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नक्सलगढ़ में आई वंदे भारत ट्रेन, जानिए क्यों हो रही ये जगह फेमस ?

Vande Bharat train arrived in Naxalgarh Tarandul कांकेर के तरांदुल में एक स्कूल को ट्रेन की शक्ल दिया गया है. स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को अब लगता है कि वो किसी ट्रेन के अंदर बैठकर पढ़ाई कर रहे हैं. इसी वजह से अब ये स्कूल लोगों के बीच चर्चा का विषय बन चुका है.

kanker vandebharat train
कांकेर में वंदे भारत ट्रेन वाली स्कूल
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Dec 12, 2023, 7:43 PM IST

नक्सलगढ़ में आई वंदे भारत ट्रेन

कांकेर : बच्चे अक्सर पढ़ने लिखने से ज्यादा खेलकूद में ध्यान देते हैं.जिसके बाद शिक्षा के दौरान खेलकूद को शामिल करना अनिवार्य हुआ. ऐसा माना जाता है कि छोटे बच्चों को किताबों में लिखी गई बातों को यदि समझाना है,तो सबसे अच्छा तरीका उस चीज का प्रैक्टिकल करना होता है. क्योंकि बच्चों को खेल-खेल में चीजों को समझाना काफी आसान होता है.ऐसा ही एक एक्सपेरिमेंट कांकेर के तरांदुल गांव के हायर सेकंडरी स्कूल में किया गया है.जहां स्कूल के क्लास रूम को वंदे भारत ट्रेन का रूप दिया गया है.इस जगह को देखने पर अब ऐसा लगता है मानों बच्चे किसी ट्रेन के अंदर बैठकर पढ़ाई कर रहे हो.

पोटाकेबिन से अब बना वंदे भारत ट्रेन स्कूल : तरांदुल हाईस्कूल के प्राचार्य चंद्रकांत साहू के मुताबिक 2011 में हाईस्कूल खुला. लेकिन नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण यहां स्कूल भवन बनाने के लिए कोई भी ठेकेदार तैयार नहीं था. 2015 में यहां पोटाकेबिन स्कूल भवन (बांस का भवन) बनाया गया.वहीं स्कूल में पढ़ने वाले अंदरूनी गांव के छात्रों ने ट्रेन की सवारी तो दूर कभी ट्रेन भी नहीं देखी थी. पाठ्यक्रम में ट्रेन के बारे में पढ़ने के दौरान छात्रों ने शिक्षक को ट्रेन दिखाने के लिए कहा.इसके बाद शिक्षकों ने स्कूल को ही ट्रेन का रूप देने का फैसला किया. स्कूल भवन के प्रिंसिपल भवन को इंजन तो इसके पीछे बनीं क्लास रूम को बोगियों की तरह बनाया गया.जिससे अब स्कूल पूरे क्षेत्र में फेमस हो गया है.


बच्चों को ट्रेन के बारे में बताने का आसान तरीका : स्कूल के शिक्षक प्रदीप सेन के मुताबिक हम लोग शिक्षक हैं.कहीं ना कहीं ट्रेनिंग में बाहर जाते हैं. साथ ही हम जब बच्चों को पढ़ाते हैं. ट्रेन का एक शब्द आ जाता है तो बच्चों के दिमाग में यहां ट्रेन शब्द आने से वह हमसे सवाल करते हैं कैसा होता है क्या होता है. यहां पूछते हैं बस तो देखे हैं लेकिन ट्रेन 90 प्रतिशत बच्चे लोग नहीं देखे हैं. क्योंकि ये एक संवेदनशील क्षेत्र है. यहां से जिला मुख्यालय 15 से 20 किलोमीटर दूर है. 80 प्रतिशत बच्चे जिला मुख्यालय नहीं देखे होंगे. 60 प्रतिशत बच्चे ब्लॉक मुख्यालय नहीं देखे. इसलिए स्कूल के स्टाफ ने बच्चों के सवालों से प्रेरित होकर कलाकृति के माध्यम से स्कूल भवन को ही ट्रेन का स्वरूप दे दिया.जिसमें एक पुराने जमाने की ट्रेन है, वहीं दूसरा नए जमाने की वंदे भारत ट्रेन है.

ट्रेन वाले स्कूल के बच्चे :वहीं इस स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के माता पिता भी इस प्रयोग से काफी खुश हैं.लोगों को लग रहा है कि उनके गांव में ट्रेन आ गई है. वहीं स्कूली बच्चों ने कहा कि हमे ऐसा लगता है कि हम ट्रेन की बोगियों में बैठकर पढ़ाई कर रहे हैं. जब स्कूल के लिए निकलते है तो पालक भी बोलते हैं. ट्रेन वाले स्कूल जा रहे है ट्रेन में बैठकर पढ़ाई करते है.

