त व्यापारियों के खुले बाजार में भी समर्थन मूल्य से अधिक पर साल बीज खरीदी कर सकते हैं. समर्थन मूल्य से कम दर पर खरीदी होने की स्थिति में शिकायत के आधार पर व्यापारियों पर उचित कार्रवाई भी की जाएगी.

क्षेत्र के साप्ताहिक बाजारों में जहां महुआ, टोरी, इमली सहित अनेक वनोपज व्यापारी और कोचि सैकड़ों क्विंटल की खरीदी बिक्री करते हैं. लेकिन क्षेत्र में ऐसे भी गांव हैं, जहां साल बीज खरीदी केंद्र नहीं होने से ग्रामीण कम कीमत पर व्यापारियों को बिक्री करने पर मजबूर हो जाते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि यहां विभागीय खरीदी होनी चाहिए, जिससे संग्राहकों को उचित कीमत मिल सके.

कोंडागांव: वनांचल क्षेत्रों में रहने वाले ग्रामीण आदिवासी अपनी आजीविका के लिए ज्यादातर वनों पर ही निर्भर रहते हैं. ग्रामीण हमेशा ही कुछ न कुछ वनोपज का संग्रहण कर जीविकोपार्जन करते हैं.

Villagers are collecting forest produce
वनोपज के संग्रहण में जुटे ग्रामीण

इनमें मुख्य रूप से तेंदूपत्ता, महुआ, टोरी, साल बीज, तुलसा, चिरौंजी, इमली के अलावा तरह-तरह की जड़ी बूटियां एकत्रित कर अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत बनाते हैं.

वनोपज के संग्रहण में जुटे ग्रामीण

इन दिनों ग्रामीण तेंदूपत्ता, टोरी और चिरौंजी सहित साल बीज के संग्रहण में व्यस्त हैं. तेंदूपत्ता और चिरौंजी का सीजन अंतिम चरण में पहुंच चुका है. ऐसे समय में आंधी और तेज हवा से पेड़ से साल बीज गिरना शुरू हो गया है.

वनोपज को बेचने के लिए करते हैं तैयार

ग्रामीण सुबह-शाम साल बीज चुनने में व्यस्त हैं. जिसे जलाकर और सुखाकर दला जाता है और साफ कर आवश्यक प्रक्रिया पूरी करने के बाद ग्रामीण इसे बिक्री के लिए तैयार करते हैं.

गांवों में खुले खरीदी केंद्र

वन विभाग ने समिति के माध्यम से अनेक गांवों में केंद्र खोलने के लिए निर्धारित किया है. संबंधित गांव के ग्रामीण इन खरीदी केंद्रों में समर्थन मूल्य पर साल बीज की बिक्री कर सकेंगे.

समर्थन मूल्य में बिक्री

शासन के निर्देशानुसार वन विभाग समिति के माध्यम से साल बीज की खरीदी करेगा. निर्धारित अवधि में संग्राहकों से समर्थन मूल्य 20 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बीज खरीदी की जाएगी और इसका भुगतान समय-सीमा में किया जाएगा.

वनोपज पर निर्भर ग्रामीण

बता दें कि क्षेत्र के आदिवासी ग्रामीणों के लिए वनों में मिलने वाले कई तरह के वनोपज वरदान साबित होते हैं. खरीफ और रबी की फसल अंतिम चरण पर पहुंचने के बाद क्षेत्र के आदिवासी मजदूर अपने परिवार, बच्चों के पालन-पोषण के लिए वनोपज पर निर्भर रहते हैं.

तेंदूपत्ता और साल बीज का उत्पादन

इस मौसम में ही महुआ, चिरौंजी, तेंदूपत्ता, टोरी और साल बीज जैसे वनोपज का उत्पादन होता है. ग्रामीण इन वनोपज को बड़े उत्साह से चुनते हैं. गर्मी के मौसम में इन्हें जंगलों से वनोपज निःशुल्क मिल जाता है.

इसकी बिक्री कर प्राप्त होने वाली रकम से उनके कृषि कार्य, परिवार की जरूरतों और बच्चों की पढ़ाई में होने वाले खर्च सहित अनेक जरूरी कार्य की पूर्ति होती है. यही कारण है कि जितनी भी तपती दोपहरी हो, ग्रामीण परिवार सहित वनोपज का संग्रहण करने निकल जाते हैं.

समिति के माध्यम से केंद्र का निर्माण

वन विभाग फरसगांव के एसडीओ वरुण जैन ने बताया कि क्षेत्र में साल बीच खरीदी के लिए समिति के माध्यम से केंद्र बनाया गया है. जहां संग्रहणकर्ता साल बीज ला कर विक्रय कर सकते हैं.

व्यापारियों से भी कर सकते हैं खरीदी

शासन के प्रस्तावित समर्थन मूल्य के अनुरूप 20 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से खरीदी की जाएगी. इसके अतिरिक्त व्यापारियों के खुले बाजार में भी समर्थन मूल्य से अधिक पर साल बीज खरीदी कर सकते हैं. समर्थन मूल्य से कम दर पर खरीदी होने की स्थिति में शिकायत के आधार पर व्यापारियों पर उचित कार्रवाई भी की जाएगी.

क्षेत्र के साप्ताहिक बाजारों में जहां महुआ, टोरी, इमली सहित अनेक वनोपज व्यापारी और कोचि सैकड़ों क्विंटल की खरीदी बिक्री करते हैं. लेकिन क्षेत्र में ऐसे भी गांव हैं, जहां साल बीज खरीदी केंद्र नहीं होने से ग्रामीण कम कीमत पर व्यापारियों को बिक्री करने पर मजबूर हो जाते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि यहां विभागीय खरीदी होनी चाहिए, जिससे संग्राहकों को उचित कीमत मिल सके.

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