कांकेर: आधुनिकता के दौर में खर्चीली शादियों का चलन तेजी से बढ़ रहा है. डेकोरेशन-टेंट से लेकर भोजन तक लाखों रुपये खर्च किये जाते है. लेकिन कांकेर में ऐसी शादी हुई जिसने खर्चीली शादियों के औचित्य को चुनौती दी है. सरोना क्षेत्र के बोदेली गांव में डॉक्टर सनद नेताम के शादी का मंडप लाखों खर्च कर नहीं सजाया गया, बल्कि गांव वालों ने सामूहिकता का परिचय देते छिंद के पत्तों से आकर्षक शादी का टेंट और मंडप बनाया है. यहीं नहीं शादी में खाने के नाम पर कोई खर्चा नहीं किया जा रहा है. गांव वाले प्रत्येक घर से चावल-दाल देकर खुद अपने हाथों से खाना बनाते हैं और शादी में आए लोगों को खाना खिलाते हैं. इस शादी में स्वच्छता और पर्यावरण सरंक्षण का भी संदेश दिया गया है.
शादी में प्लास्टिक से बने समानों का इस्तेमाल बढ़ा है, लेकिन इस शादी में प्लास्टिक के इस्तेमाल को ना कह दिया गया है. सुंदर पत्तों से बनी थाली में खाना परोसा जा रहा है. पानी पीने के लिए गिलास का उपयोग किया जा रहा है.
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डॉक्टर सनद नेताम के परिवार के सदस्य नारायण मरकाम ने ETV भारत को बताया कि आजकल शादियों में दिखावे का ज्यादा प्रचलन है. जिसके चपेट में गांव के लोग भी आ रहे हैं. लोग यही सोचते हैं कि हमारे बेटी-बेटे की धूमधाम से शादी हो. शादी में खूब खर्चा किया जाता है. मध्यम-गरीब वर्ग के परिवार ऋण लेकर, खेत गिरवी रखता और शादियां करता है. इसे देखकर हमने फैसला लिया कि क्यों न हम इस शादी को जागरूकता अभियान के रूप में ले. लोगों को कम खर्चे में शादी के लिए जागरुक किया जाये.
परिवारों को करना पड़ता है मुश्किलों का सामना
डॉक्टर सनद नेताम ने कहा कि यदि हमारे आस-पास के संसाधनों से शादियां करेंगे तो बचे रुपये से और भी काम होंगे. नारायण मरकाम कहते हैं, आदिवासी समाज में दहेज का प्रचलन नहीं है. शादियों में दिखावे के चलन से मध्यम और गरीब तबके के परिवारों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. इस शादी के माध्यम से यह संदेश देना चाहते हैं कि सीमित संसाधन और सामाजिक एकजुटता के साथ कम खर्च में भी धूमधाम के साथ विवाह कार्यक्रम का आयोजन किया जा सकता है.
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लोगों की सोच में बदलाव लाने की कोशिश
दूल्हे ने ETV भारत को बताया कि वे आदिवासी (कोयतुर) समुदाय से आते हैं. जो शुरू से पारम्परिक संसाधनों पर निर्भर हैं. उसने साथियों की मदद से छिंद के पेड़ के पत्ते, सल्फी के पत्तों से,जामुन के पत्तों और डंगाल से मंडप की सजावट की. इससे टेंट और डेकोरेशन में होने वाले खर्चे है से बचा जा सकता है. उन्होंने सोचा कि ये देख कर लोगों में बदलाव आएगा.
पर्यवारण सरंक्षण का संदेश
उन्होंने बताया कि प्लास्टिक पर्यवारण के लिए घातक होते जा रहा है. इसलिए शादी में प्लास्टिक की किसी भी चीज का उपयोग नहीं किया जा रहा है. उन्होंने अपील की है कि गांव में उपलब्ध संसाधनों का उपयोग कर शादियां की जाए.
छिंद के पत्तों से बनाया पर्दा
पेड़ों की डालियों और पत्तों से मंडप सजाने में सप्ताह भर का समय लगा. दूल्हे के दोस्त संदीप सलाम ने कहा कि उन्होंने और साथियों ने कोई अलग काम नहीं किया है. ये सभी चीजे गांव में ही उपलब्ध है. बस इसे इस शादी में इस्तेमाल किया है.छिंद के पत्तों से हमने पर्दा बना दिया है. शादी के घर में मेहमानों के भोजन के लिए गांव के हर घर से चावल-दाल उपलब्ध कराया गया है.
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मिट्टी के बने चूल्हे का इस्तेमाल
शादी में खाना बनाने के लिए मिट्टी के बने चूल्हे का इस्तेमाल किया गया है. इस चूल्हे की खासियत यह है कि एक साथ 6 गंज में चावल,दाल, सब्जी अलग-अलग तैयार किया जा सकता है. यही नहीं इसमें इस्तेमाल होने वाली लकड़ी का खर्च भी कम है.
चर्चा का विषय बनी ये शादी
कहा जाता है कि आदिवासियों ने अपनी परंपरा बरकार रखी है. उनकी इस सभ्यता से दुनिया के लोग सीखते हैं. चाहे जंगल बचाने के तरीके हो या प्रकृति प्रेम. आदिवासियों की जीवन शैली, समाज सरंचना और सांस्कृतिक मूल्य समाज के लिए दर्पण की तरह माने जाते हैं. यह शादी में उन्हीं मूल्यों का हिस्सा बनने जा रही है. बहरहाल, आस-पास गांव में ये शादी चर्चा का विषय बनी हुई है.