नक्सल क्षेत्र में स्कूल हुआ फेमस : तरांदुल हायर सेकेंडरी स्कूल भवन इन दिनों लोगों के लिए सेल्फी जोन बना हुआ है.कुछ महीने पहले इस स्कूल को ट्रेन का स्वरूप देने रंगरोगन कराया गया था.अब इस स्कूल के सामने से गुजरने वाला हर व्यक्ति एक बार रुककर एक बार जरुर स्कूल भवन को निहारता है.

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कांकेर : बच्चे अक्सर पढ़ने लिखने से ज्यादा खेलकूद में ध्यान देते हैं.जिसके बाद शिक्षा के दौरान खेलकूद को शामिल करना अनिवार्य हुआ. ऐसा माना जाता है कि छोटे बच्चों को किताबों में लिखी गई बातों को यदि समझाना है,तो सबसे अच्छा तरीका उस चीज का प्रैक्टिकल करना होता है. क्योंकि बच्चों को खेल-खेल में चीजों को समझाना काफी आसान होता है.ऐसा ही एक एक्सपेरिमेंट कांकेर के तरांदुल गांव के हायर सेकंडरी स्कूल में किया गया है.जहां स्कूल के क्लास रूम को वंदे भारत ट्रेन का रूप दिया गया है.इस जगह को देखने पर अब ऐसा लगता है मानों बच्चे किसी ट्रेन के अंदर बैठकर पढ़ाई कर रहे हो.

पोटाकेबिन से अब बना वंदे भारत ट्रेन स्कूल : तरांदुल हाईस्कूल के प्राचार्य चंद्रकांत साहू के मुताबिक 2011 में हाईस्कूल खुला. लेकिन नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण यहां स्कूल भवन बनाने के लिए कोई भी ठेकेदार तैयार नहीं था. 2015 में यहां पोटाकेबिन स्कूल भवन (बांस का भवन) बनाया गया.वहीं स्कूल में पढ़ने वाले अंदरूनी गांव के छात्रों ने ट्रेन की सवारी तो दूर कभी ट्रेन भी नहीं देखी थी. पाठ्यक्रम में ट्रेन के बारे में पढ़ने के दौरान छात्रों ने शिक्षक को ट्रेन दिखाने के लिए कहा.इसके बाद शिक्षकों ने स्कूल को ही ट्रेन का रूप देने का फैसला किया. स्कूल भवन के प्रिंसिपल भवन को इंजन तो इसके पीछे बनीं क्लास रूम को बोगियों की तरह बनाया गया.जिससे अब स्कूल पूरे क्षेत्र में फेमस हो गया है.


बच्चों को ट्रेन के बारे में बताने का आसान तरीका : स्कूल के शिक्षक प्रदीप सेन के मुताबिक हम लोग शिक्षक हैं.कहीं ना कहीं ट्रेनिंग में बाहर जाते हैं. साथ ही हम जब बच्चों को पढ़ाते हैं. ट्रेन का एक शब्द आ जाता है तो बच्चों के दिमाग में यहां ट्रेन शब्द आने से वह हमसे सवाल करते हैं कैसा होता है क्या होता है. यहां पूछते हैं बस तो देखे हैं लेकिन ट्रेन 90 प्रतिशत बच्चे लोग नहीं देखे हैं. क्योंकि ये एक संवेदनशील क्षेत्र है. यहां से जिला मुख्यालय 15 से 20 किलोमीटर दूर है. 80 प्रतिशत बच्चे जिला मुख्यालय नहीं देखे होंगे. 60 प्रतिशत बच्चे ब्लॉक मुख्यालय नहीं देखे. इसलिए स्कूल के स्टाफ ने बच्चों के सवालों से प्रेरित होकर कलाकृति के माध्यम से स्कूल भवन को ही ट्रेन का स्वरूप दे दिया.जिसमें एक पुराने जमाने की ट्रेन है, वहीं दूसरा नए जमाने की वंदे भारत ट्रेन है.

ट्रेन वाले स्कूल के बच्चे :वहीं इस स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के माता पिता भी इस प्रयोग से काफी खुश हैं.लोगों को लग रहा है कि उनके गांव में ट्रेन आ गई है. वहीं स्कूली बच्चों ने कहा कि हमे ऐसा लगता है कि हम ट्रेन की बोगियों में बैठकर पढ़ाई कर रहे हैं. जब स्कूल के लिए निकलते है तो पालक भी बोलते हैं. ट्रेन वाले स्कूल जा रहे है ट्रेन में बैठकर पढ़ाई करते है.

नक्सल क्षेत्र में स्कूल हुआ फेमस : तरांदुल हायर सेकेंडरी स्कूल भवन इन दिनों लोगों के लिए सेल्फी जोन बना हुआ है.कुछ महीने पहले इस स्कूल को ट्रेन का स्वरूप देने रंगरोगन कराया गया था.अब इस स्कूल के सामने से गुजरने वाला हर व्यक्ति एक बार रुककर एक बार जरुर स्कूल भवन को निहारता है.

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